- 14 अगस्त को कूपवाड़ा के पास लगी गोली, 22 अगस्त को जम्मू में हुई मौत

GORAKHPUR: यू तो जन्म की ही तरह मृत्यु भी जीवन का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें मौत के वर्षो बाद भी आम जनमानस में यश काया के रूप में मौजूद माना जाता है। निश्चित रूप से स्थानीय बिछिया कॉलोनी निवासी राइफल मैन शिव सिंह क्षेत्री उर्फ दीपू ने ऐसी ही मौत का वरण किया है। मात्र 23 वर्ष की आयु में ही देश की रक्षा करता हुआ हंसते-हंसते गोली खाकर खुद को देश के लिए कुर्बान कर दिया।

बिछिया का लाल

कारगिल में शहीद होने वाले गोरखपुर के एक मात्र युवक शिव सिंह छेत्री का बचपन बिछिया में बीता है। 10वीं तक की पढ़ाई नेहरू इंटर कॉलेज से और 11वीं की पढ़ाई एमपी इंटर कॉलेज से किए। अपने बैच में सबसे होनहार छात्र के रूप में शिव सिंह छेत्री अपने टीचर्स और दोस्तों के बीच बने रहते थे। हमेशा अपने दोस्तों के साथ मदद के लिए एक कदम आगे बढ़कर भाग भी लेते रहते थे।

बचपन से ही शौक

बचपन से सेना में जाने की इच्छा रखने वाले शिव सिंह छेत्री का सपना तब पूरा हुआ जब वह 11वीं में एमपी इंटर कॉलेज में एडमिशन लिया और पिता की बनारस में पोस्टिंग हुई। शिव सिंह 11वीं की पढ़ाई छोड़कर बनारस अपने पिता के पास चले गए। पिता से कहा कि हमें भी सेना में भर्ती होना है। उस समय बनारस में गोरखा रेजीेमेंट में भर्ती चल रही थी। 1 अक्टूबर 1995 में शिव सिंह छेत्री की भर्ती गोरखा रेजीमेंट में हुआ।

2001 में हुआ अनावरण

शहीद दीप के नाम से बिछिया में मुख्य मार्ग बनाया गया। देश के लिए शहीद दीपू के नाम से जहां बिछियावासियों को एक नाम मिला वहीं एक जुलाई 2001 को इनके नाम की मूर्ति का अनावरण किया गया। सांसद महंत योगी आदित्यनाथ ने शहीद दीपू के मूर्ति का अनावरण किया। इस मौके पर तत्कालीन एसएसपी विजय कुमार विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। तब से दीपू की प्रतिमा के पास बैठक कर पिता गोपाल सिंह क्षेत्री अपने बेटे के याद में खोए रहते हैं।

पिता का कोट

इतिहास में बेटे ने बाप का नाम अमर किया है। बेटे के नाम से ही बाप के नाम की पहचान होती है। मैं खुद सैनिक होने के बाद इस बात पर अधिक गर्व करता हूं कि कारगिल शहीद शिव सिंह छेत्री का पिता हूं। आज भी गोरखपुर की जनता मेरे नाम से नहीं बल्कि मुझे बेटे के नाम से जानती है। ऐसे बेटे पर एक पिता केवल गर्व ही कर सकता है।

गोपाल सिंह छेत्री, पिता शहीद शिव सिंह छेत्री

कोट्स

दीपू मेरा क्लास मेट था। नेहरू इंटर कॉलेज में 9वीं और 10वीं हम दोनों ने साथ ही पास किया था। दीपू स्वभाव से बेहद हंसमुख था। वह हमेशा हम सभी को हंसाता रहता था। लेकिन जब उसने 11वीं में एमपी इंटर कॉलेज में एडमिशन ले लिया उसके बाद हम दोनों का साथ छूट गया, लेकिन दोस्ती कहीं से फीकी नहीं पड़ी। हालांकि इसी बीच उसका सेलेक्शन आर्मी में हो गया। वह जब कभी घर आता था, मुलाकात जरूर होता था। लेकिन जब वह नहीं रहा तो बेहद दुख हुआ, लेकिन गर्व इस बात का रहा कि उसने अपने देश की सुरक्षा के लिए बॉर्डर पर अंतिम दम तक संघर्ष करता रहा।

दीन बंधु पांडेय, पड़ोसी

मेरी जनरल स्टोर की दुकान है। चूंकि वह मेरे सामने बेहद छोटा था। जब भी वह दुकान पर सामान खरीदने आता था, उससे हमेशा उसके कॉमेडी को जरूर हम सब सुनते थे। बेहद सरल और मिलनसार स्वभाव होने के चलते उसकी आज भी याद आती है। लेकिन गर्व इस बात का हमेशा रहता है कि हमारे मोहल्ले का दीपू भले ही हमारे बीच न हो, उसकी यादें आज भी हम सब के जेहन में मौजूद हैं।

रमेश मौर्या, पड़ोसी

हम सब अभी नए नए मोहल्ले के बाशिंदे हुए थे। इसी बीच दीपू और उसके बड़े भैया से भी अक्सर मुलाकात होती रहती थी। कोई ऐसा घर नहीं होगा कि उसे न जानता हो। लेकिन जब उसके शहीद होने की जानकारी मिली तो मोहल्ले में कोहराम मच गया। आज भी उसकी प्रतिमा देखने के बाद उसका बचपना याद आ जाता है।

जितेंद्र कुमार शुक्ला, पड़ोसी

शहीद 'दीपू' का परिचय

नाम - शिव सिंह छेत्री उर्फ दीपू

योग्यता - 10वीं पास

पता - जंगल तुलसी राम, सर्वोदय नगर बिछिया, गोरखपुर

आर्मी में भर्ती - 1995 में

आर्मी में ट्रेनिंग - 39 जीटीसी, वाराणसी

पहली पोस्टिंग - 4-9जीआर गलेशियर, इसके बाद कानपुर यूनिट में आ गई, कानपुर के डेपूटेशन में 32आरआर (राष्ट्रीय राइफल) नागालैंड के लिए भेजा गया।

कब हई लड़ाई - 1999 में 32आरआर नागालैंड से कश्मीर कुपवाड़ा भेजा गया।

हादसा - एंबुस (घात लगाना) के दौरान दोनों ओर से गोलियां चली, उसके बाद इनकों एक गोली सिर में लगी। आठ दिन तक जम्मू एमएच में एडमिट रहे।

फैमिली परिचय

पिता का नाम - गोपाल सिंह रिटायर्ड नायब सूबेदार

मां का नाम - गीता देवी

बड़ा भाई - दीपक सिंह

छोटा भाई - दिनेश सिंह

बहन - बीना और रेनू