गोरखपुर (ब्यूरो)।इसका नतीजा रहा है कि समय से पहले ही बच्चे ठीक हो गए। उधर हेल्थ डिपार्टमेंट के विशेषज्ञ छह महीने की मल्टी ड्रग थेरेपी के जरिए कुष्ठ मरीजों को इलाज कर ठीक कर रहे हैं।
छह माह तक खानी है गोली
हेल्थ डिपार्टमेंट की जांच में बच्ची को पासी बेसिलाई पीबी कुष्ठ रोगी पाया गया। डॉक्टर्स की देखरेख में 13 अगस्त 2019 को रजिस्ट्रेशन कर बच्ची की दवा शुरू कर दी गई। छह महीने तक बच्ची को डेली एक गोली खाना था। हेल्थ कर्मियों को निगरानी में इलाज चल रहा था। छह जनवरी 2020 तक बच्ची की दवा पूरी हो गई और उसके दाग धब्बों की सख्ंया ठहर गई। दाग भी हल्के हो गए और वहां के नसों में संवेदना भी आ गई। बच्ची का अभी भी फॉलो अप किया जा रहा है।
तीन बच्चों मरीजों का चल रहा इलाज
जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ। भोला गुप्ता ने बताया कि जिले में इस समय तीन बाल कुष्ठ मरीजों का इलाज चल रहा है। अगर शरीर पर कहीं भी चमड़े के रंग से हल्के रंग के सुन्न दाग धब्बे हों तो यह कुष्ठ हो सकता है। अगर यह लक्षण दिखते ही तुरंत जांच करवा कर इलाज शुरू कराया जाए तो छह महीने की मल्टी ड्रग थेरेपी से ही ठीक हो सकते हैं।
केस 1- चरगांवा ब्लॉक के ऐसे ही एक पिता की सतर्कता से आठ साल की उम्र में ही बच्ची में कुष्ठ की पहचान हो गई और महज छह माह के इलाज से बिटिया कुष्ठ से मुक्त हो गई। बच्ची के पिता ने चेहरे और हथेली पर दाग देख तुरंत निजी डॉक्टर को दिखाया था। वहां से बीआरडी मेडिकल कॉलेज गये जहां कुष्ठ की पहचान हुई। चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से छह माह तक लगातार दवा चली और बच्ची ठीक हो गई।
केस 2-पादरी बाजार के मोहनापुर निवासी 40 वर्षीय अजय (बदला हुआ नाम) के तीन बच्चे हैं। वह पेशे से मजदूर हैं। वह बताते हैं कि उनकी तीसरी बेटी जब आठ साल की हुई तो चेहरे पर सिर के पास और दायीं हथेली में छोटे छोटे दाग दिखने लगे। बिना देरी किये बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले गया जहां डॉक्टर्स ने जांच के बाद कुष्ठ की दवा चलाने को कहा। दवा के लिए चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया गया।
कुष्ठ से मुक्त हुए बच्चे
वर्ष बच्चों की संख्या
2018-19 12
2019-20 13
2020-21 02
2021-22 05
2022-23 04
जिले में कहीं भी बाल कुष्ठ मरीजों का मिलना इस बात का संकेत है कि संबंधित क्षेत्र में तीव्र संक्रमण हो रहा है। ऐसे स्थानों पर फोकस्ड लैप्रोसी कैंपन (एफएलसी) चलाने का प्राविधान है, जिसके तहत शहरी क्षेत्र में 300 घरों में जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे गांव की स्क्रीनिंग की जाती है। दिव्यांग कुष्ठ मरीज मिलने पर भी एफएलसी चलाते हैं। इसके तहत सभी को कुष्ठ से बचाव की दवा भी दी जाती है।
- डॉ। गणेश यादव, जिला कुष्ठ निवारण अधिकारी