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नंबर गेम

- 3 जिलों की फैमिलीज पर रिसर्च

- 800 परिवारों को पहले चिन्हित किया गया

- 335 फैमिलीज के पैरेंट्स व चाइल्ड पर रिसर्च

- 90 फीसदी फैमिलीज में बच्चे पाए गए एब्यूज का शिकार

- 6 से 18 वर्ष के बच्चों पर हुआ रिसर्च

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- गोरखपुर में पैरेंट्स बच्चो के साथ करते हैं साइकलोजिकली एब्यूज

- DDUGU के मनोविज्ञान की प्रो। सुषमा पांडेय व टीम के रिसर्च से खुलासा

GORAKHPUR: सीबीएसई 12वीं, आईसीएससीई के रिजल्ट आ चुके हैं तो शनिवार को सीबीएसई 10वीं का भी रिजल्ट डिक्लेयर हो रहा है। कुछ टॉपर्स होंगे तो कुछ के रिजल्ट ऐसे भी होंगे जो पैरेंट्स को नागवार गुजरे। बच्चों का रिजल्ट आने के बाद ही आपकी असल परीक्षा शुरू होगी। जी हां, गुस्से में आकर कोई भी ऐसा बर्ताव न करें कि बच्चे पर उसका बुरा प्रभाव पड़े। हाल ही में डीडीयूजीयू के मनोविज्ञान विभाग की प्रो। सुषमा पांडेय व उनकी टीम द्वारा किए गए रिसर्च में खुलासा हुआ है कि 90 फीसदी पैरेंट्स अपने लाडले के साथ साइकलोजिकली एब्यूज (मानसिक शोषण) करते हैं जो कि उनके लिए घातक हो सकता है। कोशिश करें कि आप ऐसा न करें।

800 परिवारों की स्क्रीनिंग

प्रो। सुषमा पांडेय ने रूड्डद्भश्रह्म ह्मद्गह्यद्गड्डह्मष्द्ध श्चह्मश्रद्भद्गष्ह्ल के तहत च्स्श्रष्द्बड्डद्य स्त्र4ठ्ठड्डद्वद्बष्ह्य श्रद्घ ष्द्धद्बद्यस्त्र ड्डढ्डह्वह्यद्ग ड्डठ्ठस्त्र द्बह्लह्य श्चह्य4ष्द्धश्रद्यश्रद्दद्बष्ड्डद्य ष्श्रठ्ठह्यद्गह्नह्वद्गठ्ठष्द्गह्य द्बठ्ठ द्गह्यह्लद्गह्मठ्ठ स्त्रद्बह्यह्लह्मद्बष्ह्ल श्रद्घ ह्वश्चच् विषय पर यह रिसर्च किया है। यूजीसी की तरफ से दिए गए मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत प्रो। सुषमा पांडेय ने अपने दो स्टूडेंट्स के साथ मिलकर चाइल्ड एब्यूज को लेकर पहले परिवारों का चयन किया। इसके लिए गोरखपुर समेत तीन जिलों के स्कूली टीचर्स से मुलाकात की। उनसे जानकारी लेकर उन बच्चों की स्क्रीनिंग की जो स्वभाव व आचरण से बिल्कुल अलग थे। इस तरह करीब 800 परिवार व उनके बच्चों का स्क्रीनिंग की गई। जिनमें से 335 परिवार व उनके बच्चों से जब चाइल्ड एब्यूज को लेकर सवाल जवाब किए गए तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए।

सिटी में साइकलोजिकली एब्यूज

रिसर्च के लिए जिन बच्चों का चयन किया था वे सभी 6-18 वर्ष तक के थे। जब उनकी काउंसलिंग कर उनसे सवाल किए गए तो पाया कि शहरी क्षेत्र के पैरेंट्स जो न्यूली हैं वे अपने बच्चों के साथ साइकलोजिकली एब्यूज ज्यादा करते हैं। वहीं ग्रामीण एरिया के पैरेंट्स फिजिकली एब्यूज (शारीरिक शोषण- मारना पीटना) अधिक करते हैं।

90 प्रतिशत परिवार में चाइल्ड एब्यूज

90 परसेंट परिवार में चाइल्ड एब्यूज की शिकायत पाई गई है। कहीं न कहीं हर फैमिली में यह जाने अनजाने में हो रहा है। फिजिकली एब्यूज की संख्या रूरल बेल्ट, लेबर क्लास, अनएजुकेटेड और यंगर एज के पैरेंट्स में ज्यादा पाया गया है। इसके अलावा जिन पैरेंट्स के बच्चों की संख्या ज्यादा है, वहां भी चाइल्ड एब्यूज के केसेज ज्यादा पाए गए हैं।

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पाए गए हैं इतने तरह के शोषण

1- शारीरिक शोषण: बच्चों को मारना पीटना, धक्का देना, घर से बाहर निकालना आदि (यह उन परिवार में देखने को मिला जो आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। जैसे -लेबर क्लास)

2- मनोवैज्ञानिक बाल शोषण: ज्यादातर पैरेंट्स यह कहते हैं कि जाओ तुम मर जाओ। जान ले लेंगे तुम्हारा, फ‌र्स्ट डिवीजन तुमको लाना ही है टेरराइज करना, डराना, धमकाना, अंधेरे कमरे में बंद कर देना, अभिशाप देना, तुम क्यों पैदा हुए? जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना आदि।

3- सेक्सुअल एब्यूज: गंदी बात करना, अन डिजायर विहैबियर, गुड टच, बैड टच, जबरदस्ती करना (चाहे लड़की हो या लड़का)

4- चाइल्ड नेगलेट: खाना, कपड़ा, दवा, सही समय पर प्रोवाइड न करना

5- एजुकेशनल नेगलेट:- बच्चों को सही समय पर स्कूल नहीं भेजना, घरेलू या फिर लेबर का काम करवाना, ज्यादातर उम्मीदें पालना आदि।

6- इमोशनल नेगलेट: बच्चों की फीलिंग की परवाह नहीं करना। उनकी बात नहीं सुनना, उनके सवालों का जवाब नहीं देना।

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चाइल्ड एब्यूज के साइड इफेक्ट्स

- बच्चों का सर्वागीण विकास रुका हुआ पाया गया।

- बौद्धिक विकास कम पाया गया।

- समस्या समाधान की क्षमता कम मिली।

- सृजनात्मकता की क्षमता कम पाई गई।

- यादयाश्त पर भी बुरा प्रभाव दिखा।

- मोटिवेशनल लेवल कम पाया गया। पढ़ाई-लिखाई खराब पाई गई।

- इंस्पीरेशन लेवल नहीं पाया गया।

- व्यावहारिक गड़बडि़यां देखने को मिलीं। (आक्रामकता, डर)

- सोशल इंटरेक्शन खराब मिला।

- पर्सनाल्टी डेवलपमेंट पर भी खराब असर देखने को मिला।

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वर्जन

हमने गोरखपुर, कुशीनगर व महाराजगंज जिले के 800 परिवार को चिन्हित किया। 6 से 18 साल तक के बच्चों और उनके पैरेंट्स से बात की। 335 फैमिलीज के पैरेंट्स, फिर बच्चों की स्क्रीनिंग की। उसके बाद पर रिसर्च किया। 90 फीसदी फैमिलीज में बच्चे किसी न किसी तरीके से शोषण का शिकार पाए गए।

- प्रो। सुषमा पांडेय, मनोविज्ञान विभाग, डीडीयूजीयू