-अवारा पशुओं को पकड़ने के नाम पर निगम खर्च कर रहा प्रतिमाह 1.12 लाख रुपए

-नगर स्वास्थ्या अधिकारी ने बिना स्वीकृति के ही बढ़ा दिया था गैंग के कर्मचारियों का वेतन

-गैंग के कर्मचारी केवल पशुओं की गिनती करके पूरा करते हैं कोरम

GORAKHPUR: शहर में अवारा घूम रहे पशुओं को काबू करने के लिए नगर निगम में योजना है। उसके लिए बजट भी है, लेकिन सड़कों पर घूम रहे छुट्टा पशु उसकी असलियत बता रहे हैं। जब आई नेक्स्ट ने तहकीकात की तो पता चला कि अवारा पशुओं को पकड़ने के नाम पर नगर निगम में जबर्दस्त खेल हो रहा है। इसकी पुष्टि नगर निगम के मुख्य लेखा परीक्षक इसरार अंबिया अंसारी के नगर आयुक्त को भेजे गए पत्र से होती है। पत्र को पढ़कर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि नगर निगम में आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए खर्च की जाने वाली रकम में जबर्दस्त खेल किया जा रहा है।

क्या लिखा है पत्र में?

नगर आयुक्त को लिखे पत्र में मुख्य लेखा परीक्षक ने आरोप लगाया है कि क्भ् मई ख्0क्क् अवारा पशुओं को पकड़ने के काम में लगाए गए कर्मचारियों के लिए निगम की तरफ से प्रति माह ब्ख्म्80 रुपए निर्धारित किए गए थे। इसमें एक सुपरवाइजर के मद मेंप्रतिमाह म्000 रुपए और दस कर्मचारियों के लिए प्रतिमाह फ्म्म्8 रुपए तय किए गए थे। इसके लिए प्रकाश ग्रामीण सेवा समिति नामक फर्म से करार किया गया था। यह योजना फ्0 अगस्त ख्0क्ब् तक चली। इसके बाद नगर स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश पर सिटी के आवारा मवेशियों को पकड़ने, नाले से निकालने और काजी हाउस में उनकी देखभाल करने के लिए मेठ सहित क्भ् मजदूरों की गैंग बनाई गई। उनकी सेलरी के मद में प्रतिमाह क्क्ख्भ्00 रुपए खर्च किया जाने लगा। आरोप है कि नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने बिना टेंडर के मजदूरों का पारिश्रमिक बढ़ा दिया। साथ ही उन पर यह भी इल्जाम है कि टेंडर कराने के लिए नगर स्वास्थ्य अधिकारी को कई बार पत्र लिखा गया है, लेकिन उन्होंने सारे नियमों को ताक पर रख दिया। यह पूरी तरह गैरकानूनी था और इससे निगम को प्रतिमाह म्98ख्0 रुपए का नुकसान हो रहा है। साथ ही शहर में घूम रहे आवारा पशुओं की स्थिति मेंकोई बदलाव नहींआया है। वे आज भी लोगों को चोटिल कर रहे हैं।

फर्म पर भी उठाए सवाल

फर्म का काम है आवारा जानवरों को पकड़ना, लेकिन फर्म केवल नाले-नालियों से आवारा जानवरों को निकालती है और चौराहों पर अवारा पशुओं की गिनती करता है। इन सब कामों के लिए फर्म के पास क्भ् कर्मचारी और एक वाहन भी है। इसके बाद भी सिटी के सड़कों पर आवारा पशु चहलकदमी और लड़ते भिड़ते दिख जाएंगे। कई बार वे लड़ते लड़ते वाहनों के सामने आ जाते हैं। साथ ही वे कई बार शर्मिंदगी का माहौल पैदा करते हैं।

पूरे मामले पर आई नेक्स्ट ने नगर स्वास्थ्य अधिकारी अरुण कुमार से उनका पक्ष जाना। पेश है उनसे बातचीत के अंश।

रिपोर्टर-क्.क्ख् लाख रुपए आवारा जानवरों को पकड़ने में प्रत्येक माह खर्च हो रहे हैं, लेकिन जानवर रोड पर घूम रहे, क्यों?

डॉ। अरूण कुमार- शायद आपको पता नहीं कि रात को ख् बजे, फ् बजे फोन आता है कि नाले में जानवर गिर गए हैं। इनको निकाला जाता है।

सवाल- हम यह जानना चाहते हैं कि सितंबर माह से इनका वेतन बढ़ा है, इसकी स्वीकृत आपने किससे ली थी?

डॉ। अरूण कुमार- शासनादेश था कि कर्मचारियों का वेतन ख्भ्0 रुपए कर दिया जाए।

सवाल- ब् कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाई गई थी?

डॉ। अरूण कुमार- जरूरत थी तो बढ़ा दी गई थी।

सवाल- आखिर आपने वेतन बढ़ाने की स्वीकृत क्यों नहीं ली?

डॉ। अरूण कुमार (झल्लाते हुए)- अरे, मैं तो चाहता हूं कि यह काम मुझसे ले लिया जाए। यह काम मैं तो करना ही नहींचाहता हूं। डीएम साहब से भी कह दूंगा मुझे इस काम से मुझे आवारा पशु पकड़ने की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाए।

नगर आयुक्त को इस संबंध में पत्र लिखा गया है। आवारा पशु पकड़ने के नाम पर नगर निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही है। इसको रोकना बहुत जरूरी है। साथ ही बिना स्वीकृती के कर्मचारियों की संख्या बढ़ा दी गई है। पारिश्रमिक को वापस लेने की भी बात पत्र में लिखी गई है।

इसरार अंबिया अंसारी, मुख्य लेखा परीक्षक