- अपनी कला से दूसरों का तो मन जीत लेते प्रतिमाएं बनने वाले मूर्तिकार
- इस बेहतरीन कला के बावजूद नहीं होती मूर्तिकारों के चेहरे पर खुशी
- चंद पैसा कमाने के लिए करते है दिन व रातों की मेहनत
GORAKHPUR: नवरात्रि में पूजन के लिए बंगाल से आए मूर्तिकारों का जादू इन दिनों सिटी में छाया हुआ है। सिटी में सैकड़ों मूर्तियां पंडालों की शोभा बढ़ा रहीं है। लोगों की नजरों में इसको बनाने वाले कलाकार हजारों रुपए कमाकर लौटते हैं, लेकिन अगर इनकी पर्सनल जिंदगी पर नजर डालें तो उनके हस्ते-मुस्कुराते चेहरे के बीच कहीं न कहीं गहरा दर्द छिपा है। इनकी कला का तो कोई मोल ही नहीं है, लेकिन अपनी इस कला के एवज में इतने पैसे भी नहीं मिलते जिससे यह अपनी जिंदगी बेहतर ढंग से गुजार सकें।
सीजन में आते हैं कलाकार
सीजन के दौरान घर परिवार छोड़कर दूसरे शहरों से आए इन कलाकारों का जीवन भी बंजारों से कम नहीं है। यहां गोरखनाथ, सूबाबाजार, रेलवे स्टेशन आदि जगहों पर यह मूर्तिकार किराए की जगह लेकर मूर्तियां बनाते हैं और फिर दूसरे डेस्टिनेशन के लिए रवाना हो जाते हैं। इन दिनों दिन-रात जागकर कलाकार प्रतिमाओं को फाइनल टच देने में जुटे हुए हैं। मंगलवार को नवरात्र शुरु होने के साथ ही प्रतिमाएं पंडालों में स्थापित होने लगीं। चंद पैसों के लिए लिए यह कलाकार अपने इन दिनों अपने घर-परिवार के साथ ही अपनी भूख, प्यास और नींद भी त्याग चुके हैं।
एक पंडाल में सौ प्रतिमाएं
गोरखनाथ मंदिर परिसर में बंगाल से इस बार कलाकारों की चार टीम आई है। एक पंडाल में यह कलाकार करीब छोटी-बड़ी मिलाकर करीब सौ प्रतिमाएं बना रहे हैं। एक पंडाल में मेन मूर्तिकार सहित तीन से चार मूर्तिकार और हेल्पर लेकर करीब बीस लोग काम कर रहे हैं। दशहरा-दीपावली के साथ यह पूरे साल बंगाल में भी सिर्फ प्रतिमाएं ही बनाते हैं। इस दौरान बंगाल में मनाए जाने वाले त्योहार जगद्धात्री पूजा, सरस्वती पूजा, कार्तिक पूजा, पावर्ती पूजा आदि पर्वो पर भी प्रतिमाएं स्थापित होती है। सिटी के फेमस और बड़े मूर्तिकारों के मुताबिक गोरखपुर में इस बार दो हजार से ज्यादा प्रतिमाएं स्थापित होंगी। हालांकि पुलिस के आकड़ों में इनकी करीब संख्या 1150 है।
गोखनाथ मंदिर में भी बन रही प्रतिमाएं
मूर्तिकारों के अनुसार सिटी के गोरखनाथ में चार और इंजीनियरिंग कालेज और सूबाबाजार में 6, रेलवे स्टेशन पर एक, सुमेर सागर में एक सहित अन्य जगहों पर बंगाल के मूर्तिकार प्रतिमाएं बना रहे हैं। सभी फेमस प्रतिमाएं गोरखनाथ मंदिर परिसर में ही बन रही है। इनमें बेतिहाता, दाऊदपुर, अलहदादपुर, मोहरीपुर, कुरमाइन टोला, दुर्गा बाड़ी, हालसीगंज आदि एरियाज की करीब सभी फेमस प्रतिमाएं शामिल है। यह सिटी की ऐसी प्रतिमाएं होती हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग दूर-दराज एरियाज से भी आते हैं।
महंगाई काफी बढ़ गई है, बवजूद इसके लोग प्रतिमाओं का उतना पैसा नहीं देते जितना मिलना चाहिए। खर्च निकालकर कुछ पैसे जरूर बचते हैं, लेकिन मूर्तिकारों की मेहनत के मुकाबले यह कुछ भी नहीं।
वासुदेव पॉल, मूर्तिकार
मैं 14 साल की उम्र से प्रतिमाएं बना रहा हूं। यह सिर्फ एक कलाकारी ही नहीं बल्कि हम लोगों का खानदानी पेशा है। कमाते और खाते बुढ़ापा आ गया, लेकिन इतने लंबे सफर में में कुछ नहीं मिला। अब मजबूरी यह है कि इसके आलावा हम लोग इस उम्र में और कोई काम नहीं कर सकते।
भानू पाल, मूर्तिकार