- सिटी के कोविड अस्पतालों की लगातार आ रही कंप्लेन
-कई हॉस्पिटल में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भेज रहे बीआरडी
GORAKHPUR:
अगर आप कोरोना के मरीज हैं और आप प्राइवेट कोविड हॉस्पिटल में इलाज के लिए सोच रहे हैं तो आप लाखों रुपए बजट खर्च के लिए तैयार रहिए और साथ ही इस बात के लिए भी तैयार रहिए कि आपके मरीज की जान बचेगी भी या नहीं, क्योंकि ऐसा ही मामला प्रकाश में इन दिनों इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम में खूब आ रहे हैं। दरअसल, इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम में इन दिनों इस तरह की शिकायतें आ रही हैं कि कोविड के प्राइवेट हॉस्पिटल में पहले ही 80-90 हजार रुपए इलाज के नाम पर जमा करा लें रहे हैं, उसके बाद मरीज के सीरियस होने पर उसे हॉयर सेंटर के लिए रेफर कर दे रहे हैं। इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम में आए कंप्लेन में 76 वर्षीय आरपी मौर्या के परिजनों का कॉल आया। परिजनों ने बताया कि अपने मरीज को पहले राप्तीनगर स्थित एक हॉस्पिटल में एडमिट कराया। उसके बाद छात्रसंघ स्थित प्राइवेट कोविड हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया लेकिन डेढ़ लाख रुपए से अधिक खर्च होने के बाद भी मरीज के हालत में सुधार नहीं होने पर परिजनों ने इसकी शिकायत कंट्रोल रूम में की तो उप जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी सुनीता पटेल ने मरीज को बीआरडी में एडमिट करवाया। जहां पर मरीज का इलाज चल रहा है। इसी प्रकार रूस्तमपुर के रहने वाले बाबूलाल बताते हैं कि उनके पिता जी को जब कोरोना हुआ तो वह कोविड के प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के लिए पहुंचे। उनसे पहले ही 75 हजार रुपए जमा करवा लिया गया। उसके बाद स्थिति बिगड़ी तो बीआरडी मेडिकल कालेज एडमिट कराया। उसके बाद इलाज होने के बाद वह स्वस्थ हो गए।
डेली आ रहे 6-7 कॉल
बता दें, एक तरफ जहां प्राइवेट पैथोलॉजी संचालक कोरोना की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर मनमानी रुपए वसूल रहे हैं। वहीं प्राइवेट कोविड हॉस्पिटल के डॉक्टर भी लंबा चौड़ा इलाज का खर्च बना रहे हैं। हर आधे घंटे में मरीज के इलाज के लिए मेडिसिन, इंजेक्शन, कॉटन, पीपीई किट व अन्य जांच समेत लिस्ट परिजनों को फोन करके पकड़ा रहे हैं। परिजन भी मरीज की जान बचाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। उसके बाद भी रिस्पांस नहीं आने पर प्राइवेट हॉस्पिटल सीधे पल्ला झाड़ते हुए हायर सेंटर के लिए रेफर कर दे रहे हैं। इस तरह के डेली करीब 6-7 कॉल्स इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम में आ रहे हैं।
सरकारी है बेस्ट
वहीं, जिस प्रकार से कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए जब से होम आईसोलेशन की सुविधा शुरू हुई। तब से केवल सीरियस मरीज ही कोविड हॉस्पिटल के लिए रूख कर रहे हैं। लेकिन बेहतर इलाज के लिए लोग सरकारी हॉस्पिटल में जाने के बजाय सीधे प्राइवेट में पहुंच रहे हैं। जबकि सरकारी कोविड हॉस्पिटल में बेड भी खाली है। जिला प्रशासन की माने तो बेहतर होगा कि कोविड के जो एल-1, एल-2 व एल-3 मरीज हैं। वे सरकारी हॉस्पिटल में एडमिट हो। जहां पर उन्हें भारी भरकम पैसे खर्च करने से बच सकते हैं।
बीआरडी खराब कर रहे छवि
वहीं बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डॉ। गणेश कुमार बताते हैं कि कोरोना के जिन मरीजों को एडमिट किया जा रहा है। वे मरीज बेहद गंभीर होते हैं। ऐसे में इलाज करना बहुत कठिन हो जाता है। लेकिन फिर हमारी टीम मरीज को स्वस्थ करने में लगी रहती है। लेकिन जितने भी रेफर केस आ रहे हैं। वह पहले से ही सिरियस आ रहे हैं। कहीं न कहीं प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के बाद जब सीरियस हो जाते हैं। तब बीआरडी आते हैं। ऐसे में जो बीआरडी पहले आएगा तो उसके इलाज में आसानी होगी।
इन हॉस्पिटल में खाली है जगह
200 बेड कोविड हॉस्पिटल बीआरडी मेडिकल कालेज
फैसिलिटी आईसीयू बेड - 50
आईसीयू बेड वैकेंट - 12 (वेंटिलेटर -3, एचएफएनसी- 9)
फैसिलिटी आईसोलेशन बेड - 150
वैकेंट - 112
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500 बेड बाल चिकित्सालय, 150 बेड कोविड-19 हॉस्पिटल बीआरडी मेडिकल कालेज
फैसिलिटी आईसीयू बेड -100
आईसीयू बेड वैकेंट - 16 (वेंटीलेटर -6, एचएफएनसी -10)
फैसिलिटी आईसोलेशन - 50
आईसोलेशन बेड वैकेंट - 50
नोट - केवल 150 बेड पर ही बाल चिकित्सालय कोविड अस्पताल में इलाज चल रहा है।
नोट - यह आंकड़ा 27 सितंबर तक के हैं।
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- रेलवे हॉस्पिटल एल-2 में 25 बेड में 21 खाली हैं
- स्पोर्ट्स कालेज एल-1 में 153 बेड में 153 खाली हैं। (सेनेटाइजर करवा कर बंद करवा दिया गया)
- टीबी अस्पताल नंदा नगर एल-2 में 60 बेड में 40 बेड खाली है।
- बीआरडी में एल-1 150 में 111 खाली है।
वर्जन
इस बात की लगातार शिकायत आ रही है कि लाखों रुपए खर्च होने के बाद भी मरीज के स्वस्थ नहीं होने पर उन्हें रेफर कर दिया जा रहा है। ऐसे केसेज की हम लोग लगातार मानिटिरिंग कर रहे हैं। मीटिंग के दौरान प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों को इस बात का निर्देश भी दिया गया था। लेकिन वह अपनी मनमानी कर रहे हैं। आदेश मिलने पर उन पर कार्रवाई की जाएगी।
डॉ। श्रीकांत तिवारी, सीएमओ
वर्जन
कोरोना मरीजों के लिए इलाज के लिए पूरा प्रयास किया जाता है। ऐसा नहीं है कि कोई जानबूझकर केस को सीरियस करेगा। कोरोना के मरीज स्वस्थ होकर भी जाते हैं। जो सीरियस होते हैं। जिन्हें पहले से भी गंभीर बीमारी होती है। उन्हें परिजनों के स्वेच्छा पर ही रेफर किया जाता है।
डॉ। एसएस कौशिक, प्रेसिडेंट आईएमए