मच्छर से जंग पिछले कई दशकों से चल रही है और अब भी जारी है। हर साल बरसात से पहले छह से सात विभागों के तथाकथित जवान असलहों से लैस होकर मैदान में उतरते हैं, लेकिन धुंआधार लड़ाई के बाद अंत में जीत मच्छर की ही होती है। इस लड़ाई में साल दर साल विभागों का बजट बढ़ता गया, नहीं बदला तो सिर्फ ये कि नतीजा आज भी वही सामने आता है जो दशकों पहले आता था। इस साल भी मलेरिया विभाग और नगर निगम के साथ स्वास्थ्य विभाग ने कमर कस ली है, उम्मीद है इस बार विजेता नए हों।

हाल अब भी वही
मच्छरों के प्रकोप से दिन हो या रात लोगों की मुश्किलें कम नहीं हो पा रही हैं। जलभराव के चलते मच्छरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डेंगू से बचाव के लिए हर माह चार से पांच लाख रुपए खर्च होते हैं। डेंगू से निपटने के लिए मलेरिया विभाग और नगर निगम संयुक्त अभियान चला कर हर स्थान पर एंटी लार्वा के छिड़काव का दावा कर रही है। लेकिन हकीकत ये यही है कि मच्छर जैसे पहले परेशान कर रहे थे अब भी हाल वैसा ही है।

हर माह चार लाख खर्च
एंटी लार्वा को नष्ट करने में प्रयुक्त होने वाली किंगफाग, केमिकल, चूना और मैलाथियान खरीदने पर सालाना करीब 45 लाख रुपए खर्च होते हैं। ठेके के कर्मचारियों पर सालाना करीब एक करोड़ रुपये व्यय होता है। सिटी के 80 वार्डो में मैलाथियान के छिड़काव के लिए एक-एक ठेका कर्मचारी को रखा गया है। मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए एंटी लार्वा का छिड़काव किया जा रहा है। हर माह लाखों खर्च के बाद भी मच्छरों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

टाइगर व क्वीन
गोरखपुर में पाए जाने वाले करीब 30 प्रजाति के मच्छरों में टाइगर व क्वीन सरीखे मच्छर बेहद खतरनाक हैं। इन्हें काबू करने के लिए सरकारी महकमा पूरी तरह नाकाम है। शहर के अधिकांश पैथोलॉजी में रोज पांच सौ से अधिक मरीजों के खून की जांच मलेरिया रोग का पता लगाने के लिए होती है। प्रतिदिन 25 से 30 मरीजों में मलेरिया की पुष्टि भी होती है।

पिछले वर्ष मलेरिया विभाग की ओर से मच्छरों के घनत्व को लेकर हुए सर्वे में कई इलाके संवेदनशील पाए गए थे। टीपीनगर, लाल डिग्गी, राप्तीनगर व बस स्टेशन क्षेत्र में मच्छरों का घनत्व सबसे ज्यादा मिला था। मोहद्दीपुर में आरकेबीके के पास व लालडिग्गी स्थित पोखरों में तो डेंगू के मच्छर मिले थे।

सालाना कारोबार 75 करोड़ का
मच्छरों से बचने के लिए शहरी हर माह औसतन सौ रुपये खर्च करते हैं, जबकि सिर्फ गोरखपुर में मच्छर से बचाव के उत्पाद का सालाना कारोबार 75 करोड़ का है। कंपनियां नये-नये दावे के साथ अपने उत्पाद लांच करती हैं। थोक व्यापारी जमशेद अहमद का कहना है कि मच्छरों को काबू करने का उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का सर्वाधिक जोर पूर्वाचल के ही जिलों में होता है। शहर में डेढ़ लाख परिवारों में से आधे से अधिक परिवार मच्छरों के प्रकोप से बचने के लिए 100 रुपये से अधिक खर्च करते हैं।

नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ। राजेश कुमार ने बताया कि सिटी में नगर निगम की टीम एंटी लार्वा का छिड़काव लगातार करा रही है। इसके साथ ही सर्वे के दौरान लोगों को डेंगू एवं अन्य वेक्टर जनित रोगों से बचाव के संबंध में जानकारी देते हुए प्रचार-प्रसार सामाग्री, हैंडबिल और पम्पलेट का वितरण किया जा रहा है।