- डीडीयूजीयू में चलने वाले कई कोर्सेज के रिसर्च के लिए स्टूडेंट्स के लिए नहीं है कोई व्यवस्था
- सेल्फ फाइनेंस के तहत चलने वाले डिग्री कोर्सेज में रिसर्च के लिए नहीं है विषय विशेषज्ञ
GORAKHPUR : नई चीजें जानने की क्यूरियोसिटी हर स्टूडेंट्स के मन में होती है। स्टूडेंट्स के मन में यही सवालों के भंवर उठते हैं कि अगर ऐसा होता, तो क्या होता? अगर ऐसे नहीं तो कैसे? इन सभी सवालों के जवाब के लिए सभी रिसर्च पर बेस्ड होते हैं। सभी यूनिवर्सिटीज और कॉलेज के प्रोफेसर अपने अंडर में स्टूडेंट्स को रिसर्च कराते हैं। लेकिन, डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी इन सबसे निराली है। यहां कुछ सब्जेक्ट ऐसे हैं जहां स्टूडेंट्स हैं, उनके मन में क्यूरियोसिटी है, टीचर्स भी हैं और उनके अंडर सीट भी वैकेंट है, लेकिन बावजूद इसके यूनिवर्सिटी रिसर्च कराने की पहल नहीं कर सकी है। वह रिसर्च के लिए लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर की सर्च में लगे हुए हैं, लेकिन एक साल का वक्त गुजरने के बाद भी उन्हें अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी है।
मीटिंग कर भूल गए जिम्मेदार
साइंस डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के मुताबिक, रिसर्च इन माइक्रोबॉयोलॉजी के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज की मीटिंग ऑर्गेनाइज की गई थी। इसमें कोर्स में रिसर्च कराने के लिए पॉजिटिव रिस्पांस भी मिला, लेकिन इसके बाद न तो फैकेल्टी मीटिंग्स ऑर्गेनाइज हुई और न इस टॉपिक पर कोई डिस्कशन हुआ। नतीजा, धीरे-धीरे यह यह टॉपिक ठंडे बस्ते में चला गया। यूनिवर्सिटी टीचर्स की मानें तो किसी भी नये रिसर्च या कोर्स को स्टार्ट करने के लिए यूनिवर्सिटी में वर्किंग सभी एकेडमिक बॉडीज की परमिशन लेनी पड़ती है, लेकिन कोई मीटिंग न होने से इसपर कोई फैसला न हो सका।
सेल्फ फाइनेंस कोर्स के तहत संचालित हैं कोर्सेज
इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री और एनवॉयर्नमेंटल साइंस एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाता है। टीचर्स के भारी कमी की वजह से स्टूडेंट्स को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वहीं माइक्रो बायोलॉजी से रिसर्च को लेकर एमएससी माइक्रो बायोलॉजी के स्टूडेंट्स को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्टूडेंट्स की मानें तो उनके यहां कोई परमनेंट टीचर्स न होने से क्लासेज और प्रैक्टिकल के लिए प्रॉब्लम फेस करनी पड़ रही हैं।
जुगाड़ पर चल रही हैं क्लासेज
यूनिवर्सिटी में चलने वाले सेल्फ फाइनेंस्ड कोर्सेज भगवान भरोसे हैं। यहां कोई भी परमनेंट टीचर नहीं है। क्लासेज भी जुगाड़ के सहारे चल रही हैं। बॉटनी के किसी टीचर का खाली वक्त हुआ, तो उसने क्लास ले ली, वहीं किसी जूलॉजी टीचर ने खाली वक्त निकालकर क्लास ले ली। सोर्सेज की मानें तो चाहे इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री हो या फिर एनवायर्नमेंटल सांइस, डिजास्टर मैनेजमेंट हो, माइक्रो बॉयोलॉजी हो, डिप्लोमा इन योगा या फिर डिप्लोमा इन बीजे। हर जगह टीचर्स की कमी की वजह से स्टूडेंट्स को प्रॉब्लम है।
क्या है रिसर्च के नियम
यूनिवर्सिटी से मिली जानकारी के मुताबिक, रिसर्च करने के लिए जरूरी है कि कैंडिडेट्स नेट क्वालिफाई हो। इसके अलावा यूनिवर्सिटी लेवल पर होने वाली प्री-पीएचडी कोर्स के लिए ऑर्गेनाइज एंट्रेस एग्जाम में शामिल होकर भी पीएचडी कर सकता है, लेकिन अगर कैंडिडेट्स पीएचडी के इनरोल्ड हो भी जाता है और अगर उसे गाइड नहीं मिलता है, तो भी उन्हें रिसर्च करने के लिए इंतजार करना पड़ेगा।
टीचर नंबर ऑफ स्टूडेंट्स
प्रोफेसर 8
एसोसिएट प्रोफेसर 6
असिस्टेंट प्रोफेसर 4
सेल्फ फाइनेंस के तहत चलने वाले कोर्सेज
- इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री (एक सब्जेक्ट के रूप में)
- एनवायर्नमेंटल साइंस (एक सब्जेक्ट के रूप में)
- डिजास्टर मैनेजमेंट (डिप्लोमा कोर्स)
- माइक्रो बायोलॉजी (डिग्री कोर्स)
- योगा (डिप्लोमा कोर्स)
- बैचलर ऑफ जर्नलिज्म (डिप्लोमा कोर्स)
एमएससी माइक्रो बायोलॉजी से पढ़ाई करता हूं, मेरा मन है कि रिसर्च यहां से करूं, लेकिन संसाधन के अभाव में रिसर्च की यहां कोई सुविधा दिखाई नहीं देती। अब आगे क्या होगा। कुछ पता भी नहीं।
कैलाश नाथ
रिसर्च को लेकर कई बार टीचर्स से बात की, लेकिन अब तक रिसर्च को लेकर कोई फैसला नहीं आया। अगर यही हाल रहा तो दूसरे यूनिवर्सिटी से रिसर्च किए जाएंगे।
नेहा
टीचर्स ही नहीं है। अब ऐसे में रिसर्च का सवाल ही नहीं उठता। जब एक्सपर्ट ही नहीं होंगे तो कहां से रिसर्च कराएंगे। इसके लिए तो अभी यूनिवर्सिटी लेवल पर कवायद चल रही है।
प्रियंका
स्टूडेंट्स के रिसर्च के लिए प्रयास किया जा रहा है। पहले तो टीचर्स की कमी को दूर किया जाए। इसके बाद बाकी समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी।
प्रो। अशोक कुमार, वीसी, डीडीयूजीयू