गोरखपुर (सुनील त्रिगुणायत)।डायबिटिक रेटिनोपैथी आंखों के लिए खतरे की घंटी हैं। इसलिए डायबिटिक पेशेंट्स को आंखों की जांच कराना चाहिए। यह तथ्य एम्स गोरखपुर के आई डिपार्टमेेंट की स्टडी में सामने आए हैं।
272 पेशेंट्स पर स्टडी
एम्स के आई डिपार्टमेंट में हुई स्टडी का उद्देश्य नेत्र विज्ञान विभाग में आने वाले मधुमेह मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी के बारे में जागरुकता का आकलन करना था। स्टडी में कुल 272 लोगों को शामिल किया गया। वर्तमान स्टडी में 44 परसेंट लोगों को पता था कि आंखों की जांच साल में कम से कम एक बार (सालाना या हर 6 महीने में) की जानी चाहिए, लेकिन अभी भी 38.2 परसेंट पेशेंट ऐसे थे, जिन्होंने रोशनी कम होने पर ही स्क्रीनिंग के बारे में सोचा और 11 परसेंट ने कोई जांच नहीं की। इसका असर यह रहा है कि डायबिटिक पेशेंट्स को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उन्हें कितनी बार आंखों की जांच करानी चाहिए। जबकि कुछ में संशय की स्थिति थी। हमारे साक्षात्कार किए गए अधिकांश प्रतिभागी सर्वेक्षण के दिन नियमित आंखों की जांच या कुछ दृश्य समस्याओं के लिए आए थे और केवल 17.6 परसेंट पेशेंट्स को उनके डॉक्टर द्वारा डायबिटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञों के पास भेजा गया था। इस रिसर्च को फैमिली मेडिसिन और प्राइमरी जर्नल ने प्रकाशित भी किया।
2045 तक बढ़ेंगे डायबिटिक पेशेंट
राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ मधुमेह एटलस-2019 संस्करण के अनुसार, 352 मिलियन मधुमेह लोगों के साथ रहने वाले तीन चौथाई लोग कामकाजी हैं और इनकी उम्र 20 से 64 साल है। यह संख्या 2030 तक बढ़कर 417 मिलियन और 2045 तक 486 मिलियन होने की उम्मीद है।
धुंधलापन, आंखों के सामने होता अंधेरा
शोधकर्ता और नेत्र विशेषज्ञ डॉ। अलका त्रिपाठी ने बताया, डॉक्टर्स की जिम्मेदारी है कि वे पेशेंट्स को स्क्रीनिंग के बारे में सलाह दें और फॉलोअप में उनके अनुपालन की भी तलाश करें। प्राथमिक डॉक्टर्स को सभी डायबिटिक के मरीजों को कम से कम साल में एक बार नेत्र परिक्षण के लिए प्रेरित करना चाहिए। आई डिपार्टमेंट की डॉ। संगीता अग्रवाल ने बताया, शुरुआती लक्षणों में धुंधलापन, आंखों के सामने अंधेरा छाना, फ्लोटर्स, रंगों को समझने में भेद न कर पाना, इसके अलावा गंभीर समस्या में दृष्टिहीनता शामिल है। आई डिपार्टमेंट की डॉ। रिचा अग्रवाल ने बताया कि जिनमें समस्या बहुत गंभीर नहीं होती, उनका इलाज डायबिटीज को मैनेज करके किया जाता है। जबकि गंभीर मामलों में लेजर इलाज या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
पब्लिक अवेयरनेस की जरूरत
सामुदायिक चिकित्सा या पारिवारिक चिकित्सा विभाग के डॉ। प्रदीप खरया ने बताया, सामान्य तौर पर डायबिटिक पेशेंट्स में डायबिटिक रेटिनोपैथी तभी विकसित होती है जब उनको डायबिटीज होकर कम से कम 10 साल हो चुके होते हैं। लेकिन आंखों की जांच कराने के लिए इतने लंबे समय वेट करना समझदारी की बात नहीं होगी। इसके लिए पब्लिक अवेयरनेस की जरूरत है।
एम्स में कराएं रेगुलर जांच
एम्स की कार्यकारी डायरेक्टर डॉ। सुरेखा किशोर के अनुसार डायबिटीज और इसके संबंधित खतरे समय के साथ बढ़ते जा रहे हैं और डायबिटिक रेटिनोपैथी जल्द ही एक प्रमुख विश्वव्यापी स्वास्थ्य संकट बन सकता है। मधुमेह के कारण होने वाली दृष्टि विकलांगता को कम करने के लिए डायबिटिक रेटिनोपैथी के बारे में जागरुकता पैदा करने और समुदाय के बीच रेटिनल स्क्रीनिंग के महत्व की तत्काल जरूरत है। एम्स में नेत्र विभाग में की जांचों की समुचित व्यवस्था है। इसलिए लोग अपना रेगुलर आंखों की जांच कराएं।