- आज आई नेक्स्ट बताने जा रहा है भगत सिंह का गोरखपुर से रिलेशन
- इतिहास के पन्नों में दर्ज इस राज को पहली बार कोई अखबार सामने लाने जा रहा है
GORAKHPUR : गोरखपुर की बिस्मिल लाइब्रेरी। एक 7भ् साल का बुजुर्ग कुछ किताबों से धूल झाड़ रहे थे। पूछने पर पता चला कि ये इस लाइब्रेरी के संचालक है। इतिहास का खासा ज्ञान है। कई क्रांतिकारी के परिवार भी इनसे जुड़े रहे हैं। बिस्मिल जी की बहन शास्त्री देवी से लेकर भगत सिंह के जिगरी दोस्त विजय कुमार सिंह तक उनके संपर्क में थे। तभी मन में सवाल आया कि आज भगत सिंह की शहादत दिवस है, चलो पूछते हैं कि भगत सिंह का भी कोई रिलेशन है गोरखपुर से। पूछना ही था कि श्रीवास्तव का गला भर आया। उन्होंने अपनी रूधंती आवाज में कहा बहुत पुराना रिश्ता है। इतिहास के पन्नों पर चढ़ी धूल में यह रिश्ता भी थोड़ा धूमिल हो गया है। हमने कहा कि तो आज इस धूल को हटा दीजिए। बस कहना ही था कि उन्होंने कुछ धूल से सनी चिट्ठियों को झाड़ना शुरू कर दिया।
छीन लिए क्फ् एकड़ जमीन
श्यामानंद श्रीवास्तव ने एक चिट्ठी निकालते हुए बताया कि भगत सिंह एक बार गोरखपुर भी आए थे। हालांकि यह बात बहुत कम लोग ही जानते हैं। यह कहानी तब की है जब भगत सिंह ने लाहौर में जॉन सांडर्स को मौत के घाट उतारा था। लाहौर से भागने के बाद भगत सिंह कई जगह ठहरे। उनमें एक जगह गोरखपुर भी थी। तभी हमने पूछा कहां ठहरे थे। श्रीवास्तव जी ने बताया कि सिविल लाइंस स्थित एक मकान में रुके थे। यह मकान रामनाथ साहू का था। जो धन से बहुत संपन्न होने के साथ देशभक्त थे। जब अंग्रेजों को यह बात पता चली कि रामनाथ ने क्रांतिकारी भगत सिंह पनाह दी थी, तो उन पर कहर भी गिरा। अंग्रेजों ने रामनाथ की क्फ् एकड़ जमीन जब्त कर ली। मजबूर होकर उन्हें अपने परिवार के साथ शहर से पलायन करना पड़ा। हमने पूछा अब वह क्रांतिवीर रामनाथ का मकान कौन सा था? श्रीवास्तव जी ने बताया कि पार्क रोड की पूरी जमीन उन्हीं की थी। इसी जमीन में एक खंडहर मकान आज भी उनकी यादें समेटे मौजूद है।
किताब लिखी तो मिली सजा
श्रीवास्तव बताते हैं कि भगत सिंह भले पंजाब में जन्में हों लेकिन उनके फॉलोवर्स यहां बहुत थे। कईयों ने तो उनके लिए अंग्रेंजों से सजा भी भुगती लेकिन मुंह से उफ तक न निकाली। ऐसे ही एक चाहने वाले का नाम है जीतेंद्र नाथ सान्याल। गोरखपुर में क्रांति की अलख जगाने वाले क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल के छोटे भाई जीतेंद्र को लिखने पढ़ने का बहुत शौक था। वे हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते ही रहते थे। अपने भाई शचींद्र उनके आइडियल थे। शचींद्र और भगत सिंह अच्छे दोस्त थे। शचींद्र के मुंह से जीतेंद्र ने कई बार भगत सिंह के क्रांति के किस्से सुने। एक दिन जीतेंद्र के मन में ख्याल आया कि वे कुछ ऐसा करें जिससे भगत सिंह हमेशा जिंदा रहे। क्योंकि वे भगत सिंह एक मनुष्य नहीं विचार मानते थे। उन्होंने भगत के विचारों पर ही एक किताब लिखने का निर्णय लिया। जैसे-जैसे किताब के पन्ने भरते गए वैसे-वैसे यह बात अंग्रेजों तक भी पहुंच गई। जब अंग्रेजों को यह बात पता चली तो उन्होंने इसे विद्रोह मानते हुए जीतेंद्र को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया।