- कार्रवाई न होने का फायदा उठाकर धड़ल्ले से कर रहे हैं धंधा
- अभियान के दौरान बच्चों को वहीं छोड़ जाने की देते हैं धमकी
GORAKHPUR : 'ड्राइवर साहब, आप ऑटो ठीक से नहीं चला रहे है और स्पीड भी काफी तेज है, मैं शिकायत करूंगी। थोड़ा आराम से चला कीजिए। मैडम, मैं तो गाड़ी ऐसे ही चलाता हूं, कई सालों से चला हूं आजतक कोई भी घटना नहीं हुई। रही बात शिकायत की, तो आप किसी से भी जाकर शिकायत कर दीजिए' यह कनवर्सेशन न तो किसी मूवी की स्क्रिप्ट से लिया गया है और न ही किसी सीरियल से, बल्कि यह पेरेंट्स और बेलगाम ड्राइवर्स के बीच आए दिन होने वाली बातचीत के कुछ अंश हैं। इस कनवर्सेशन से न सिर्फ पेरेंट्स की मजबूरी झलक रही है, बल्कि रूल्स को ताक पर रखकर चलने वाले ऑटो ड्राइवर्स की मनमानी भी साफ झलक रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? क्या वजह है कि ड्राइवर्स पेरेंट्स से इस तरह से रिएक्ट कर रहे हैं? जब आई नेक्स्ट ने इस मामले में पड़ताल की तो यह बात सामने आई कि इसके पीछे रूल्स फॉलो कराने वाले डिपार्टमेंट यानि कि आरटीओ और पेरेंट्स दोनों की ही मजबूरी है, जिसका ऑटो ड्राइवर्स फायदा उठा रहे हैं।
मजबूर है आरटीओ
आरटीओ की लिस्ट में ऑटो रिक्शा बतौर स्कूल कनवेंस रजिस्टर्ड नहीं किए जा सकते। ऐसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, मगर ऐसा नहीं होता। जब इस मामले में आरटीओ में इंफॉर्मेशन हासिल की गई, तो यह बात सामने आई कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई न करने को आरटीओ मजबूर है। ऐसा नहीं कि उनके ऊपर कोई दबाव है, बल्कि ऐसा प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं है। आरटीओ एनफोर्समेंट डॉ। अनिल कुमार गुप्ता ने बताया कि आरटीओ की तरफ से कई बार ओवरलोड, अनफिट और रूल्स तोड़ने वाले ड्राइवर्स का चालान किया गया, जोकि स्कूल के बच्चों को बैठाए हुए थे। उनपर कार्रवाई की कंडीशन में वह ऑटो ड्राइवर्स बच्चों को वहीं छोड़कर भाग निकले। इसके बाद पेरेंट्स हंगामा करने लगे और आरटीओ ही को गलत ठहराने लगे।
पेरेंट्स की भी मजबूरी
गोरखपुर में स्कूल की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से बढ़ रही है कनवेंस की जरूरत। बैंक रोड के रहने वाले लतीफ खान की मानें तो पेरेंट्स चाहते हैं कि उसका बच्चा सबसे बेहतर स्कूल में पढ़े, फिर वह चाहे जितना भी दूर हो। एडमिशन के बाद कनवेंस की बात जब आती है, तो वह आसपास के बच्चों के साथ अपने बेटे को भी भेजते हैं, जिससे कि उनका बच्चा अकेला न रहे। इसकी वजह से वह एरिया के बच्चों को लेकर जाने वाले ऑटो को ही प्रिफरेंस देते हैं। वहीं एरिया में अकेला रिक्शा होने की वजह से ऑटो ड्राइवर्स के नखरे और बढ़ जाते हैं और मनमानी का विरोध करने पर छोड़ देने की धमकी देते हैं। साथ के चक्कर में वह इस बात का बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते कि वह जिस ऑटो से अपने बच्चों को भेज रहे हैं, उसकी क्या कंडीशन है? उसमें कितने बच्चे जा रहे हैं? वहीं एक सबसे बड़ा रीजन यह कि इससे उनका काफी पैसा भी बच जाता है। इन सभी बातों की वजह से पेरेंट्स भी सभी कमियों को नजर अंदाज कर देते हैं और अपने लाडले की जान जोखिम में डाल देते हैं। वहीं ऑटो ड्राइवर्स भी पेरेंट्स की इन्हीं मजबूरियों का फायदा उठाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं।
रूल्स को ताक पर रखने वाले ऑटो ड्राइवर्स के खिलाफ हमेशा ही अभियान चलता रहता है। अभी ट्यूज्डे को भी ऑटो का चालान किया गया है। स्कूल ले जाने वाले ऑटो के खिलाफ एक्शन लेने पर पेरेंट्स और गार्जियंस आरटीओ को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।
- डॉ। एके गुप्ता, आरटीओ एनफोर्समेंट