गोरखपुर (ब्यूरो).इनमें एक कैदी ऐसा था, जिसकी मुलाकात तक नहीं आती थी। रिहाई के दौरान उसे लेने भी कोई नहीं आया, जिसके बाद जेल प्रशासन ने उसे घर पहुंचाया। उसके मां-बाप और भाई का निधन हो चुका था। घर पर उसे पहचानने वाला नहीं था।
दो सगे भाई भी हुए रिहा
15 अगस्त के अवसर में प्रदेश के सभी जेलों से बंदियों को रिहा करने की सूची बनाई गई थी। सूची पर अंतिम मुहर लगने के बाद रविवार से इसका पालन कराया गया है। इसी क्रम में गोरखपुर जेल से 6 बंदी रिहा किए गए हैं। जिन बंदियों की रिहाई हुई है उसमें दो सगे भाई भी शामिल हैं। 6 बंदियों में 3 को 10 साल की सजा मिली थी। जबकि अन्य की सजा एक साल से 10 साल तक थी। इनमें एक बंदी रामअनुज से उनके परिवार को कोई भी मिलने नहीं आता था। आर्थिक तंगी और परिवार में किसी के होने के कारण जेल तक ही उनकी जिंदगी सिमट गई थी। रिहाई की सूचना के बाद रामअनुज को उनके परिवार से कोई लेने नहीं आया था।
बंदी रक्षकों ने रामअनुज को पहुंचाया घर
जेल प्रशासन ने बंदी रक्षकों के साथ रामअनुज को उनके घर पहुंचाया। जेल सूत्रों के मुताबिक गैर इरादतन हत्या में सजा काट रहे रामअनुज को उनके घर पर भी कोई पहचानने वाला नहीं था। माता-पिता और भाई की मौत हो चुकी थी। रामअनुज की शादी हुई नहीं थी, इसलिए उन्हें भतीजे और अन्य लोग नहीं पहचान पा रहे थे। घर पहुंचने के बाद ही रामअनुज को पता चला कि इस दस साल में उनका कोई अपना नहीं बचा है।
यह बंदी हुए हैं रिहा
हरेंद्र यादव पुत्र रामगति यादव, सुभाष गुप्ता पुत्र पल्टू गुप्ता, रामअनुज पुत्र जोखन, राजकुमार पुत्र अमरनाथ, अकबर मियां पुत्र किस्मत मियां, जुम्मन मियां पुत्र किस्मत मियां। अकबर और जुम्मन दोनों सगे भाई हैं।