- स्पर्श राजकीय दृष्टिबाधित बालिका विद्यालय का मामला
- सातवीं की छात्रा ने प्रिंसिपल से लगाई गुहार- स्कूल न निकालिए
GORAKHPUR: सरकार सबको स्कूल भेजने के लिए भले ही फिक्रमंद हो, तमाम योजनाएं बनाएं और लाखों रुपए बहाए लेकिन इसकी जिम्मेदारी जिन लोगों को दी गई है उनकी असंवेदनशीलता इस मिशन को पूरा होने से रोक रही है। पूर्वाचल का एकमात्र स्पर्श राजकीय दृष्टिबाधित बालिका कई जिलों की गर्ल्स के लिए शिक्षा की एकमात्र उम्मीद है, बावजूद प्रिंसिपल ने सातवीं की एक छात्रा को सिर्फ इसलिए बाहर कर दिया क्योंकि उसे चेचक हो गया था। इसके पहले संक्रमण का खतरा बताते हुए वार्डेन ने उसे हॉस्टल से बाहर कर दिया। छात्रा ने प्रिंसिपल से गुहार लगाई है कि वह पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती है। उसे स्कूल से न निकालें।
20 जिले की स्टूडेंट्स
नॉर्मल कैंपस में चलने वाले राजकीय दृष्टिबाधित बालिका विद्यालय में 100 सीट हैं। यहां 20 जिले की गर्ल्स स्टूडेंट्स पढ़ रही हैं। प्रदेश के कुल तीन राजकीय दृष्टिबाधित बालिका विद्यालयों में से एक इस विद्यालय में महाराजगंज जिले के महशय, निचलौल की रहने वाली गुडि़या कुशवाहा चार साल से पढ़ रही है। अभी वह सातवीं की छात्रा है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर को स्कूल से निकाले जाने की बात बताते हुए गुडि़या रो पड़ी। उसका कहना है कि वह पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती है लेकिन उसका स्कूल से नाम सिर्फ इसलिए काट दिया गया कि उसे चेचक हो गया था। वह ठीक होकर फिर से स्कूल जाना चाहती है।
पहले हॉस्टल से निकाला
गुडि़या के अनुसार, वह स्कूल के हॉस्टल में रह रही थी कि उसे चेचक हो गया। इसके बाद हॉस्टल की वार्डेन ने उसे निकाल दिया। वह फिर भी उदास नहीं हुई। उसे लगा कि ठीक होने के बाद वह फिर स्कूल में पढ़ने आ जाएगी। अब जबकि वह ठीक होने वाली है तो उसने प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसिपल से हॉस्टल से निकाले जाने की शिकायत की तो वह गुस्सा गए। उसे स्कूल से ही निकाले जाने की बात करने लगे। जब उसने पूछा कि उसका कसूर क्या है तो वार्डेन की बातों में आकर प्रिंसिपल ने उसे स्कूल से ही निकाल दिया।
घरवालों से लिखवा लिया पत्र
गुडि़या का कहना है कि उसके घर वाले पढ़े-लिखे नहीं हैं। प्रिंसिपल ने घर वालों को बुलाया और उसकी गलत शिकायतें की। लेकिन घर वालों ने स्कूल से नहीं निकाले जाने का रिक्वेस्ट किया। इसके बाद भी प्रिंसिपल नहीं माने। उन्होंने मेरे पैरेंट्स की तरफ से किसी से पत्र लिखवाया और उस पर जबरन घर वालों से अंगूठे का निशान ले लिया। 10 अगस्त के डेट में लिखे प्रार्थनापत्र में घर वालों की ही तरफ से कहला दिया कि वे अब और पढ़ाना नहीं चाहते और उसे घर ले जाना चाह रहे हैं। इसी पत्र को आधार बनाकर प्रिंसिपल ने उसे स्कूल आने से रोक दिया।
घर वालों ने िकया इनकार
महज चेचक होने पर स्कूल से निकाले जाने की बात सामने आने के बाद स्कूल प्रबंधन को अपनी गलती का अहसास हुआ। इसे छुपाने के लिए उसने नई चाल चली और पैरेंट्स की तरफ से पत्र लिखवा लिया। छात्रा के साथ ही उसके घर वालों का भी कहना है कि उन्होंने कोई ऐसा पत्र नहीं लिखा। प्रिंसिपल और वार्डेन ने उनसे अंगूठा लगवा लिया।
बॉक्स
उस लेटर में क्या है?
स्कूल प्रबंधन पैरेंट्स के जिस लेटर का हवाला दे रहा है उसे छात्रा व पैरेंट्स फर्जी बता रहे हैं। इस पत्र में लिखा है कि हॉस्टल वार्डेन और प्रिंसिपल द्वारा दस दिन से मोबाइल पर सूचना दिए जाने के बाद भी मैं उपस्थित नहीं हुआ। घर से आने जाने की समस्या है। मेरे पास इतना समय नहीं कि मैं बार-बार आऊं। मेरी पुत्री द्वारा हॉस्टल में लगातार गलत आचरण किए जाने के कारण हमेशा के लिए इसे घर लेकर जा रहा हूं। यह मेरा स्वयं का निर्णय है और विद्यालय प्रशासन द्वारा किसी प्रकार का दबाव नहीं दिया गया है।
वर्जन
गुडि़या को चेचक हुआ था। उसके चलते 99 लड़कियां संक्रमण का शिकार हो सकती थीं। उसके घर वालों से अक्सर संपर्क साधने का प्रयास किया जाता है तो कोई मिलता नहीं है। उसके परिजन कभी विद्यालय नहीं आते हैं। रहा सवाल उसे निकालने का तो यह बेबुनियाद आरोप है। वह सिर्फ कंप्लेन करती रहती है। कभी कमिश्नर ऑफिस तो कभी सीएम ऑफिस पहुंच जाती है।
- लक्ष्मीशंकर जायसवाल, प्रिंसिपल
इस संदर्भ में प्रिंसिपल से बात की जाएगी। वह छात्रा को विद्यालय से क्यों निकालना चाह रहे हैं, इसकी जांच की जाएगी। जो दोषी होगा, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
- मधुरेंद्र कुमार पर्वतेश, विकलांग कल्याण अधिकारी, गोरखपुर
मैं पाइप फीटिंग का काम करता हूं, मेरी बहन को स्कूल के वार्डेन और प्रिंसिपल ने निकाल दिया है। उसको चेचक हुआ था। जबरन प्रार्थना पत्र स्कूल वालों ने लिखवाया था कि वह अब गुडि़या को स्वेच्छा से घर ले जा रहे हैं। जबकि गुडि़या अभी स्कूल में पढ़ना चाहती है।
राधेश्याम, गुडि़या का बड़ा भाई