- स्पोर्ट्स का कोरम पूरा करने के लिए स्कूल, कॉलेज में एनुअल स्पोर्ट्स के तौर पर होता है एथलेटिक्स
- स्टेट लेवल पर तो आते हैं मेडल लेकिन नेशनल में मेडल की कमी
GORAKHPUR:
सबसे फेवरेट और सबसे कर्म खर्च में ऑर्गनाइज होने वाले स्पोर्ट्स इवेंट एथलेटिक्स सभी की पहली पंसद हैं। न कोई इन्वेस्टमेंट और न ही ज्यादा दिक्कत, बस जब मन चाहा इवेंट कराकर साल भर का कोरम पूरा कर लिया। सिटी में स्कूल्स हो या कॉलेज, साल भर में दो दिन एनुअल स्पोर्ट्स मीट ऑर्गनाइज कर स्पोर्ट्स की फॉर्मेल्टी पूरी करते हैं। मगर जब नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर परफॉर्मेस की बात आती है, तो सारे दावे और होनहार धराशायी हो जाते हैं। ये स्कूल-कॉलेज स्पोर्ट्स कॉलम में यस का टिक मार्क हासिल करने के लिए एथलेटिक्स को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन ईमानदार कोशिश नहीं किए जाने के कारण मेडल्स के दावों पर खिलाड़ी खरे नहीं उतर रहे हैं।
सिर्फ एक दिन और कोरम पूरा
एथलेक्टिस की बात की जाए, तो आम तौर पर यह करीब सभी स्कूल्स में ऑर्गनाइज किया जाता है। मगर इसकी हकीकत पर नजर दौड़ाए तो पूरे साल में एथलेटिक्स के नाम पर सिर्फ दो दिन ही फिक्स कर दिया जाता है, जब यहां इवेंट ऑर्गनाइज हो। जानकारों की मानें तो प्रोफेशनली इस गेम में अपना कॅरियर बनाने की सोच रहे प्लेयर्स खुद ही प्रैक्टिस में जुटे रहते हैं और स्टेडियम या दूसरे मैदान का सहारा लेकर अपने अंदर छिपे टैलेंट का तराशते हैं। ऐसे होनहार स्कूल की तरफ से पार्टिसिपेट भी करते हैं और मेडल्स भी लेकर आते हैं, मगर उन्हें फैसिलिटी के नाम पर कोई खास व्यवस्था नहीं मिल पाती।
स्टेडियम में 50 से ज्यादा एथलीट
रीजनल स्पोर्ट्स स्टेडियम की बात करें तो यहां टैलेंट को निखारने की व्यवस्था मौजूद है। प्लेयर्स रोजाना अपना पसीना बहाकर खुद को मेडल के लायक बनाने की जद्दोजहद करते हैं। मौजूदा वक्त की बात करें तो 50 से ज्यादा एथलीट रोजाना प्रैक्टिस के लिए आते हैं। यहां उन्हें प्रोफेशनल कोच टैलेंट सुधारने में हेल्प भी करते हैं। यही वजह है कि स्टेट और नेशनल कॉम्प्टीशन में यहां के स्टूडेंट्स बेहतर परफॉर्म कर मेडल भी हासिल करते हैं।
बेसिक बेहतर हो तो मिलेगा मेडल
इस मामले में डीडीयूजीयू स्पोर्ट्स काउंसिल के सेक्रेटरी डॉ। विजय चहल की मानें तो स्कूलिंग के दौरान ही टैलेंट को सबसे ज्यादा तराशा जा सकता है। इस दौरान जितनी ज्यादा मेहनत की जाए, उतनी बेहतर परफॉर्मेस देखने को मिलेगी। मगर चंद स्कूल्स और कॉलेज की बात छोड़ दें तो ज्यादातर स्कूल में सिर्फ कोरम पूरा होता है और टैलेंट को आगे ले जाने में वह हेल्प नहीं करते। यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स का टैलेंट निखारा जाता है, मगर जब तक उनकी नींव ही बेहतर नहीं होगी, तब तक बेहतर रिजल्ट नहीं मिल सकता।
स्टेडियम में करीब 50 से ज्यादा एथलीट्स प्रैक्टिस करने आते हैं। यहां उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे उनका टैलेंट और बेहतर हो सके। बेसिक लेवल पर कमजोर होने की वजह से ज्यादा मेडल्स नहीं आते हैं, लेकिन खिलाड़ी काफी मेहनत करते हैं।
- दिलीप कुमार, ऑफिशिएटिंग आरएसओ