- शहर की किसी भी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में नहीं है वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

- बनाने के लिए खुद महीनों से पंप लगाकर निकालते हैं पानी

- बिल्डर्स को जानकारी है, लेकिन नहीं करते अमल

GORAKHPUR: शहर में सब पानी बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन बचाने के नाम पर उपाय करने की किसी को परवाह नहीं। जीडीए का हवाला देकर सभी अपना बचाव कर लेते हैं। इसलिए तो यहां पिछले पांच साल में बनी एक दर्जन से अधिक बड़ी बिल्डिंग्स में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा है। इन बिल्डिंग्स से पानी तो कभी नहीं बचता, लेकिन इनके निर्माण में लाखों गैलेन भू-जल नालियों में बहा दिया जाता है। वहीं, एक साल से आधा दर्जन बिल्डिंग्स का निर्माण हो रहा है और इनमें भी जमकर पानी बर्बाद किया जा रहा है।

नियम का हवाला देकर बच जाते

जीडीए की गाइड लाइन में एक लाइन है, जिसका हवाला देकर सभी बिल्डर्स अपनी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने से बच जाते हैं। एक बिल्डर ने नाम ना छपने की शर्त पर बताया कि जीडीए वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को लागू करा सकता है, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत के कारण ऐसा नहीं हो पाता। यही नहीं बिल्डिंग निर्माण के समय भी जब अंडर ग्राउंड निर्माण करते हैं तो लाखों गैलेन पानी दो से तीन माह तक लगातार निकाला जाता है। इस बारे में जब कोई इन बिल्डर्स से पूछता है तो वह कहते हैं कि बिल्डिंग भूकंपरोधी बनानी है। ऐसे में अंडरग्राउंड किया जाता है, लेकिन नीचे पानी होने के कारण दलदल हो जाता है और बिल्डिंग के पिलर्स हिलने लगते हैं। ऐसे में पानी निकालना मजबूरी होता है।

बर्बाद करते हैं, लेकिन बचाते नहीं

शहर में बन रही बिल्डिंग्स के निर्माण के समय लाखों गैलेन भू-जल निकाला जाता है। पिछले दो साल में सिनेमा रोड पर एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का निर्माण हो चुका है, जबकि दो पर कार्य चल रहा है। वहीं मेडिकल रोड, मोहद्दीपुर, कूड़ाघाट सहित कई अन्य एरियाज में भी मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स बन रही हैं। इनके निर्माण के दौरान पिछले दो साल से लगातार भू-जल स्तर का दोहन हो रहा है। इसका अभी तो प्रभाव नहीं पड़ रहा, लेकिन आने वाले दिनों में बहुत बड़ा असर पड़ने वाला है। पर्यावरणविद प्रो। शिवशंकर वर्मा का कहना है कि यह बिल्डिंग निर्माण के समय बेतहाशा पानी तो निकालते हैं, लेकिन उसके बाद पानी बचाने का कोई उपाय नहीं करते। ऐसे में इन बिल्डिंग्स के आस-पास के एरिया में एक से दो साल बाद पानी का संकट आने लगता है। गोरखपुर में अभी इसका प्रभाव बहुत अधिक नहीं दिख रहा, लेकिन दो से तीन साल बाद जरूर दिखेगा।

वर्जन

गोरखपुर का भूजल स्तर बहुत उपर है, जिसके कारण वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने के लिए दबाव नहीं बनाया जाता। लेकिन सभी को ये सिस्टम बनाना चाहिए और पानी बचाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए।

- संजय सिंह,

चीफ इंजीनियर, जीडीए