हिमांशु अग्निहोत्री (बरेली)। हर मुहल्ले की अपनी अलग जीवंतता और खूबसूरती होती है। यह जीवंतता और सुंदरता सिर्फ और सिर्फ वहां के लोगों से आती है। कभी साथ खेले बच्चे बड़े हो जाते हैैं। वह मुहल्ले को रौनक देते हैैं। इनमें खूबसूरत सामाजिक ताना-बाना होता है। वह हर रोज एक-दूसरे से मिलते हैैं। सुख-दुख के हाल पूछते हैैं। इनमें न कोई हिंदू होता है और न कोई मुस्लिम। सब कुछ ऐसा ही चलता रहता है। फिर ऐसा क्या होता है कि किसी एक दिन यह ताना-बाना टूटकर अलग हो जाता है। लोग दो खेमों में बंट जाते हैैं। इनसान नहीं धर्म खतरे में पड़ जाता है। यही सवाल दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने जोगी नवादा के लोगों से जानने की कोशिश की।

उदासी और परेशानी
आज के जोगी नवादा की तस्वीर उतारी जाए तो वहां सिर्फ उदासी और परेशानी दिखती है। लोग पुराने दिन वापस चाहते हैैं। बातचीत करते हुए उनकी आंखें नम हो जाती हैैं। उनके उदास चेहरे बताते हैैं कि उन्हें जरा सी बात की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। यहां के लोग गली से गुजरने वाले हर चेहरे को टकटकी लगाकर देखते हैैं। इन निगाहों में उम्मीद और खौफ दोनों के मिले-जुले भाव हैैं। यहां के लोग किसी भी सूरत में विवाद का हल चाहते हैैं। यह हल कैसे निकलेगा? यह नहीं जानते हैैं। गली के मोड़ पर खड़ीं 70 साल की सरवरी बेगम यहां के सामन्य हालातों को याद करते हुए बताती हैं कि हम आपस में कभी नहीं लड़े। बरसों से लोग भाईचारे के साथ रहते आ रहे हैैं। कभी आपसी संबंधों में खटास नहीं आई, लेकिन कुछ समय से ऐसी स्थिति हुई कि हर तरफ से बस खौफ आ रहा है। हम अपना पुराना मुहल्ला चाहते हैैं, जहां पहले जैसी शांति हो।

बदल गई तस्वीर
जोगी नवादा की तंग गलियां कुछ समय पहले तक गुलजार थीं। सभी लोग इन गलियों से गुजरते थे। बच्चे सडक़ों पर खेलते हुए दिखाई देते थे, लेकिन विवाद के बाद से नजारा पूरी तरह से बदल चुका है। यहां की गलियों में देखने पर स्थानीय लोगों से अधिक पुलिस फोर्स दिखाई दे रही है। दुकानों से लेकर घरों के आगे तक फोर्स तैनात है।

सुख-दुख के साथी
चक महमूद निवासी रामेश्वर बताते हैैं कि यहां की गलियां हमेशा गुलजार रही हैैं। लोग आपस में बातचीत कर समस्याओं का समाधान निकालते रहे हैैं। एक-दूसरे का सम्मान और बच्चों में आपस में दोस्ती रही है। एक एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ देते रहे हैैं हम लोग। इस विवाद ने सारा चैन छीन लिया है। मनोस्थिति पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। लोगों का काम भी प्रभावित हो रहा है। मिश्रित आबादी होने के कारण लोगों के घर और दुकानें भी आपस में जुड़ी हुई हैैं। उन्होंने कहा कि हम आज भी एक-दूसरे की दुकानों से जरूरी चीजें खरीद रहे हैैं।

उड़ गई रातों की नींद
स्थानीय लोग बताते हैं कि बवाल के बाद से रातों की नींद उड़ गई है। क्षेत्र छावनी में तब्दील हो चुका है। पुलिसबल और फोर्स की निगरानी में ही लोग घरों से बाहर निकल पा रहे हैैं। हालात पहले से भले ही सामान्य हुए हैैं, लेकिन लोगों के चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था।

&यह मकान बिकाऊ है&य
क्षेत्र में रहने वाले समुदाय विशेष के अधिकांश घरों पर पोस्टर चस्पा किए गए हैैं। इन पोस्टर्स पर &यह मकान बिकाऊ है&य का संदेश लिखा हुआ है। स्थानीय लोगों का इस बारे में कहना है कि अगर क्षेत्र में ऐसी स्थिति बनी रहेगी तो जाना ही ऑप्शन होगा। जोगी नवादा की एक गली में 35 घर हैैं। इस गली के मोड़ पर ही एक बैनर लगाया गया है। इस पर लिखा है, &इस गली के सभी मकान बिकाऊ हैं&य। इस तरह ही कई गलियों में घरों के आगे पोस्टर चस्पा किए गए हैैं। लोगों का कहना है कि कुछ लोगों ने स्थितियों को खराब किया है, सभी शांति से ही हमेशा रहे हैैं। भाईचारा ही हमारी पहचान रही हैै।

साथ खेलकर बड़े हुए हैैं
जोगी नवादा मिश्रित आबादी वाला क्षेत्र हैै। स्थानीय युवाओं का कहना है कि बचपन में सभी साथ खेला करते थे। एक-दूसरे के दुख में भी शरीक होते रहे हैैं। कई दोस्त है, साथ में घूमते भी हैं, लेकिन अब स्थितियां पहले जैसी नहीं रही हैं। इस विवाद के बाद संबंधों में काफी हद तक दरार आ चुकी है। वह कहते हैैं कि हम सभी शांति चाहते हैैं, इसका हल निकलना जरूरी है। फिलहाल यहां चप्पे-चप्पे पर पहरा लगा हुआ है। रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिसबल की टीम लगातार क्षेत्र में पेट्रोलिंग भी कर रही हैं।