- छापेमारी में मिले मोबाइल और कई आपत्ति्तजनक चीजें

- डीएम की अगुवाई में बैरकों की हुई जांच

GORAKHPUR:

जिला जेल में संडे को अचानक हुई जांच पड़ताल से हड़कंप मच गया। डीएम की अगुवाई में पुलिस अफसरों की टीम पहुंची। जेल अधिकारियों के साथ बैरकों की तलाशी ली गई। जेल में छापेमारी की भनक लगते ही बंदी सतर्क हो गए। जांच में नकदी, चेकबुक और चार मोबाइल सहित कई आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई। डीएम ने कहा कि कार्रवाई की रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी।

एक साथ पड़ा छापा, मच गया हड़कंप

प्रदेश भर में सभी जेलों में जांच के निर्देश आने के बाद पुलिस अफसर एक्टिव हो गए। संडे मार्निग करीब नौ बजे डीएम रंजन कुमार, सीडीओ कुमार प्रशांत, एसपी ग्रामीण ब्रजेश सिंह भारी पुलिस बल के साथ जेल पहुंचे। जांच पड़ताल से जेल की चहारदीवारी के भीतर हड़कंप मच गया। करीब ढाई घंटे तक चले अभियान में कई आपत्तिजनक चीजें बरामद हुईं।

चार मोबाइल, चेकबुक और नकदी मिली

जांच के दौरान बैरक के आसपास फेंकी गई चीजें बरामद हुई। इनमें चार मोबाइल हैंडसेट, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू और चम्मच को घिसकर बनाया गया चाकू शामिल था। जेल की बैरक में पहली बार 13, 990 रुपए नकदी के साथ-साथ चेकबुक बरामद हुई। बंदियों ने मोबाइल को मिट्टी में दबा दिया था। जेल में बरामद सामान को कब्जे लेकर प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी।

बैरक नंबर दो और आठ से मिले मोबाइल

जांच के दौरान बैरक नंबर दो के सामने तीन मोबाइल हैंडसेट मिले। जबकि आठ नंबर से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ। सभी मोबाइल फोन को दबाकर रखा गया था। इसके साथ बैरक नंबर नौ में चेकबुक मिली। सहजनवां के जैतपुर तिहरा हत्याकांड के आरोपी मुंकुद सिंह के पास चेकबुक थी। बैरक नंबर दो में डिस्को तिवारी, शातिर बदमाश चंदन सिंह का भाई नंदन सिंह बंद है। बैरक नंबर आठ में सत्यव्रत राय सहित अन्य बदमाश हैं।

कौन ले जाता है जेल में सामान

ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि जेल में पुलिस-प्रशासन का छापा पड़ा हो। इसके पहले कई बार जेल में छापेमारी हो चुकी है। इसके बाद बावजूद आपत्तिजनक चीजों के मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा। पांच माह के भीतर करीब छह बार जेल की तलाशी ली जा चुकी है। बावजूद इसके आपत्तिजनक चीजें जेल के भीतर जा रही हैं। जेल में मुलाकातियों की सघन जांच होती है। बाहरी किसी व्यक्ति का कोई आपत्तिजनक सामान भीतर ले जाना संभव नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नाइट ड्यूटी के दौरान बंदी रक्षक सामान पहुंचाने में मदद करते हैं।

नप गए थे बंदी रक्षक

दो दिसंबर 2014 को जेल में छापेमारी के दौरान आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई। इसको गंभीरता से लेते हुए जेल प्रशासन ने कार्रवाई की। बैरक नंबर आठ के बंदी रक्षक ओम प्रकाश राम और बैरक नंबर सात के बंदी रक्षक राम प्रसाद को सस्पेंड कर दिया। दोनों बैरकों में भूमि में गड़े मोबाइल मिले थे। बैरकों की निगरानी में लापरवाही पर प्रधान बंदी रक्षकों चंद्रभान पांडेय और ओम प्रकाश राय के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हुई थी।

