गोरखपुर (ब्यूरो)।इस उम्र तक आईवीएफ से महिला को टेस्ट ट्यूब वाला स्वस्थ शिशु होने की अधिक संभावना होती है। इससे अधिक उम्र होने पर संभावना कम होती जाती है। इसलिए सरकार ने नियम में बदलाव किया है। गोरखपुर में नि:संतानता से जूझ रही महिलाओं के लिए आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) यानी टेस्ट ट्यूब बेबी किसी वरदान से कम नहीं है। इसी का फायदा उठाकर कई आईवीएफ सेंटर मोटी कमाई करते हैं। इस पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इससे जुड़े नियमों को और कड़ा किया है, जिसका प्रभाव गोरखपुर जिले में 12 आईवीएफ सेंटर्स और इलाज की आकांक्षी सैकड़ों महिलाओं पर पड़ेगा।

क्या है आईवीएफ

आईवीएफ गर्भधारण की एक आर्टिफिशियल प्रक्रिया है। आईवीएफ इलाज के दौरान प्रयोगशाला में महिला के एग्स और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है। जब संयोजन से भ्रूण बन जाता है। जब उसे वापस महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है।

यह हुआ बदलाव

असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन, 2023 के तहत अब महिला के गर्भाशय में एक या दो स्वस्थ भ्रूण ही ट्रांसफर हो सकेंगे। गंभीर मामलों में ही तीन भ्रूण ट्रांसफर हो सकेंगे। पहले चार व इससे अधिक भ्रूण्ध भी रखे जाते थे।

आईवीएफ में खर्च

आईवीएफ में 65,000 से 95,000 रुपए तक खर्च आता है। जबकि अफोर्डेबल आईवीएफ तकनीक से प्रजनन की कीमत 40,000 रुपए तक होती है। आमतौर पर सामान्य आईवीएफ में 10 से 12 अंडों का निर्माण किया जाता है। जबकि अफोर्डेबल आईवीएफ में ती से चार एग्स का निर्माण करते हैं। पहले 70 साल की उम्र तक आईवीएफ प्रक्रिया अपनाई जा रही थी। 50 और पुरुष के लिए 55 की आयु सीमा रखी गई है। हर आईवीएफ प्रक्रिया की जानकारी सरकार को देनी होगी। पहले सभी फैसले सेंटर्स अपने स्तर पर लेते थे।

सीएमओ के अधीन बनी कमेटी जिले को रिपोर्ट स्टेस्ट बोर्ड को और स्टेट बोर्ड केंद्र स्वास्थ्य मंत्रालय को रिपोर्ट करेंगी।

आईवीएफ को लेकर भारत में क्या है कानून

21 से लेकर 50 साल तक की महिला आईवीएफ ट्रीटमेंट ले सकती हैं।

21 से लेकर 55 साल तक का पुरुष आईवीएफ ट्रीटमेंट ले सकता है।

महिला एग्स डोनर के लिए 35 साल की उम्र है।

अपनी लाइन में कोई भी महिला एक ही बार एग डोनेट कर सकती है।

एम महिला के सिर्फ 7 एग्स ही निकाले जा सकते हैं।

यह एग्स किसी दूसरे कपल के लिए यूज नहीं किए जा सकते हैं।

एग डोनेट करने के बदले महिला कोई भी फीस या पैसे नहीं ले सकती है।

सेंटर की जिम्मेदारी

आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने वाले कपल को प्रोफेशनल काउंसिलिंग देनी होगी।

कपल को ट्रीटमेंट के फायदे, नुकसान और सक्सेस रेट के बारे में जानकारी देनी होगी।

हर क्लीनिक को कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा।

हर क्लीनिक को एक ग्रीवेंस सेल बनाना होगा, जिसमें पेशेंट शिकायत कर सके।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एमसीआई से जो भी आईवीएफ के संबंध में निर्देश मिलेगा। उसका पालन कराया जाएगा। सभी आईवीएफ सेंटर्स का पंजीयन अनिवार्य है।

डॉ। आशुतोष कुमार दुबे, सीएमओ

आईवीएफ को लेकर नियम में बदलाव जरूरी था। अब महिलाओं की 50 साल उम्र फिक्स कर दी गई है। सेंटर्स की निगरानी होने से गलत नहीं हो सकता है। मरीजों का बेहतर इलाज हो सकेगा।

डॉ। अल्पना अग्रवाल, महिला एंव प्रसूति रोग विशेषज्ञ

आईवीएफ रेगुलेशन जरूरी था। इसलिए नियम लागू किया गया है। सरकारी की ओर से जून 2022 में नियम बदलने का निर्णय लिया गया। जनवरी 2023 में लागू हुआ। सभी सेंटर्स रजिस्टर्ड के साथ 50 साल की उम्र की सीमा फिक्स कर दी गई है। इससे मरीजों का अच्छा ट्रीटमेंट हो सकेगा।

डॉ। सुरहिता करीम, स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