नहीं तो हम भी हो जाएंगे दिल्ली
- शहर की आबोहवा बिगाड़ने में सभी हैं बराबर के दोषी
-जंगलों से कम हो रहे पेड़, सरेआम जल रहा कचरा और खटारा गाडि़यां पर रहीं सेहत पर भारी
GORAKHPUR: राजधानी दिल्ली की हालत किसी से भी छिपी नहीं है। 5 नवंबर के अंक में आई नेक्स्ट आपको बता चुका है कि गोरखपुर में हालात बहुत मुफीद नहीं हैं। शाम छह से दस के बीच यहां की हवा जहरीली हो जाती है। जानते हैं इसकी वजह क्या है? इसकी वजह हैं हम खुद। जीहां, अगर हम सचेत नहीं हुए तो गोरखपुर का हाल भी दिल्ली जैसा हो जाएगा। आइए जानते हैं हमारी वो कौन सी खताएं हैं जो आने वाले वक्त में हमारी जिंदगी के लिए सजा बन जाएंगी
आरएसपीएम यानी जिंदगी का दुश्मन
रेस्पीरेटरी सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर (आरएसपीएम) की तादाद लगातार बढ़ रही है। इसकी वजह से लोगों का सांस लेने में दिक्कत तो हो ही रही है, वहीं दमा और अस्थमा जैसी बीमारियां भी उन्हें घेर रही हैं।
Respiratory Suspended Particulate Matter (RSPM)
2016
Concentration - 114.14 Microgram/Meter Cube
Dust Content - 0.0612 gms
2015
Concentration - 109.02 Microgram/Meter Cube
Dust Content - 0.0584 gms
आरएसपीएम की तादाद काफी ज्यादा बढ़ती जा रही है। इन दिनों यह आंकड़ा काफी बढ़ गया है, जो सांस, दमा और सीओपीडी के मरीजों को काफी परेशान कर सकता है। इसके लिए हमें खुद प्रिकॉशन लेने की जरूरत है।
- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट
मेडिकल वेस्ट जलाने से कार्बन मोनो ऑक्साइड निकलती है, वहीं इसके पार्टिकिल आरएसपीएम भी बढ़ाते हैं, इनकी साइज काफी छोटी होती है, जिससे लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है। दमा और अस्थमा के मरीजों को इससे खासी परेशानी होती है और अगर इनका स्तर ज्यादा बढ़ जाए, तो मरीज की जान भी जा सकती है।
- डॉ। वीएन अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट
------------
1- हवा को बना रहे जहरीला
कूड़ा उठाने में हो रही लापरवाही गोरखपुराइट्स को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी बांट रही है। सोर्सेज के मुताबिक सिटी के 42 कूड़ा पड़ाव केंद्र में से 14 से 15 कूड़ा पड़ाव केंद्र पर हर रोज कूड़े में आग लगा दी जाती है। नगर निगम के कर्मचारी यह खेल निस्तारण को लेकर करते हैं। मोहद्दीपुर ओवरब्रिज के पास एक कूड़ा पड़ाव केंद्र है, यहां पर सप्ताह में दो से तीन दिन में आग लगा दी जाती है। वहीं मोहद्दीपुर आरकेबीके पास पर कूड़ा पड़ाव बंद है, लेकिन फिर भी यहां पर महीने में 15 से 20 दिन कूड़ा जलते हुए दिखा जाएगा। बक्शीपुर, गीता प्रेस, पैडलेगंज, राजघाट, एकला बंधे सहित कई अन्य एरिया में कूड़ा जलाया जाता है।
नगर निगम का डाटा
शहर से निकलने वाला कूड़ा- 608 मीट्रिक टन
लिखित रूप से कूड़ा निस्तारण की जगह- चिलुआताल, महेसरा
शहर में कूड़ा पड़ाव केंद्र- 42 स्थान
डेली कूड़ा निस्तारण की संभावना- 450 मीट्रिक टन
कूड़ा जलाया जाता है- 50 से 60 मीट्रिक टन
कूड़ा जलाना इसलिए खतरनाक
- प्लास्टिक से सबसे अधिक कार्बन मोनो आक्साइड निकलती है।
- यह गैस इतनी खतरनाक होती है कि 1 किलो प्लास्टिक 5 लोगों को मौत के घाट उतार सकती है।
- इसके अलावा कार्बन डाई ऑक्साइड और फ्यूरान सबसे अधिक गैस निकलती है। इस गैस से कैंसर का खतरा है। बच्चों की लंबाई रुक सकती है।
- प्लास्टिक से सबसे अधिक उड़नशील कार्बनिक यौगिक निकलता है। यह गैस अपने आस-पास के 50 मीटर एरिया में नर्वस डिसऑर्डर और फेफड़ों को प्रभावित करता है
- फाइबर जलाने से पाली साइक्लिहाइड्रो कार्बन और पाली क्लोरिनेटेड डाई बेन्जोफ्योरान नामक गैस निकलती है। यह गैस अपने 50 मीटर की एरिया के बच्चों में घबराहट पैदा करने के साथ ही साथ कैंसर की जड़ बनता है।
- घर से निकलने वाला कूड़ा सबसे अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड निकलता है, इससे निकलने वाले धुंआ किसी व्यक्ति के आंख में 30 मिनट तक लगाता लग जाए तो उसको मोतियाबिंद की प्रॉब्लम हो सकती है।
- इसके अलावा इस कूड़ा से निकलने वाली गैस बच्चों में अस्थमा को भी बढ़ावा देने का काम करती है।
वर्जन
कूड़े में लगाई गई आग शहर के हवा को तो दूषित करती ही है, तापमान को भी बढ़ा देती है। जिस एरिया में कूड़ा जलता है, वहां के तापमान में बहुत अधिक बढ़ जाता है। जिसका सीधा असर जीवन पर पड़ता है।
-जितेंद्र द्विवेदी, एनवायर्नमेंटलिस्ट
----------
शहर पर साढ़े सात गाडि़यों का बोझ
70 के दशक में पूरे गोरखपुर मंडल में कुल लगभग पांच हजार टू व्हीलर व फोर व्हीलर गाडि़यां थीं। आज स्थिति यह है कि सिर्फ गोरखपुर जिले में हर महीने करीब 5 हजार नई गाडि़यां सड़क पर उतर रही हैं। आरटीओ में गाडि़यों के रजिस्ट्रेशन के आंकड़े पर गौर करें तो इस वक्त जिले में कुल करीब 7 लाख 60 हजार गाडि़यां सड़कों पर चल रही हैं। हालांकि इसमें उन गाडि़यों के आंकड़ें नहीं शामिल हैं जिनके गोरखपुर के अलावा दूसरों जिलों या शहरों से रजिस्ट्रेशन कराए गए हैं।
------------------
गोरखपुर में कुल गाडि़यों की संख्या - 7 लाख 59 हजार, 592
ट्रांसपोर्ट व्हीकल की संख्या - 27029
नान ट्रांसपोर्ट व्हीकल की संख्या - 7 लाख 32 हजार 563
स्कूटर - 63877
बाइक - 5 लाख 35 हजार 999
मोपेड - 22179
फोर व्हीलर - 44899
कामर्शियल व्हीकल - 16371
ट्रक, ट्रेलर - 209
अदर्स - 267