- निषाद आरक्षण आंदोलन में गोली लगने से हुई थी अखिलेश की मौत
- फोरेंसिक साइंस की टीम ने नहीं किया विजिट, अब तक नहीं मिली गोली
GORAKHPUR : संडे को मगहर के पास हुए निषाद आरक्षण आंदोलन में इटावा के रहने वाले अखिलेश सिंह निषाद की मौत का एकमात्र सबूत वह गोली थी, जिसने उसकी जान ली। अगर गोली मिल जाती तो बंदूक और चलाने वाले दोनों बेनकाब हो जाते, लेकिन गोली गायब हो चुकी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि कहीं जानबूझकर गोली गायब तो नहीं की गई? अब ऐसे में इसका पर्दाफाश होना कि उसको गोली किसने मारी पुलिस के लिए एक पहेली से कम नहीं है। वहीं फोरेंसिक साइंस के एक्सपर्ट का मानना है कि अखिलेश को गोली करीब से मारी गई थी, तभी उसके शरीर में फंसने के बजाय वह आर-पार निकल गई। वहीं पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों का कहना है कि फायरिंग के कोई आदेश नहीं दिए गए थे, तब गोली किसने चला दी।
गोलियों का रिकॉर्ड कर सकता है पर्दाफाश
आई नेक्स्ट ने जब इस मामले में इनवेस्टिगेशन किया तो सामने आया कि पुलिस और आरपीएफ, दोनों के पास एक-एक गोली का रिकॉर्ड रहता है। आरपीएफ के असिस्टेंट सिक्युरिटी कमाडेंट अनिरूद्घ चौधरी का कहना है कि उन्होंने अपने रिकॉर्ड चेक करवा लिए हैं। जितनी गोलियां गई थी, उन सभी की वापसी रजिस्टर में दर्ज हो चुकी है। वहीं पुलिस में गोलियों का हिसाब देने को कोई अधिकारी तैयार नहीं हुआ। बहुत पूछने पर एक अफसर ने बताया कि गोलियों का पूरा रिकार्ड गोपनीय रखा जाता है। हर थानों पर कितनी गोलियां हैं, उसका रिकार्ड कागजों में दर्ज होता है। घटना के समय बस्ती, संतकबीरनगर और गोरखपुर की टीम घटनास्थल पर पहुंची थी। फोर्स के पास कितनी गोलियां थी और कितनी वापस आई, इसका रिकार्ड बता पाना मुश्किल है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आरपीएफ का दावा है कि उनकी पूरी गोलियां वापस जमा हो चुकी हैं, फिर गोली आरपीएफ ने कैसे चलाई?
आखिर क्यों नहीं गई फोरेंसिक टीम?
इस मामले कीं इन्वेस्टिगेशन में प्रशासन की एक और बड़ी लापरवाही सामने आई। जब भी पुलिस-प्रशासन को ऐसे बड़े बवाल की सूचना मिलती है तो पुलिस बल के अलावा फोरेंसिक टीम को भी मौके पर पहुंचने के आदेश दिए जाते हैं। इस मामले में फोरेंसिक टीम को कोई आदेश ही नहीं मिला। गोरखपुर में पुलिस लाइंस स्थित फोरेंसिक ऑफिस के इंचार्ज एलएन पांडेय ने बताया कि उन्हें घटना की कोई सूचना ही नहीं मिली। अगर सूचना मिलती तो वे अवश्य पहुंचते। आपको बता दें अगर फोरेंसिक टीम मौके पर होती तो अखिलेश की जान लेने वाली 'गोली' भी सबके सामने आ चुकी होती। क्योंकि इस टीम का काम ही मौके पर एविडेंस कलेक्ट करना होता है। कई शूटआउट के मामले फोरेंसिक टीम के खुलासे पर ही आधारित होते हैं। ऐसे में इस टीम को मौके पर न ले जाना भी एक सवाल खड़ा कर रहा है?
आर-पार हो गई थी गोली
जब आई नेक्स्ट टीम मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस पहुंची तो वहां कई चौंका देने वाले मामले सामने आए। यहां पहले तो कोई भी कर्मचारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे लग रहा था कि हर शख्स कुछ छुपाने में लगा हुआ है। बड़ी मुश्किल से एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अखिलेश की बॉडी में गोली कमर के पास लगकर आरपार हो गई थी। बॉडी में से किसी तरह का कोई मेटल नहीं मिला है। उसने बताया कि जिस तरह शरीर से गोली आरपार हुई है, उससे यह साफ जाहिर है कि मारने वाले ने बहुत करीब से गोली चलाई थी।
आखिरकार कौन है मौत का गुनहगार
अखिलेश सिंह निषाद की मौत पर पुलिस का कहना है कि गोली आरपीएफ के जवान ने चलाई थी। वहीं आरपीएफ के असिस्टेंट सिक्योरिटी कमिश्नर अनिरुद्ध चौधरी ने बताया कि इस बवाल में आरपीएफ गोरखपुर एरिया, गोरखपुर पोस्ट, बस्ती पोस्ट मिलाकर कुल 41 लोगों की टीम घटनास्थल पर गई थी। जितने भी हथियार और कारतूस गए थे, वह सब रिटर्न आ चुके हैं। आरपीएफ की तरफ से कहीं कोई फायरिंग नहीं की गई। अगर फायरिंग की जाती तो रिकॉर्ड में एक कारतूस मिस होता, लेकिन ऐसा नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि गोली किसने चलाई है।
अखिलेश की मौत पर सवाल
- आखिरकार किसके आदेश पर प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग शुरू की गई ?
- फायरिंग हुई भी तो किसने अखिलेश को गोली मारी?
- गोली मारी गई तो किसके कहने पर मारी गई?
- घटनास्थल पर चश्मदीद के तौर पर कौन-कौन अधिकारी मौजूद थे?
- अखिलेश की जिस गोली से मौत हुई, वह कहां है?
- आखिर पुलिस ने उस गोली को अभी तक सर्च क्यों नहीं किया?
- मौका-ए-वारदात पर गोली की सर्चिग क्यों नहीं की गई?
- आखिर गोली न मिलने के मामले को दबाया क्यों जा रहा है??
आरपीएफ जवान की गोली से प्रदर्शनकारी की मौत होने की जानकारी मुझे नहीं है। इस घटना की जांच चल रही है। जांच रिपोर्ट आने के बाद जो दोषी होगा, उसके विरुद्ध कार्रवाई होगी।
विजय खातरकर, डिप्टी चीफ सिक्युरिटी कमिश्नर, आरपीएफ
मामले की हकीकत जानने के लिए मौका मुआयाना किया गया है। इसके लिए जांच टीम भी लगाई गई है जो मामले की जांच कर रही है। गोली कहां गई, इसकी भी तलाश की जा रही है। मामले के अन्य पहलुओं पर भी जांच की जा रही है।
प्रदीप कुमार, एसएसपी
अगर किसी की मौत बुलेट से होती है, तो उसके खोखे या मेटल से यह जानकारी मिल सकती है कि वह किस बंदूक से चलाई गई है। मृतक के शरीर से भी एग्जामिन किया जा सकता है कि गोली कितनी दूरी से मारी गई होगी। मौके पर बुलेट और खोखा मिलने से जांच में आसानी होती है।
एलएन पांडेय, प्रभारी, फोरेंसिक सेल