- आजादी के बाद से शुरू हुई थी प्रतिमा की स्थापना
- पिछले 62 साल से लगातार इस जगह हो रही है प्रतिमा स्थापित
GORAKHPUR: अगर हम शहर में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करते हैं, तो इसकी शुरुआत दुर्गाबाड़ी से होती है। आजादी के पहले से ही गोरखपुर दुर्गा प्रतिमा की स्थापित होने लगी थी। दुर्गा प्रतिमा से गोरखपुर को जो अलग पहचान मिली है, वह आज भी बरकरार है। 1953 से स्थापित हो रही मूर्ति स्थापना आज भी चल रही है। पूरे शहर की प्रतिमा का दर्शन कर लें, लेकिन अगर दुर्गाबाड़ी प्रतिमा का दर्शन न किया, तो दर्शन पूरा नहीं होता। आई नेक्स्ट आज आपके सामने इसी पंडाल की कहानी सुनाने जा रहा है।
1953 से शुरू हुआ सिलसिला
गोरखपुर में इनटेक के संयोजक और बंगाली समिति के सदस्य पीके लाहिड़ी ने बताया कि दुर्गाबाड़ी में दुर्गा प्रतिमा को बंगाली समिति स्थापित करती है। 1952 तक शहर में दुर्गा प्रतिमा स्थापित करने का कोई उचित जगह नहीं थी। इधर-उधर स्थापित की जाती थी, लेकिन 1953 में पहली बार दुर्गाबाड़ी में इसकी स्थापना शुरू हुई। 62 साल से लगातार यहां पर दुर्गा प्रतिमा को स्थापित किया जा रहा है। पीके लाहिड़ी ने बताया कि दुर्गाबाड़ी में रामनाथ लाहिड़ी ने अपने लिए धर्मार्थ कार्य के लिए ली गई जमीन को दुर्गा प्रतिमा स्थापित करने के लिए दे दी। 15 अगस्त 1953 को इस जमीन का भूमि पूजन किया गया। 1953 के ही अक्टूबर में पहली बार दुर्गाबाड़ी में प्रतिमा की स्थापना शुरू हुई।
विसर्जन की यहीं से होती है शुरुआत
पीके लाहिड़ी ने बताया कि आज भी गोरखपुर के श्रद्धालु इस प्रतिमा के दर्शन करने के बाद ही अपने दर्शन को पूरा मानते हैं। यहां बरसों से एक परंपरा बनी हुई है कि दुर्गा विसर्जन के लिए गोरखपुर में सबसे पहले दुर्गाबाड़ी की मूर्तियों को ही उठाया जाता है। इसके बाद शहर के दूसरे इलाकों से विसर्जन के लिए मूर्तियां उठती है।