- डीडीयूजीयू मे ज्योग्राफी डिपार्टमेंट की टीम कर रही है काम

-बाढ़ और भूकंप प्रभावित एरिया में समय से पहुंचाई जा सकेगी राहत सामग्री

GORAKHPUR: चाहे प्राकृतिक आपदा हो या फिर दैवीय आपदा। हम इसे रोक तो नहींसकते है, लेकिन ऐसा तो कुछ कर ही सकते हैं कि जिससे इससे जानकारी समय से पहले हो जाए और हम इसके लिए तैयार हो सकें। इसी तर्ज पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी (डीडीयूजीयू) के जियोग्राफी डिपार्टमेंट ने एक नयी टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया है। इस तकनीक की मदद से गोरखपुर और आस पास के जिलों में आने वाली प्राकृतिक आपदा या दैवीय आपदा की स्थिति में राहत आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यह सब होगा एक सॉफ्टवेयर की मदद से। यह तकनीक डिजास्टर मैनेजमेंट में काफी सहायक हो सकती है। इसके इस्तेमाल को लेकर डीडीयूजीयू के जियोग्राफी डिपार्टमेंट में स्पेशल टीम वर्क कर रही है।

तीन टेक्नोलॉजी का किया जा रहा यूज

डीडीयूजीयू जियोग्रॉफी डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के मुताबिक, गोरखपुर व आसपास के क्षेत्र जो बाढ़ प्रभावित एरियाज हैं या फिर यहां की कृषि पर प्राकृतिक आपदा का प्रकोप है, वहां पर रिमोट सेंसिंग, जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) और ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की मदद से राहत और बचाव कार्य किया जा सकता है। खास बात यह है कि इन तीनों तकनीक की मदद से बाढ़ या भूकंप की जानकारी कुछ देर पहले ही मिल सकेगी, ताकि राहत मशीनरी को तैयार किया जा सके। इसके लिए ज्योग्राफी डिपार्टमेंट की टीम ने वर्क करना शुरू कर दिया है।

सॉफ्टवेयर करेगा एनालिसिस

इस तकनीक पर काम करने वाली टीम में प्रो। नूतन त्यागी, प्रो। पीआर चौहान, प्रो। एसके दीक्षित, डॉ। एनके राणा व सहयोगी डॉ। अजय प्रताप निषाद हैं। इस टीम को लीड कर रही प्रो। नूतन त्यागी बताती हैं कि रिमोट सेंसिंग के माध्यम से हम सोलर एनर्जी के द्वारा रेडिएट की गई किरणों के माध्यमों से धरातलीय तथ्यों की इमेज बना सकते हैं। साथ ही डिफरेंट टाइप्स के सॉफ्टवेयर से उनका एनालिसिस किया जाता है। इन सबके बाद जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम की मदद से एनालिाइज की गई इमेजेज को स्टडी कर आंकड़े निकाले जाते हैं।

हम जिस तकनीक पर काम कर रहे हैं, उससे हमें बाढ़ या भूकंप प्रभावित इलाकों में राहत पहुचाने में मदद मिलेगी। साथ ही हमे ऐसी आपदा की जानकारी भी कुछ समय पहले ही मिल सकेगी।

प्रो। नूतन त्यागी

इन सॉफ्टवेयर का किया जा रहा है इस्तेमाल

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