- आज गीता प्रेस प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच श्रम विभाग दिया था समझौते का समय
- 92 साल की इतिहास में दूसरी बाद बंद हुआ गीता प्रेस का उत्पादन
GORAKHPUR: दुनिया को कर्म का संदेश देने वाले गीता प्रेस इन दिनों काफी चर्चा में है। इस बार वजह कर्म नहीं बल्कि पिछले तीन दिन से पब्लिशिंग वर्क पर पड़ रहा इफेक्ट है। 8 अगस्त को 18 कर्मचारियों के निलंबन और सामूहिक कटौती के आदेश से भड़के एंप्लाइज ने परिसर में ही धरना-प्रदर्शन कर अपनी बात को प्रबंधन तक पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन मैनेजमेंट की ओर से कोई रिस्पांस न मिलने पर उन्होंने श्रम न्यायालय की शरण ली। वहीं गीता प्रेस मैनेजमेंट एंप्लाइज के रवैये की वजह से बात करने से कतरा रहा है। उनका कहना है कि कर्मचारी हिंसक हो गए है। ऐसे में इनसे वार्ता करना असंभव है।
मीटिंग में नहीं पहुंचे मैनेजमेंट के लोग
पिछले कुछ दिनों से चल रही प्रॉब्लम को दूर करने के लिए उप श्रमायुक्त ने पहल की थी। उन्होंने ट्यूज्डे को अपने कार्यालय पर सुबह 10 बजे से समझौता मीटिंग रखी थी, लेकिन गीता प्रेस मैनेजमेंट की ओर से जिम्मेदार न पहुंचने की वजह से समझौता नहीं हो पाया। गीता पे्रस के 92 साल के इतिहास में दूसरी बार ऐसा मौका आया है, जब गीता प्रेस में प्रॉडक्शन वर्क पर पूरी तरह से ठप हो गया है।
एक दल पहुंचा उप श्रमायुक्त ऑफिस
गीता प्रेस में कार्य बहिष्कार कर रहे कर्मचारी सुबह 10 बजे गीता प्रेस कैंपस में पहुंच गए। वहां से उप श्रमायुक्त की समझौता वार्ता में भाग लेने के लिए पांच सदस्यीय टीम वहां से रवाना हो गई, वहीं 500 से अधिक कर्मचारी गीता प्रेस परिसर में ही भजन कीर्तन करने लगे। कर्मचारियों ने बताया कि सुबह 10 बजे से लेकर शाम 4 बजे यह सिलसिला जारी रहा। और फिर भगवान से प्रबंधन को सदबुद्धि देने की प्रार्थना करके वापस चले गए।
मंडे को हम लोग उप श्रमायुक्त से मिलकर हमने अपनी बात रखी था, जिस पर ट्यूज्डे को समझौते के लिए समय दिया गया था। हमारा प्रतिनिधिमंडल तो टाइमली पहुंच गया लेकिन प्रबंधन की तरफ से कोई व्यक्ति न आने के कारण समझौता नहीं हो पाया।
मुनिवर मिश्रा, कर्मचारी, नेता गीता प्रेस
ट्यूज्डे को कर्मचारियों और गीता प्रेस प्रबंधन के बीच समझौता कराने का समय निर्धारित किया गया था, लेकिन प्रबंधन की टीम की तरह से कोई न ओन के कारण समझौता नहीं हो पाया। आज फिर से समझौता का समय दिया गया है, अगर इस बार प्रबंधन की ओर से कोई नहीं आता है तो एक पक्षीय निर्णय लिया जा सकता है।
सियाराम सिंह, सहायक श्रमायुक्त