गोरखपुर (ब्यूरो)।यह खुद में 200 साल से ज्यादा का इतिहास समेटे हुए है। चर्च की बनावट एवं उसकी खूबसूरती लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
पत्थरों की खूबसूरती आज भी बरकरार
क्राइस्ट चर्च के पुरोहित डीआर लाल ने बताया कि 1820 में इसका निर्माण हुआ था। कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन, फस्र्ट मेट्रोपॉलिटन ऑफ इंडिया ने एक मार्च 1841 को इसका पवित्रीकरण किया था। इसमें तब अंग्रेज अधिकारी प्रार्थना करते थे। देश आजाद हुआ तो इस चर्च को आमजन के लिए खोल दिया गया। इस चर्च के प्रार्थना सभा हॉल की दीवारों पर लगे पत्थरों की खूबसूरती आज भी बरकरार है।
लाल गिरजाघर के नाम से फेमस कैथोलिक चर्च
सिविल लाइंस स्थित कैथोलिक चर्च सेंट जोसेफ को कभी लाल गिरजाघर के नाम से जाना जाता था। लाल रंग का होने की वजह से उसे लाल गिरजाघर कहा जाता था। हालांकि, समय के साथ रंग और स्वरूप दोनों बदलते गए, लेकिन पहचान लाल गिरजाघर के रूप में बनी रही। इसकी स्थापना सन् 1860 में हुई थी। कैथोलिक मसीही विश्वासियों का यह मदर चर्च है। शुरुआती दौर में इसमें केवल अंग्रेज अफसरों को ही प्रेयर करने की इजाजत थी। बाद में जब बिहार के बेतिया जिले से बड़ी संख्या में कैथोलिक मसीही विश्वासी गोरखपुर आए तो यहां उन्हें ईश्वर की उपासना और प्रार्थना करने में दिक्कत आने लगी। ऐसे में जरूरत को देखते हुए उन विश्वासियों को लाल गिरजाघर में प्रार्थना करने की इजाजत दे दी गई। क्रिसमस के समय इसकी सजावट को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां सजाई जाने वाली आकर्षक झांकियां हर किसी का ध्यान खींचती हैं। हर जाति-धर्म के लोग इसे देखने चर्च में आते हैं।
सेंट जॉन्स चर्च में है 500 किलो का घंटा
मेडिकल कॉलेज रोड में बशारतपुर में स्थित सेंट जॉन्स चर्च पहले एक झोपड़ी में शुरु हुआ था। इसकी भव्यता की वजह से लोग इसको बड़े चर्च के नाम से भी पुकारते हैं। इसे 1823 में स्थापित किया गया था। लगभग दो दशक पहले यहां खूबसूरत दो मंजिल का प्रेयर हॉल और चर्च बना। इस चर्च का निर्माण मिशनरी एसोसिएशन के माइकल विलकिंसन ने कराया था। चर्च की भव्यता को और बढ़ाने के लिए 6 साल पहले यहां 500 किलो का घंटा लगाया गया। इसका उपयोग चर्च में प्रार्थना और अन्य सूचनाओं को देने के साथ ही श्रद्धालुओं को आमंत्रित करने के लिए किया जाता है। इससे निकलने वाली आवाज करीब तीन किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है।