- गोरखपुर सिटी के एक चर्चित डाक्टर के साथ बड़हलगंज के एक डाक्टर थे निशाने पर
- हत्या के बाद लगाता था डी-नाइन जिंदाबाद के नारे, गैंग को कर रहा था और मजबूत
<- गोरखपुर सिटी के एक चर्चित डाक्टर के साथ बड़हलगंज के एक डाक्टर थे निशाने पर
- हत्या के बाद लगाता था डी-नाइन जिंदाबाद के नारे, गैंग को कर रहा था और मजबूत
GORAKHPUR:
GORAKHPUR:
रामनगर कड़जहां में गुरुवार की रात एनकाउंटर में ढेर हुए दो लाख के इनामी बदमाश धर्मेन्द्र सिंह के बारे में नया खुलासा हुआ है। एसटीएफ की माने तो वह गोरखपुर सिटी एरिया के दाउदपुर निवासी तथा बड़हलगंज के निवासी दो डॉक्टरों को मारने की ठान चुका था। दोनों ही हत्याओं को वह जल्द से जल्द अंजाम देना चाहता था कि गोरखपुर में हर एक डॉक्टर और पैसे वाले लोग उसके नाम से खौफ खाएं। अपने गैंग को मजबूती देने के लिए ही वह बिहार जा रहा था लेकिन रास्ते में वह मारा गया।
रंगदारी न मिलने का गुस्सा
शुक्रवार को पुलिस लाइन में आयोजित प्रेसवार्ता में एसटीएफ के एसएसपी अमित पाठक ने बताया कि कुछ महीनों के अंदर धर्मेन्द्र ने नये हथियार खरीदने के लिए डॉक्टरों से रंगदारी मांगनी शुरू की। इसके लिए उसने दाऊदपुर निवासी एक चर्चित हास्पिटल के डायरेक्टर से रंगदारी मांगी लेकिन डॉक्टर ने नहीं दी। इसके बाद उसने बड़हलगंज के चार डॉक्टरों से भी रंगदारी मांगी लेकिन इन सब ने भी मना करने के बावजूद पुलिस में कम्प्लेंट की। इससे नाराज धर्मेन्द्र ने दो डॉक्टरों को उड़ाने का फैसला कर लिया था।
चार सहयोगी निशाने पर
एसएसपी अमित पाठक ने ये भी बताया कि धर्मेन्द्र के सफाये के बाद उसके चार खास सहयोगी रडार पर हैं। उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाएगा ताकि उसके गैंग का खात्मा हो सके। उन्होंने बताया कि धर्मेन्द्र शातिर होने के साथ दुस्साहसिक भी था। उनके अपने साथियों से साफ कहा था कि पुलिस ने कभी घेरा तो वह सरेंडर नहीं करेगा बल्कि मुकाबला करेगा। वह पहले गैर जिले के एक एमएलसी से क्0 लाख की रंगदारी भी मांग चुका है। रकम न मिलने पर वह उनके घर चढ़ गया और मुंह में पिस्टल डालकर रुपए न देने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी। इसकी जानकारी मिलने पर उसके रडार पर लिया गया।
सहजनवां में था आना-जाना
धर्मेन्द्र को पिछले दो सालों ने गोरखपुर और आजमगढ़ की पुलिस तलाश रही थी। गोरखपुर निवासी एक माफिया की सरपरस्ती में वह सहजनवां इलाके में आता जाता रहता था। पंचायत चुनाव के दौरान भी वह खासा सक्रिय रहा। वह सक्रिय रहा। इस दौरान उसने गोरखपुर में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने का काम किया। पुलिस रिकार्ड के अनुसार धर्मेद्र सिंह के खिलाफ कुल फ्7 मुकदमे दर्ज हैं। मऊ, गाजीपुर, गोरखपुर, आजमगढ़ और भदोही में उसके कारस्तानियों की फेरहिस्त बढ़ने पर वह पुलिस की नजर में चढ़ने लगा।
शुरू से था मनबढ़, गैंग पर करता था गर्व
बता दें कि आजमगढ़ जिले के तरवां, खुटहन निवासी वीरेंद्र सिंह का बेटा धर्मेद्र सिंह ख्क् साल की उम्र में गैंगेस्टर बन गया। मऊ में रजिस्टर्ड डी-09 गैंग का सरगना धर्मेद्र बचपन में मऊ जिले के विनोद यादव उर्फ लालू से जुड़कर उसने अपराध की दुनिया में कदम बढ़ाया शुरू किया। बिहार के चर्चित सतीश पांडेय के करीबी होने के साथ उसका दायरा बढ़ता गया। बिहार से असलहे लाकर इस गैंग ने पूर्वाचल कई जिलों में लूट, मर्डर, सुपारी किलिंग, अपहरण करना शुरू किया। रंगदारी न देने वालों को नौ गोलियां मारकर धर्मेद्र 'डी-नाइन जिंदाबाद' के नारे लगाता था। उसे अपने गैंग पर बड़ा गर्व था।
कम हुए साथी बना सरगना
वर्ष ख्0क्फ् में गाजीपुर के कासिमाबाद में उसके खिलाफ पहली बार हत्या के प्रयास, साजिश रचने सहित कई धाराओं में मुकदमा हुआ। लालू के साथ मिलकर उसने कई वारदातें कीं। लालू के जेल जाने के बाद आशीष चौबे ने गैंग की कमान थाम ली। वर्ष ख्0क्भ् में बनारस के सिगरा इलाके में आशीष चौबे की गैंगवार में हत्या हो गई। इस गैंग का विक्रांत यादव कोलकाता में पकड़ा गया। एक अन्य सक्रिय सदस्य सुजीत सिंह उर्फ बुढ़वा के जेल जाने के बाद धर्मेद्र खुद गैंग का सरगना बन गया। आजमगढ़ के झांगुर सिंह, मेहनगर के दीपक सिंह, धर्मवीर सिंह, सरायमीर के नूर मोहम्मद और रवि यादव सहित उसने कई लोगों को जोड़ लिया।
सरकार ने दिया भ्0 हजार का इनाम
एसएसपी ने बताया कि कुख्यात को मुठभेड़ में मार गिराने वाली पुलिस टीम के सीओ विकास चंद त्रिपाठी, एसआई सत्य प्रकाश सिंह, पंकज शाही, संतोष सिंह, यशवंत, संतोष, भानु प्रताप, अनूप राय, इंद्र प्रताप सिंह, महेंद्र प्रताप, सुमित, उमेश और अनिल सहित पूरी टीम को प्रदेश सरकार ने अलग से भ्0 हजार का इनाम देने की घोषणा की है।
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ऋषिमुनि नहीं मांग रहा रंगदारी
एक अन्य सवाल के जवाब में एसएसपी अमित पाठक ने बताया कि प्रदेश के टॉप मोस्ट बदमाशों की तलाश में एसटीएफ लगी है। आजमगढ़ जिले की ट्रेजरी में तैनात अपर निदेशक रामानंद पासवान और देवरिया के डॉक्टर से रंगदारी मांगने के मामले में ऋषिमुनि शामिल नहीं है। शुरूआती जांच में उसके खिलाफ कोई सुराग नहीं मिले है। चंदन सिंह, धर्मेद्र और ऋषिमुनि के नाम का फायदा छुटभैये बदमाश भी उठा रहे हैं।