- मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग का मामला
- उपचार के लिए पहुंचे मरीजों की जांच तक कराई जाती है बाहर
- अफसरों की नाक के नीचे चल रहा है यह खेल
GORAKHPUR: पूर्वाचल का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केंद्र, बीआरडी मेडिकल कॉलेज। पब्लिक को इलाज में ढेरों सुविधाएं देने के लिए बनाया गया। लेकिन यहां इलाज के नाम पर कुछ और ही चल रहा है। बीआरडी में कभी ढंग से इलाज न करने तो कभी डॉक्टरों के मिसबिहैव की शिकायतें आती रहती हैं। इस बार मामला मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग से जुड़ा है। यहां पर बाहर की जांच और दवाएं लिखने का दौर धड़ल्ले से चल रहा है। डॉक्टर हों या वार्ड ब्वाय मरीजों को बाहर का रास्ता दिखाने में तनिक भी संकोच नहीं कर रहे हैं। कुछ कर्मचारी तो बाकायदा बाहर के मेडिकल हॉल का पर्चा बनाकर मरीजों को थमा दे रहे हैं।
सीन-1
दोपहर करीब 12 बजे आई नेक्स्ट रिपोर्टन मेडिकल कॉलेज पहुंचा। एक रुपए की पर्ची कटवाकर मानसिक रोग विभाग के सामने मरीजों के साथ लाइन में खड़ा हुआ। कक्ष के बाहर एक होमगार्ड पर्ची कलेक्ट कर रहा था और अपने को वार्ड ब्वाय बता रहा था। इस दौरान जब रिपोर्टर ने उसे साहब कहकर पुकारा तो उसने जोर से डांट दिया और बाहर जाने को कहा। इसके बाद रिपोर्टर बगल में लगी कुर्सी पर चुपचाप बैठ गया और वहां की कारगुजारी देखने लगा। काफी लंबे इंतजार के बाद आखिर रिपोर्टर का नंबर करीब एक बजे आया। रिपोर्टर डॉक्टर के पास पहुंचा। टेबल पर बैठा तो डॉक्टर ने मर्ज के बारे में पूछा। रिपोर्टर के बताए गए लक्षणों के आधार पर डॉक्टर ने पर्ची पर दवाइयां लिख दीं और एक हफ्ते बाद फिर आने को कहा।
सीन-2
डॉक्टर के पास से पर्ची लेकर रिपोर्टर जब वापस लौटा तो वहां का नजारा देख हैरान रह गया। मुख्य गेट के पास वार्ड ब्वाय हर मरीज की पर्ची हाथ में ले ले रहा था। इसके बाद वह नक्शा बनाकर मरीजों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर का रास्ता बता रहा था। साथ ही प्राइवेट पैथोलॉजी पर सीटी स्कैन, ईसीजी, ईईजी और टीएफटी की जांच के लिए भी भेज रहे थे। जब इस संबंध में एक मरीज से बात की तो उसने बताया कि अगर कोई ऑब्जेक्शन करता है तो इलाज से इंकार कर दिया जाता है। मजबूरी में बाहर से दवा लेने को मजबूर हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, बाहर से आए मरीजों को तो बाकायदा दूसरे डॉक्टरों का पैंपलेट तक पकड़ा दिया जा रहा है।
बाहर से तो दवा लिखनी ही नहीं
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के लिए प्रावधान है कि बाहर से दवा नहीं लिखनी है। यहां के ड्रग स्टोर में उपलब्ध दवाएं ही लिखी जानी हैं। इसके बावजूद यहां के डॉक्टर्स बाहर की दवाएं लिखते रहते हैं। बाहर से दवा मंगाने का बीआरडी का यह कच्चा-चिट्ठा कई बार उजागर हो चुका है। लेकिन आज भी यहां पर व्यवस्था में लगे लोग बहरे बने हुए हैं।
ड्रग स्टोर में भी दवाएं नहीं
डॉक्टर्स की लिखी हुई दवाएं ड्रग स्टोर में भी नहीं हैं। पर्ची लेकर जब रिपोर्टर स्टोर पर पहुंचा तो डॉक्टर की लिखी हुई पर्ची फार्मासिस्ट को देखा। उसने बताया कि इस पर लिखी गई दवाएं बाहर ही मिलेंगी। जब रिपोर्टर ने सवाल-जवाब करना चाहाता तो ड्रग स्टोर पर बैठे शख्स कहना था कि बहस से कोई फायदा नहीं। यहां सबकुछ ऐसे ही चलता है।
पब्लिक कॉलिंग
सुबह से मानसिक रोग विभाग के कमरा नंबर 8 के सामने लंबी लाइन में लगा रहा। नंबर आने के बाद जब अंदर पहुंचा तो वहां दलालों का भरमार था। चाहे दवा हो या जांच बाहर लिखी जा रही थी। जब इसके बारे में पूछने की कोशिश की गई तो इलाज का हवाला देकर चुप करवा दिया।
-रमेश वर्मा, कुशीनगर
काफी दिनों से पत्नी की हालत खराब थी। वह कुछ बोल नहीं पाती। रह-रह कर चक्कर आने और बेहोश होकर गिर जा रही थी। उसके इलाज के लिए मानसिक रोग विभाग पहुंचा। हालांकि डॉक्टर ने जांच कर दवाएं लिखी। मगर वार्ड ब्वाय बाहर के प्राइवेट मेडिकल स्टोर कर रास्ता बता रहे हैं।
-शिवानंद जायसवाल, महराजगंज