- शहर के जल निकासी वाले नाले अतिक्रमण के चपेट में

GORAKHPUR: चेन्नई की हालत हम सबने देखी। अगर कहा जाए कि हम भी चेन्नई जैसे ही हालात से घिरे हुए हैं तो गलत नहीं होगा। अपने यहां अगर लगातार बरसात हुई तो तय मानिए कि शहर डूबने के कगार पर खड़ा है। शहर से जल निकासी के सभी रास्ते संकरे हो चुके हैं। परिणाम यह होता है कि बारिश होते ही शहर की सड़कें नाले में तब्दील हो जाती हैं। कई एरियाज में पलायन की हालत बन जाती है। कई मोहल्लों में जिंदगी नजरबंद हो जाती है। नालों पर अतिक्रमण एक दिन गोरखपुर शहर को डुबो देगा।

इलाहीबाग

नाले की लंबाई- लगभग 5 किमी

शहर के सबसे अधिक आबादी का पानी इस नाले से निकलता है। यह नाला सुमेर सागर से शुरू होता है और बक्शीपुर, ऊंचवां होते हुए इलाहीबाग के पास राप्ती नदी में गिर जाता है। इस नाले की चौड़ाई नगर निगम के कागज में 15 फीट है और नाले के दोनों तरफ पांच-पांच फीट फुटपाथ है, लेकिन वर्तमान में केवल नरसिंहपुर और सुमेर सागर में यह फुटपाथ दिखेंगे। इसके अलावा कहीं भी इस नाले का फुटपाथ नहीं दिखेगा। नगर निगम के मुख्य सफाई निरीक्षक पीएन गुप्ता का कहना है कि अतिक्रमण होने के कारण नाले की सफाई नहीं हो पाती है।

रेती चौक

नाले की लंबाई- लगभग 3 किमी

आजादी के पहले का बना यह नाला वर्तमान समय की जल निकासी के लिए सक्षम नहीं है। छोटे काजीपुर से लेकर बेतियाहाता तक यह नाला पूरी तरह से अतिक्रमण की कैद में है। इस कारण नाले की सफाई करने में काफी दिक्कत होती है। रेती से लेकर छोटे काजीपुर तक तो पिछले कई साल से इस नाले की सफाई ही नहीं हो पाई है।

कौआदह

नाले की लंबाई- लगभग 1 किमी

रेती पुल से शुरू होकर यह नाला कौआदह होते हुए इलाहीबाग के नाले में मिलकर गीता प्रेस, साहबगंज, मिर्जापुर एरिया के जल निकासी का काम करता है। यह नाला कहीं 10 फीट चौड़ा है तो कहीं पांच फीट संकरी नाली में तब्दील हो गया है। स्थिति यह है कि गीता प्रेस के पीछे तो इस नाले की सफाई हो जाती है, लेकिन 60 प्रतिशत हिस्से की कभी सफाई हो ही नहीं पाती है। नाला सफाई न होने का खामियाजा हर साल साहबगंज मंडी के व्यापारी भुगतते हैं, लेकिन नगर निगम इनके दर्द को सुनता ही नहीं है।

पैडलेगंज

नाले की लंबाई- लगभग 1 किमी

दाउदपुर, नहर रोड, बिलंदपुर, इंद्रा नगर, बेतियाताहा, अलहदादपुर के आंशिक एरिया के जल निकासी के लिए बना यह नाला पैडलेगंज के पास रामगढ़ताल में गिरता है। यह शहर का सबसे गहरा नाला है। यह शहर के सबसे निचले हिस्से का पानी निकालता है। यह पूरे साल गंदगी से लबालब भरा रहता है। इस नाले का भी 60 प्रतिशत एरिया अतिक्रमण के चपेट में है।

गोड़धोइया नाला

नाले की लंबाई- लगभग 12 किमी

शहर में आज भी इस नाले की अपनी एक अलग पहचान है। शहर से बारिश का पानी बाहर निकालने का यह एकमात्र इकलौता प्राकृतिक जलस्रोत है। लोग कहते हैं कि अगर यह नाला नहीं होता तो मेडिकल कॉलेज, शाहपुर, घोसीपुरवा, जंगलमातादीन, शिवपुर साहबगंज, पादरी बाजार, जेल बाइपास एरिया की जल निकासी नहीं हो पाती। यह नाला मेडिकल कॉलेज के पीछे से शुरू होता है और रामगढ़ताल में मिल जाता है। कभी 50 फीट चौड़ा यह नाला वर्तमान में मात्र 15 से 20 फीट तक बचा है। बाकी एरिया अतिक्रमण हो चुका है। बिछिया और जंगलमातादीन के पास तो यह नाला 15 फीट से भी पतला हो गया है।

लालडिग्गी

नाले की लंबाई- लगभग 500 मीटर

नगर निगम ने इस नाले का निर्माण 2012 में लालडिग्गी पार्क के आस-पास के पानी निकालने के लिए किया था। नाला बनने के बाद से ही इस नाले पर लोगों ने स्लैब डालकर अतिक्रमण कर लिया है। यहां के रहने वाले राम प्रकाश यादव का कहना है कि अतिक्रमण की ही देन है कि जब से यह नाला बना है उसके बाद से इस नाले की सफाई तक नहीं हो पाई है।

यह होता है नाले का मानक

नगर निगम के मुख्य सफाई निरीक्षक अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि शहर में 239 नाले हैं जो शहर के 13 प्रमुख नालों में मिल जाते हैं। यह नाले राप्ती, रोहिन और रामगढ़ ताल में गिरते हैं। इन नालों के निर्माण के बाद नाले के दोनों तरफ पांच-पांच फीट का फुटपाथ बनाना चाहिए। गोरखपुर में भी नालों के किनारे पांच-पांच फीट की जगह छोड़ी गई थी, लेकिन नाले के किनारे शहर के 90 प्रतिशत नाले के फुटपाथ अतिक्रमण हो चुके हैं। कई एरिया में तो नाले के दीवार से ही सटाकर लोगों ने घर बना लिया है। जिसके कारण नालों की सफाई में काफी परेशानी होती है। एक उदाहरण के तौर पर बताएं तो सुमेर सागर से इलाहीबाग तक के नाले की 30 प्रतिशत हिस्से की सफाई पिछले 10 साल से नहीं हो पाई है।

एक्सपर्ट कमेंट

नगर निगम को चेन्नई से सबक लेते हुए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 2012 के सितंबर माह में शहर में 16 घंटे तक मूसलधार बारिश हुई थी। मौसम विभाग ने इस बारिश का रिकॉर्ड 340 एमएम दर्ज किया था। इस बारिश के बाद शहर के जो हालत बने थे। वह देखने लायक थे। शहर का कोई भी एरिया नहीं बचा था जहां कम से कम 5 फीट तक पानी नहीं लगा है। सूरजकुंड, रुस्तमपुर और बहरामपुर जैसे एरिया के 70 प्रतिशत घरों में पानी घुस गया था। वहीं 2013 में तो पिपरापुर के नागरिक प्रशासन से नाव की मांग करने लगे थे।

- गोपीकृष्ण श्रीवास्तव

रिटायर्ड उप नगर आयुक्त, नगर निगम