मुंहमांगी बैठकी देकर करते हैं मौज

जेल में बंदियों को सुविधाएं देने में जहां बंदी रक्षक बदनाम हैं। वहीं लंबरदार इनके मददगार होते हैं। पुराने बंदियों के चालचलन को देखते हुए जेल प्रशासन उनको गणना ड्यूटी में लगा देता है। बंदी रक्षकों के साथ- साथ लंबरदार भी बंदियों की हरकतों पर नजर रखते हैं। बंदियों को जेल में काम न करना पड़े, उनको खाने-पीने मौज मस्ती का सामान मिलता रहे। इसके लिए बैठकी देनी पड़ती है। मेन गेट से ही वसूली का खेल शुरू हो जाता है। सेटिंग के अनुसार ट्रीटमेंट दिया जाता है।

इसके पहले जेल में पड़े छापे

02 दिसंबर 2014 को छापेमारी में सात मोबाइल फोन, छह बैट्री, छह चार्जर, आठ सिमकार्ड, पेन ड्राइव सहित कई चीजें बरामद हुई।

09 दिसंबर 2014 को डीआईजी जेल ने छापेमारी करके जांच पड़ताल की।

13 दिसंबर 2014 को पुलिस अफसर जेल में जांच करने पहुंचे। एक मोबाइल, सिमकार्ड, बोतल सहित कई चीजें मिली।

18 दिसंबर 2014 को डिप्टी जेलर के घर हुई लूटपाट के बाद अफसरों ने जेल का जायजा लिया।

19 जनवरी को विनोद उपाध्याय और सत्यव्रत राय के गुट में विवाद पर तलाशी ली गई।

21 जनवरी 2015 को तत्काली एसएसपी दिलीप कुमार की अगुवाई में मुलाकातियों की जांच पड़ताल हुई

07 मार्च 2015 को जेल के वॉच टावर पर ड्यूटी कर रहे बंदी रक्षक से लूटपाट, अफसरों ने निरीक्षण किया।

13 मार्च को विनोद उपाध्याय और प्रदीप सिंह गुट के बीच विवाद पर एसएसपी सहित कई अफसर जांच करने पहुंचे।

16 अप्रैल 2015 को जांच में गांजा, चरस बरामद हुआ।

गोरखपुर में बंद है कई बदमाश

धीरेंद्र मोहन उर्फ डिस्को तिवारी

रिंकू पांडेय

विनोद उपाध्याय

प्रदीप सिंह

बिसई सिंह

नंदन सिंह

सत्यव्रत राय

मोबाइल रखना अपराध नहीं

जेल में बंदियों का मोबाइल रखना क्राइम की श्रेणी में नहीं आता। आईपीसी और आईटी एक्ट में ऐसी कोई धारा नहीं जिसमें बंदी के पास मोबाइल मिलने पर जेल विभाग मुकदमा दर्ज करा सके। आईटीएक्ट के 65 साल पुराने कानून का फायदा उठाकर जेलों में मोबाइल यूज किया जा रहा है। आए दिन जेल में मोबाइल, सिम व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त करने के बावजूद अपराधियों को मामूली पनीशमेंट के अलावा कुछ नहीं कर सकती। कैदी के कब्जे से मोबाइल मिलना आईपीसी, सीआरपीसी या आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं होता है। ऐसे में कैदियों के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान आईपीसी, सीआरपीसी या आईटी एक्ट के तहत केन्द्र सरकार ही ला सकती है।

जेल के वीआईपी बंदी, मेडिकल कालेज में मौज

गोरखपुर जेल में कुछ वीआईपी बंदी भी हैं जिनको मेडिकल कालेज में एडमिट कराया गया है। मेडिकल कालेज के प्राइवेट वार्ड में उनका उपचार चल रहा है। इनमें ज्यादातर सजायाफ्ता हैं।