- गोरखपुर और आसपास के इलाकों में बढ़ रहा है आर्सेनिक कॉनसंट्रेशन

- 60 लाख लोगों के हर साल बीमार होने का अनुमान, छह लाख लोगों की मौतें, सिलसिला शुरू

- गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक फैला हुआ है आर्सेनिक का असर

- सोरस विधि से आसानी से अलग किया जा सकता है आर्सेनिक

GORAKHPUR: पानी, कुदरत की एक ऐसी अनमोल देन, जिसकी कीमत कोई नहीं लगा सकता। एक प्यासा ही इसकी अहमियत सही से समझ सकता है। कुछ मुल्क हैं, जहां लोगों को यह पानी आसानी से मयस्सर नहीं है, तो वहीं कुछ जगह बेहिसाब पानी है, लेकिन यह पीने के लायक नहीं है। गोरखपुर में अभी ऐसे हालात नहीं हैं, लेकिन जैसे पानी में इंप्योरिटी बढ़ रही है आने वाले दिनों में भी यहां पानी की काफी किल्लत होगी। यह बातें आईआईटी बीएचयू से आए प्रोफेसर देवेंद्र मोहन ने खास दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से शेयर कीं, वह एमएमएमयूटी में ऑर्गनाइज रिसर्च कॉनक्लेव में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि गोरखपुर शहर के पानी में इंप्योरिटी मिलने की शुरुआत हो चुकी है और आसपास के जिलों में तो इसकी वजह से मौतों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। अगर हम अब भी अलर्ट नहीं हुए, तो वह दिन दूर नहीं जब हम पानी की एक-एक बूंद को तरसेंगे, या पानी तो पीएंगे लेकिन इसके साथ बीमारियों को अपनी बॉडी में जगह देंगे, इससे जिंदगी छोटी होती चली जाएगी।

मिलने लगे हैं आर्सेनिक प्वॉइजनिंग केस

प्रो। देवेंद्र ने बताया कि पानी में आर्सेनिक की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इसकी वजह से आर्सेनिक प्वॉइजनिंग के केस भी डायग्नोज होने लग गए हैं। इंडिया में गंगा बेसिन यानि गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक इसका कहर फैल चुका है। वहीं बंग्लादेश, नेपाल के साथ ही बिहार और वेस्ट बंगाल में भी यह बीमारी पांव पसार रही हैं। एक अनुमान है कि हर साल इस बीमारी की चपेट में 60 लाख लोग आ सकते हैं और इसमें से 6 लाख की मौत तय है। उन्होंने बताया कि आर्सेनिक की यह बीमारी 1265 में यूरोप में सामने आई, लेकिन इंडिया के वेद पुराणों में इसका जिक्र काफी पहले से ही मिलता है।

बॉडी में एंट्री तो बढ़ेगी परेशानी

प्रोफेसर ने बताया कि आर्सेनिक एक ऐसा एलिमेंट है, जो काफी हार्मफुल है और इससे कैंसर की सबसे ज्यादा संभावना रहती है। बॉडी में अगर यह एक बार एंट्री पा गया, तो लोगों की परेशानी बढ़ना तय है। ऐसा इसलिए कि यह सिर्फ दो रास्तों से बॉडी के बाहर आ सकता है, पहला नाखून और दूसरा बाल। यानि बॉडी में इनके बढ़ने की जा स्पीड होगी, उसके अकॉर्डिग यह बॉडी से बाहर आएगा, जबकि हम हर घूंट पानी में आर्सेनिक बॉडी के अंदर पहुंचा रहे हैं, जो अंदर ही जमा हो रहा है।

हाथ पर सफेद धब्बे से शुरुआत

आर्सेनिक से होने वाली इस बीमारी की पहचान यूं तो काफी मुश्किल है, लेकिन नाखून और बाल का टेस्ट कराकर इसको पता लगाया जा सकता है। वहीं अगर सिंपली सिम्प्टम की बात करें तो हाथ पर सफेद धब्बों से इसकी शुरुआत होती है, जो धीरे-धीरे ब्राउन हो जाते हैं और बॉडी पर साफ नजर आने लगते हैं। हालांकि सफेद धब्बे कुछ और बीमारियों में भी होते हैं, लेकिन इसमें उनके कलर चेंज नहीं होते है। मगर इसकी सही डायग्नोसिस और कंफर्मेशन नाखून और बाल की एनालिसिस के बाद ही किया जा सकता है।

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देसी इलाज से कम हो सकता है असर

प्रो। देवेंद्र मोहन की मानें तो आर्सेनिक फिल्टर करने के कई इक्विपमेंट आते हैं, जो काफी महंगे होते हैं। इसकी मदद से वॉटर को आर्सेनिक फ्री किया जा सकता है। मगर जिसके पास पैसे की कमी हो और वह चाहता है कि वह आर्सेनिक फ्री पानी का इस्तेमाल करें, तो वह सोरस टेक्नीक के जरिए पानी से आर्सेनिक का प्रभाव कम कर सकते हैं। इसके लिए पानी को 24 घंटे प्रॉसेसिंग करना पड़ेगा, जिसके बाद यह इस्तेमाल के लायक होगा।

ऐसे दूर होगा आर्सेनिक

- दो लीटर प्लास्टिक बॉटल लें, जो अल्ट्रा वॉयलेट रेज को एब्जॉर्ब न करता हो।

- इसमें 4/5 हिस्सा यानि कि एक लीटर की बॉटल में 800 एमएल पानी ले लें।

- इसमें छह-सात ड्रॉप नींबू का रस डालकर करीब 30 सेकेंड तक हिलाएं।

- इसके बाद एक रिफ्लेक्टिव स्पेस पर बॉटल को लिटाकर सूरज की रोशनी में 24 घंटे के लिए रख दें।

- 24 घंटे के बाद बॉटल को खड़ा कर छोड़ दें।

- जब अशुद्धि नीचे बैठ जाए तो पानी को साफ कपड़े या सैंड फिल्टर से छान लें और इस्तेमाल करें।

- नींबू की जगह इमली का जूस, टमाटर के जूस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन पीने में इसका टेस्ट थोड़ा अलग होगा।