- मनमानी से स्कूल व्हीकल लिखवाकर उठाते हैं फायदा
- स्कूल भी इसके लिए जिम्मेदार
- वहीं डीआईओएस और बीएसए भी कर रहे हैं रूल्स की अनदेखी
द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र :
स्कूल वैन लिखा देखा और पेरेंट्स ने अपने बच्चों को भी उसमें भेजने के लिए जुगाड़ लगानी शुरू कर दी। आमतौर पर यह किसी एक पेरेंट का नहीं, बल्कि पूरे सिटी का यही हाल है। प्राइवेट होने के बाद भी स्कूल भेजने के लिए वह इसे ही प्रिफर करते हैं। ऐसे सभी पेरेंट्स को सावधान होने की जरूरत है। तंग गलियों, मोहल्ले में घुसकर आपके बच्चों को घर से स्कूल और फिर स्कूल से घर ले जाने वाले ऑटो सही मायने में महज एक प्राइवेट व्हीकल हैं, जो दूसरे प्राइवेट व्हीकल ही की तरह रजिस्टर्ड होते हैं। स्कूल के लिए ऐसे किसी भी ऑटोरिक्शा को आरटीओ परमिट जारी ही नहीं करता।
स्कूल वैन लिखवाकर उठाते हैं फायदा
आरटीओ में स्कूल वैन के तौर पर सिर्फ वही व्हीकल रजिस्टर्ड हो सकते हैं, जो बच्चों के लिए पूरी तरह से सेफ हों। वहीं वह दोनों ओर से पूरी तरह से कवर भी हो, जिससे कहीं रास्ते में बच्चे उससे गिर न पड़ें। मगर, स्कूल से बच्चों को घर ले जाने वाले ऑटो ड्राइवर्स मनमाने तरीके से उसपर 'स्कूल वैन' लिखवा लेते हैं और इसका फायदा उठाते हैं। पेरेंट्स भी इस मामले में स्कूल और बाहर कहीं से क्वेरी न कर, उसे स्कूल वैन ही मान लेते हैं और अपने बच्चों को उसी से स्कूल भेजने की तैयारी शुरू कर देते हैं। इससे पेरेंट्स के पास से लाने-लेजाने का झंझट तो खत्म हो जाता है, लेकिन बच्चे रफ्तार भरी गाडि़यों और भागती ट्रैफिक के बीच स्कूल आते-जाते हैं।
स्कूल की लापरवाही का फायदा उठा रहे ऑटो
बच्चों को खतरे में डालने के लिए जितने गुनाहगार पेरेंट्स है, उतनी ही जिम्मेदारी स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन की है। स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन को स्कूल खोलते वक्त जहां स्टडी से रिलेटेड बुनियादी फैसिलिटी की व्यवस्था करनी होती है, वहीं स्टूडेंट्स के लाने-लेजाने की भी फैसिलिटी उन्हें बच्चों को प्रोवइड करनी होती है। इस मामले में कुछ बड़े स्कूल तो कनवेंस के तौर पर बस की फैसिलिटी प्रोवाइड कराते हैं, लेकिन ऐसे भी स्कूल हैं, जहां कनवेंस के नाम पर किसी तरह की फैसिलिटी मौजूद नहीं है। स्कूल की इसी लापरवाही की वजह से स्कूल व्हीकल के तौर पर ऑटो रिक्शा की भरमार हो चुकी है।
शिक्षा विभाग भी जिम्मेदार
ऑटो के बढ़ते मार्केट के लिए जितना जिम्मेदार स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन और पेरेंट्स हैं, उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदारी शिक्षा विभाग की है। वह इसलिए कि स्कूल्स को मान्यता देते वक्त आरटीओ डिपार्टमेंट की एनओसी की जरूरत होती है। आरटीओ ऑफिशियल्स की मानें तो एनओसी के लिए जिम्मेदार शिक्षा विभाग ने इसके लिए अबतक एक भी एप्लीकेशन नहीं भेजी, ऐसी कंडीशन में एनओसी जारी करें भी तो कैसे और किसे? जब शिक्षा विभाग इसके लिए कोई क्वेरी या अप्लीकेशन भेजेगा, तो जांच कराने के बाद एनओसी जारी की जाती है।
स्कूल की मान्यता देते वक्त आरटीओ भी कनवेंस के लिए एनओसी जारी करता है। शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल व्हीकल की एनओसी के लिए आजतक कोई अप्लीकेशन नहीं आयी।
- डॉ। एके गुप्ता, आरटीओ एनफोर्समेंट