बरेली (ब्यूरो)। मौसम के साथ-साथ आजकल लोगों के एथिक्स भी बदलते जा रहे हैं। किसके साथ किस तरह का बिहेव करना है यह उनकी सेल्फ चॉइज डिपेनडेंसी होती जा रही है। जिसका खामियाजा आने वाले समय में उन्हे ही झेलना पड़ सकता है। लोग धीरे-धीरे कुछ ज्यादा ही प्रैक्टिकल होते जा रहे हैैं। हर चीज में वे अपना ही फायदा ढूंढना शुरू कर देते है। हर जगह एथिक्स की जरूरत है। एथिक्स नहीं होंगे तो सिस्टम को चलाना मुश्किल हो जाएगा।
हर जगह एथिक्स की नीड
एथिक्स की नीड हर जगह, हर फील्ड में है। फिर चाहे वो हमारे घरों में हो या फिर कॉपरेटिव वल्र्ड में हो। सभी को कुछ एथिक्स को फॉलो करना ही होगा। मैनेजमेंट डिपार्टमेंट की हेड एंड डीन प्रो। डॉ। तूलिका सक्सेना का कहना है कि हमारे चलने, बात करने और बैठने हर किसी में एथिक्स शो होती है। यह हमारे जीवन की नींव है।
अपना फायदा बनता
आज के टाइम में कई लोग दूसरे की मदद तब ही करते हैैं। जब उन्हें उस काम में कुछ फायदा दिखता है। लोग हर चीज में अपना फायदा ढूंढने लगे है। इसकी वजह से उन्होंने हर चीज में अपने ही रूल्स बना लिए है। मन मुताबिक पढ़़़ाई, मन हुआ तो टीचर से लड़ाई।
फॉलो होते थे एथिक्स
अगर बीते कुछ टाइम पहले की बात की जाए तो घर के बड़ो का ही रूल चलता था। उनका कहना पत्थर की लकीर हो जाता था। उनके बनाए रूल को हर किसी को मनना होता ही था, पर टाइम के साथ कई चीजें बदल गई है। इसे खुद हर किसी ने फेस किया होगा कि किस तरह से धीरे-धीरे चीजें बदल रही हैैं। भले ही समय को चेंज की जरूरत होती है, पर वह चेंज कभी-कभी बगावत में बदल जाता है। हर कोई अपनेे ही मन मुताबिक चीजें करना चाहता हैै। इसमें अगर कोई दूसरा अगर कुछ बताने की कोशिश करे तो वे उसे गलत लगने लगती हैैं।
सबको चाहिए स्पेस
स्पेस, यह अब सिर्फ एक शब्द नहीं रह गया है। हर किसी ने इसको अपनी प्रायोरिटी बना लिया हैै। उन्हें हर चीज में स्पेस चाहिए। फिर चाहे वो उनकी ही फैमिली से ही संबंधित कोई बात अथवा व्यक्ति क्यों न हो। पर्सनल स्पेस हैप्पी लाइफ , हैप्पी फैमली और सेल्फ ग्रोथ के लिए बहुत ही जरूरी होती जा रही है। यूथ को पसंद नहीं होता है की कोई उनकी पर्सनल स्पेस में कोई दखल अंदाजी करे।
गुजरे जमाने की बात है एथिक्स
इक्नॉमिक डिपार्टमेंट के हेड डॉ। अशुतोष प्रिया ने कहा की असली एथिक्स तो आदिकाल से चलते चले आ रहे हैैं। हमारे पुराने कल्चर को देखें तो भगवान राम और कृष्ण आदि किसी को भी देख लें। ïउन सबने अपने एथिक्स को फॉलो किया, इसलिए ही वे पूजनीय हैं। लोग उन्हें फॉलो कर रहे हैैं। जैसे-जैसे टाइम आगे बढ़ रहा है यह एथिक्स सिर्फ नाम की ही बात रह गई है। लोगों को हर चीज मेंंं उनका फायदा ही नजर आता है।
आड़े आ रहा जेनरेशन गैैप
लोगों से बात करने पर यह बात सामने आई कि जेनरेशन गैप लोगों के एथिक्स के बदलाव की सबसे बड़ी वजह है। लोग एक-दूसरे की बातों को समझने की जगह अपने ही आंकड़े लगाना शुरू कर देते हैं। उनके एथिक्स लोगों पर डिपेंडेंट नहीं होते है। उनकी च्वाइस डिपेंडेंट होती हैै। कुछ स्टूडेंट्स ने कहा कि कई बार हमारे बडों की बातें सही भी होती हैं, पर गुस्से में हमें वे बाते गलत ही लगती हैैं।
ऑर्थोडॉक्स समझ रहे लोग
आज की जेनरेशन को अपने से बड़ों की बातें ऑर्थोडॉक्स लगती हैैं। यह कहना खुद स्टूडेंट्स का ही है। कॉलेज में स्टूडेंट्स से बात करने पर उन्होंने कहा कि कई बार हमारे आसपास के लोग टाइम के साथ बदलना नहीं चाहते। उन्हें हर चीज अपने मन मुताबिक चाहिए होती हैै और वह ही चीज हमें अच्छी नहीं लगती।
एथिक्स का खात्मा भ्रष्टाचार को जन्म देता है। हर इंडिविज्वल अपने मन मुताबिक अपने एथिक्स को बदल देता है। हम अपने आस पास की चीजों को देखकर बहुत कुछ सीखते है। अब सोशल मीडिया के थू्र लोगों को एथिक्स सिखाई जा रही हैै।
डॉ। अशुतोष प्रिया, हेड, इक्नॉमिक डिपार्टमेंट
एथिक्स तो हर चीज के लिए सबसे इंपॉर्टेंट पार्ट होता है। एथिक्स हमारे मीन्स और एंड को जस्टिफाई करता है। क्या सही है, क्या गलत हमें खुद ही समझना चाहिए। यूथ देश के रिप्रजेंटेटिव हैं। हमारे द्वारा की गई हर चीज हमारे वे ऑफ लिविंग को दिखाता है।
डॉ। तूलिका सक्सेना, हेड एंड डीन, मैनेजमेंट डिपार्टमेंट
आज के टाइम पर लोग एथिक्स अपनी मनमर्जी के हिसाब से बदल लेते है। जैसा काम वैसे एथिक्स। हर फील्ड में लोगों को इसे फॉलो करना चाहिए। वहीं हम ऐसी फील्ड में है जहां हर चीज एथिक्स डिपेंडेंट होती है।
डॉ। दिनेश प्रताप सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन डिपार्टमेंट