- एक दशक बाद भी पाकिस्तानियों को नहीं ढूंढ सकी है पुलिस
- आशंका, कहीं स्लीपिंग मॉड्यूल बन लगा न दें सुरक्षा में सेंध
GORAKHPUR:
बॉर्डर पर हालात पुरसुकून नहीं हैं। आए दिन सेना की चौकियों पर हमले हो रहे हैं। देश में भी आतंकी खतरों का अंदेशा बरकरार है। ऐसे में जब यह बताया जाए कि एक अरसे पहले गोरखपुर आए 26 पाकिस्तानी आज भी लापता हैं, तो पेशानी पर बल पड़ जाना लाजिमी है।
जीहां, पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक बीते एक दशक मे, गोरखपुर में एक या दो नहीं, 26 पाकिस्तानी आए हैं। यह आए तो, लेकिन गए कहां इस बारे में कुछ भी पता नहीं। खुफिया पुलिस से लेकर एलआईयू तक इनकी टोह में लगी हैं, लेकिन पुख्ता जानकारी किसी के पास नहीं। वहीं इंटेलीजेंस के जानकारों का कहना है कि सभी लापता पाकिस्तानी नागरिकों ने यहीं ठिकाना बना लिया है। ऐसे में यह भी आशंका सिर उठाने लगी है कि कहीं ये पाकिस्तानी स्लीपिंग मॉड्यूल की भूमिका में अहम जानकारियां तो नहीं लीक कर रहे हैं।
आज तक नहीं लौटे पाकिस्तान
कुछ दिन पहले पुलिस मुख्यालय ने प्रदेश भर के छह जिलों में लापता पाकिस्तानी नागरिकों की सूची जारी की थी। इसमें इन पाकिस्तानियों के यहां आने की तो सूचना है, लेकिन वापस लौटने की कोई सूचना न तो पुलिस और न ही इंटेलीजेंस के पास है। गोरखपुर में ऐसे 26 पाकिस्तानी हैं। बीते दिनों तत्कालीन एसएसपी लव कुमार ने इस संबंध में पुलिस व एलआईयू को निर्देश भी जारी किया था। लेकिन उनके ट्रांसफर होने के बाद यह मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया।
सीरियल ब्लास्ट्स के मददगार का भी पता नहीं
22 मई 2007 को गोरखपुर के गोलघर जैसे पॉश एरिया में एक साथ तीन सीरियल ब्लास्ट करने के मामले में एटीएस ने आजमगढ़ से अबू काजमी नाम के संदिग्ध को गिरफ्तार किया था। लेकिन हैरानी वाली बात है कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के वालों के मददगारों का पुलिस सुराग तक नहीं पा सकी। जबकि मामले में जांच एजेंसियों ने साफ कहा था कि बिना लोकल मदद के इस घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता।
तो यहीं के बन गए नागरिक
इस बारे में इंटीलिजेंस सूत्रों का दावा है कि इन सभी पाकिस्तानियों ने फर्जी ढंग से यहां की नागरिकता हासिल कर ली है। यही वजह से कि अब इनका सुराग लगाना पुलिस व इंटीलिजेंस के लिए एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। गौरतलब है कि बीते दिनों कुशीनगर जिले से पकड़े गए आतंकी के पास से एटीएस ने लोकल आईडी व एड्रेस प्रूफ सहित तमाम लोकल डॉक्यूमेंट्स बरामद किए थे।
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स्लीपर सेल बनने आते हैं पाकिस्तानी
खुफिया सूत्रों के मुताबिक ऐसे पाकिस्तानी नागरिकों का यहां आकर छिप जाने का मकसद सिर्फ आतंकी घटना को अंजाम देना ही नहीं होता। कई दफा उन्हें यहां स्लीपर सेल बनाने के लिए भेजा जाता है। ऐसे लोग स्थानीय नागरिकता हासिल कर सबसे घुल-मिलकर रहते हैं और साथ में देश की खुफिया जानकारी पाकिस्तान भेजते रहते हैं। साथ ही बड़ी साजिशों को अंजाम देने में आतंकियों के मददगार बनते हैं।
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दर्जनों पर इंटीलिजेंस की नजर
इंटीलिजेंस सूत्रों के मुताबिक जिले भर में करीब दर्जन भर ऐसे लोग हैं, जिनपर खुफिया एजेंसियों की पैनी नजर है। फिलहाल इनपर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा क्योंकि इनका रसूख और पॉलिटिकल कनेक्शन इसके आड़े आ रहा है।
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दर्ज होता है आने-जाने का रिकॉर्ड
जब भी कोई विदेशी नागरिक आता है कि तो अपने कहीं भी आने व जाने की पूरी जानकारी पुलिस और इंटेलीजेंस में दर्ज कराता है। इससे पुलिस को पता होता है कि शहर में मौजूदा वक्त में कितने विदेशी नागरिक मौजूद हैं।
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इसलिए गोरखपुर महफूज ठिकाना
-भारत-नेपाल की खुली सीमा से सटे होने के कारण आतंकी गोरखपुर को सबसे महफूज ठिकाना मानते रहे हैं।
-हेडली जैसे आतंकी ने कबूल किया था कि वह गोरखपुर होते हुए भारत की सीमा में दाखिल हुए थे।
-नेपाल व बिहार बॉर्डर से भी दर्जनों बार संदिग्ध आंतकी व पाकिस्तानी नागरिक भारत में घुसपैठ करते पकड़े जा चुके हैं।
-नेपाल के साथ चीन के गरमाते रिश्तों ने भी गोरखपुर को अधिक संवेदनशील बना दिया है।
इन शहरों में भी हैं लापता पाकिस्तानी
गोरखपुर - 26
लखनऊ - 58
कानपुर - 96
बरेली - 72
मेरठ - 44
इलाहाबाद - 31