GORAKHPUR: महिला सुरक्षा की बात करने वाला समाज खुद असंवेदनशील है। महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं के प्रति समाज को जागरूक करने की सख्त जरूरत है। ये बातें उठी आई नेक्स्ट की तरफ से महिला अपराध के विषय पर हुए ग्रुप डिस्कशन में। इसमें सामाजिक कार्यकत्री और छात्राओं ने इस बात पर जोर दिया कि लड़कियों को खतरों का सामना डर कर नहीं, डट कर करना चाहिए। पैरेंट्स साथ दें, तभी समाज की बुराईयों को दूर किया जा सकता है। लोक-लाज व समाज के डर से इन घटनाओं को सामने आने से न रोके। इसमें पुलिस का भी सहयोग होना चाहिए।
आज कल लड़कियों के साथ ज्यादा क्राइम हो रहा है। इस पर हम सभी को आवाज उठाने की जरुरत है। साथ ही इसकी शिकायत हेल्पलाइन पर की जाए। इसमें फैमिली मेंबर्स को सपोर्ट करना चाहिए। अगर लड़के लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो कड़ा जवाब देना होगा। सबको जागरूक करने की आवश्यकता है। यदि लड़कियां अपने मां-बाप से शिकायत करती हैं तो उनका पूरा सहयोग करना चाहिए।
अंशु यादव, बीए प्रथम वर्ष
आजकल जो हो रहा है वह ठीक नहीं है। लड़कियां समाज के डर से कुछ नहीं बोल पाती है। अगर परिवार के लोगों से कुछ बोला जाता है तो वह भी बच्चों को ही डाटते हैं। हम परिवार के लोगों को जागरूक करे तो सबकुछ ठीक हो सकता है। लड़के यदि लड़कियों को गलत नजरिए से देखते हैं तो उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है। तभी जाकर सिस्टम को ठीक किया जा सकता है।
दीपिका चौरसिया, बीए प्रथम वर्ष
लड़कियों के साथ किसी प्रकार की घटना होती है तो वह पहले ही डर जाती है और अपने परिवार वालों से भी नहीं बताती है। यदि परिवार के लोग भी जानते हैं तो बच्चों पर ही दबाव डालते हैं। लड़कियां सोचती है कि अब क्या किया जाए। उन्हें अपनी सोच को बदलना चाहिए और मनचलों से डटकर सामना करना चाहिए। साथ ही इसकी कंप्लेन पुलिस में दर्ज करानी चाहिए।
सम़द्धि चौरसिया, बीए प्रथम वर्ष
घर से बाहर निकलने पर लड़कियां अपने आपको असुरक्षित महसूस करती है। उनका हौसला बढ़ाने की जरूरत है। तभी लोग सहयोग करेंगे। अन्य जिले से आने वाली लड़कियां शहर में आने से डरती है कि उनके साथ कुछ हो ना जाए। परिवार के लोग भी ऐसा सोचते हैं। हम सभी सोच बदले तभी जाकर किसी भी बुराई से सामना कर सकते हैं। छेड़खानी आदि मामले को दबाना नहीं चाहिए। अगर हम कोई भी डराने की कोशिश करें तो उससे डरना नहीं चाहिए। समाज का डट कर सामना करना चाहिए।
सुभद्रा मणि, एमए प्रथम वर्ष
लड़कियां पहले ही किसी चीज को गंभीरता से ले लेती है। उन्हें पहले इस मसले पर विचार करना जरूरी है। लड़के और लड़कियों में मतभेद नहीं करना चाहिए। अगर उनके साथ कोई घटना होती है तो उन्हें डट कर सामना करना चाहिए। साथ ही पहले अपने परिजन इसके बाद पुलिस में कंप्लेन करना चाहिए। लड़कियों में अगर एकजुटता हो तो मिलकर इन बुराईयों को खत्म किया जा सकता है।
प्रीति मिश्रा, एलएलबी द्वितीय समेंस्टर
शिक्षा सबसे बड़ा रो प्ले करता है। अगर हम इस पर ध्यान दे तो कुछ भी असंभव है। जो अशिक्षित है, जिन्हें किसी चीज का ज्ञान नहीं है वहीं इस तरह के अत्याचार करते हैं। अगर लड़के अपनी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे तो इस प्रकार की घटनाओं पर लगाम लगाया जा सकता है। हमारा समाज ही उन्हें अलग करता है। जाति भेदभाव उनके अंदर कुटकुट कर भर देते हैं। हम लड़कियों में एकजुटता जरूरी है। अगर हम एक रहे तो इन बुराईयों को दूर कर सकते हैं। इसमें सबसे ज्यादा माता-पिता का भी सहयोग होना चाहिए। डर यह भी लगता है कि अगर माता पिता से कोई बात की जाए तो वह स्पोर्ट करेंगे की नहीं। इसलिए कुछ नहीं बोल पाते हैं।
रिचा चौधरी, महामंत्री डीडीयूजीयू
समस्या हर शहर की है। यदि लड़कियों के साथ कुछ भी होता है तो फैमिली मेंबर्स ज्यादा फीक्र करते हैं। लोगों की मानसिकता बुरी है। यदि लड़कों पर कोई पाबंदी नहीं हैं तो लड़कियों पर क्यों? गांव में महिलाएं नेचुरल कॉल के लिए जाती है तो उनके साथ रेप व छेड़खानी होती है। वहीं, शहर में शाम को लड़कियां ट्यूशन के लिए निकलती है तो परिवार के लोग परेशान होते हैं। हम अपनी सोच को बदला चाहिए। लड़का व लड़कियों में कोई अंतर नहीं रखना चाहिए। शादी होने के बाद लड़कियों पर घर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी होती है। शहर में महिलाओं को जागरूक करने के लिए तमाम कार्यक्रम किए गए। यदि महिलाओं का कोई कार्यक्रम होता है तो वहां पर उनकी संख्या काफी कम होती है लेकिन वहीं पुरुषों के कार्यक्रम में काफी संख्या होती है। महिलाओं को भी एकजुट होने की जरूरत है। तभी जाकर बुराईयों को दूर किया जा सकता है और महिलाएं सुरक्षित रह सकती है। महिलाओं के उत्पीड़न के लिए शुरू से ही आवाज उठाती रही हूं। मेरा मानना है कि महिलाओं को डर कर नहीं डट कर सामना करना चाहिए।
प्रगति सहाय, वरिष्ठ समाज सेविका