- आर्कियोलॉजिकल सर्वे की टीम ने संरक्षण करने की शुरू की तैयारी
- जल्द ही शुरू होगी खुदाई, अवशेषों का होगा संरक्षण
GORAKHPUR: गोरखपुर के बांसगांव ब्लॉक में एक बार फिर इतिहास खंगाला जाएगा। ब्लॉक के तालाडीह गांव के नीलकंठ मंदिर के पास अप्रैल माह में आर्कियोलॉजिकल सर्वे की टीम को बौद्धकालीन अवशेष मिले थे, जिसकी रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। खुदाई के लिए एरिया में पहुंची टीम ने आशंका जताई थी कि यहां पर बौद्ध कालीन चीजें मिलने के चांसेज हैं। इसके लिए इनटेक गोरखपुर चैप्टर के कनवेनर एमपी कंडोई और को-कन्वेनर पीके लाहिड़ी ने 19 अक्टूबर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लेटर लिखकर इस बात की जानकारी दी थी। इसके साथ ही संस्कृति और पर्यटन मंत्री महेश शर्मा को भी इसके लिए लेटर दिया गया था, जिसके बाद एएसआई ने यूपी के जिम्मेदारों को आगे की कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
नौ अप्रैल को हुई थी खुदाई
एएसआई की टीम ने 9 अप्रैल को खुदाई की। करीब तीन घंटे तक चली खुदाई में दो हजार वर्ष पूर्व से लेकर 14वीं शताब्दी तक के प्राचीन सिक्के, ईट के साथ कई और चीजें मिली थी। इस खुदाई को आई नेक्स्ट ने प्रमुखता से पब्लिश भी किया था।
टीले के नीचे हैं अवशेष
टीम की अगुवाई कर रहे राज्य पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी ने बताया था कि प्रारंभिक खुदाई में इस क्षेत्र में 12 बीघे तक फैला एक टीला नजर आया है, जिसकी मौजूदा ऊंचाई सात मीटर है। पहले इसकी ऊंचाई 19 से 21 मीटर रही होगी। इसका करीब 10 से 12 मीटर क्षरण हो चुका है। उन्होंने बताया कि टीले के नीचे तीन कालखंडों की संस्कृति के तमाम अवशेष मौजूद हैं।
पहले भी मिल चुके हैं अवशेष
यह पहला मौका नहीं है जब बांसगांव तालाडीह गांव के नीलकंठ मंदिर परिसर के पास प्राचीन सभ्यता संबंधी अवशेष मिले हो। बल्कि अप्रैल में खोदाई से पहले भी भगवान बुद्ध की ताबें की छोटी मूर्ति और पांच-छह से सिक्के मिले थे। उन्होंने खोदाई के लिए पहुंची टीम को ये मूर्तियां और सिक्के भी दिखाए थे। इतना ही नहीं कुछ साल पहले खेत की जुताई के दौरान भी प्राचीन सिक्के मिले थे जो स्थानीय किसान के पास हैं। राज्य पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी ने कहा कि टीले को काटकर किसान खेती कर रहे हैं, जिससे लगातार इसकी ऊंचाई कम हो रही है। यहां दबी ऐतिहासिक धरोहरे भी बर्बाद हो रही हैं। प्रशासन को तत्काल यहां खेती बंद कराकर इसको सुरक्षित करना चाहिए। जिसके बाद यूपी आर्कियोलॉजिकल सर्वे के डायरेक्टर ने प्रशासन को इस संबंध में लेटर भेजकर खेती बंद कराने के लिए कहा था।
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यहीं सिद्धार्थ बने थे गौतम बुद्ध!
आर्कियोलॉजिस्ट पीके लाहिड़ी ने बताया कि प्राचीन काल में यहां कौशल राज्य की सीमा थी। यहीं आमी नदी में स्नान करने के बाद सिद्धार्थ ने अपने केश और राजसी वस्त्रों का त्याग किया था। इसके बाद ही वह बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकल पड़े थे। देखा जाए तो बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए ये एक महत्वपूर्ण जगह है। अब तक इसकी सही लोके शन ज्ञान नहीं थी मगर प्राचीन भग्नावेशष मिलने से स्थिति स्पष्ट हो रही है। इस स्थान को ठीक से उत्खनन के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल के रूप में संरक्षित किया जा सकता है। कुशीनगर, लुम्बिनी और सारनाथ से नजदीकी से इसका महत्व और बढ़ जाता है।
उत्खनन में मिलीं ये चीजें
तांबे के सिक्के
मूर्तियां
मृदभांड
धान की भूसी की ईट
वर्जन
19 अक्टूबर को खुदाई के लिए हमने रिक्वेस्ट किया था। 2 जनवरी को मेल आया है कि फिर खुदाई की जाएगी। उम्मीद है कि इस बार भी बहुत कुछ मिलेगा।
- एमपी कंडोई, कनवेनर, इनटेक गोरखपुर चैप्टर