फाइलों में ही हो रही fogging
इनके पास दवाइयों का पूरा स्टॉक है, फॉगिंग मशीनें हैं, इन्हें यूज करने और करवाने का अधिकार है, फिर भी निगम है कि मच्छर तक नहीं मार पा रहा। निगम की यह सुस्ती रेजिडेंट्स पर बहुत भारी पड़ रही है। डेंगू और मलेरिया तेजी से फैल रहा है। हर साल मच्छर खत्म करने के लिए लाखों की खरीदारी की जाती है, फिर भी काम है कि कागजों से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहा। निगम के लिए तो सरकारी गजट भी ठेंगे पर है। आज तक जलभराव के लिए रेस्पॉन्सिबल एक भी रेजिडेंट के खिलाफ चालान नहीं हुआ। प्वाइंट ये है कि जब निगम खुद कुछ नहीं कर रहा तो रेजिडेंट्स से कैसे करवाएगा।
मच्छर पनपने का पूरा इंतजाम
अगर सिटी में संक्रामक बीमारियां दस्तक दे रही हैं तो हैरान होने की जरूरत नहीं है, मच्छरों की पैदावार का इंतजाम पहले से मौजूद जो है। बारिश के बाद जगह-जगह इकट्ठा हुए पानी में पहले तो मच्छरों के लार्वा पनपते हैं। फिर जब मच्छर रेजिडेंट््स को काटते हैं तो मलेरिया और डेंगू के साथ अन्य बीमारियों के वायरस फैलते हैं। लार्वा पनपने के खिलाफ चलने वाले विभागीय अभियान का भी अता-पता नहीं है। हेल्थ डिपार्टमेंट की फाइलों में एंटी लार्वा प्रोग्राम्स कई बार बना और बिगड़ा लेकिन सड़कों तक नहीं पहुंचा।
कड़े हैं नियम
नगर निगम को क्लीयर डायरेक्शन हैं कि शहर में पानी के ठहराव के मामलों पर कैसे और क्या कार्रवाई करनी चाहिए। पर खुद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी नियमों की धज्जियां उड़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। निर्देशों के अनुसार अगर कहीं पानी ठहर जाए तो उसमें रेजिडेंट्स को अपने स्तर से कीटनाशक डालना होता है। जो रेजिडेंट्स इसकी अनदेखी कर रहे हैं, नगर स्वास्थ्य अधिकारी उन्हें नोटिस जारी करता है। नोटिस जारी होने के 24 घंटे के अंदर संबंधित व्यक्ति को मच्छर खत्म करने के इंतजाम करने होंगे।
आज तक कोई action नहीं
अगर किसी किराएदार को पानी ठहराव का नोटिस दिया जाता है और वह मच्छर रोधी ट्रीटमेंट कराता है तो किराएदार इसका खर्च मकान मालिक से ले सकता है। अगर किसी रेजिडेंट को नोटिस जारी की जाती है और वह दवा का छिड़काव नहीं करता है तो नगर निगम उससे इसकी रकम वसूल कर सकता है। इतने प्रावधान होने के बावजूद नगर निगम ने आज तक ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की है। यही नहीं अगर किसी निर्माण से मच्छर रोधी कार्रवाई प्रभावित होती है तो नगर निगम उस कंस्ट्रक्शन वर्क को रोक सकता है।
6 मशीनें खरीदी थीं पर अब 3 हैं
वर्ष 2007-08 में 12वें वित्त आयोग से 4 फॉगिंग मशीनें 3,26,250 रुपए में खरीदी गई थीं। इसके बाद वर्ष 08-09 में अवस्थापना निधि से फॉगिंग मशीन की 9,66,487 रुपए में खरीदारी की गई। वर्ष 2010-11 में वित्त आयोग से एक फॉगिंग मशीन की परचेजिंग 8,48,685 रुपए में की गई थी। स्वास्थ्य विभाग के स्टोर सोर्सेज में मुताबिक, हालिया समय में निगम के पास 2 बड़ी फॉगिंग मशीन और एक मीडियम साइज की मशीन मौजूद है। जबकि बाकी मशीनें स्टोर में ही कबाड़ हो गई हैं। वहीं एंटी लार्वा अभियान के लिए पिछले 4 सालों में 10 लाख से ज्यादा की दवाइयां खरीदी जा चुकी हैं फिर भी नतीजा सिफर से ज्यादा कुछ नहीं है।
32 लाख स्वाहा, रिजल्ट जीरो
नगर निगम ने 4 साल में फॉगिंग मशीन पर तकरीबन 21,41,422 रुपए खर्च किए है। मलेरिया एंटी लार्वा और कीटनाशकों से राहत के लिए 10,48,628 लाख रूपए फूंक दिए। इन आकड़ों के बाद तो यही लगता है कि शहर से मच्छर जनित संक्रामक रोग का सफाया हो जाना चाहिए। जबकि जमीनी हकीकत ठीक उलट है। हॉस्पिटल्स में पेशेंट्स की आमद सरकारी आंकड़ों से अपोजिट इशारा करती है।
डेंगू ने मारा डंक
डायरिया, वायरल फीवर और मलेरिया के बाद अब सिटी में डेंगू ने भी दस्तक दे दी है। सिटी के प्राइवेट हॉस्पिटल में डेंगू के पहले केस की पुष्टि हुई है। डॉ। राजीव गोयल ने बताया कि मंडे रात को चरकपुरी निवासी सईद अहमद हॉस्पिटल में एडमिट हुआ था। पेशेंट में डेंगू के लक्षण नजर आने पर ब्लड टेस्ट के बाद डिजीज की पुष्टि हो गई है। इसके बाद सीएमओ एके त्यागी ने ब्लड बैंक को प्लेटलेट्स संबंधी डायरेक्शन जारी कर दिए हैं।
वायरल से मिलते-जुलते लक्षण
डॉ। राजीव गोयल ने बताया कि डेंगू फीवर में पेशेंट को अचानक मसल्स पेन के साथ तेज फीवर आता है। पेशेंट को उल्टियां भी होती हैं। वैसे ये लक्षण वायरल से मिलते जुलते हैं, मगर डेंगू के केस में प्लेंटलेट्स बहुत तेजी से कम हो जाते हैं। साथ ही सिर और आंखों का दर्द भी पेशेंट को बना रहता है। फीवर 103 डिग्री से लेकर 106 डिग्री सेल्सियस तक बना रहता है।
न चढ़ाएं बेवजह प्लेटलेट्स
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के ब्लड बैंक प्रभारी जीडी कटियार ने बताया कि डेंगू की पुष्टि होने के बाद भी प्लेटलेट्स उन्हीं पेशेंट्स को चढ़ाई जाए, जिन्हें ब्लीडिं्रग हो रही हो और प्लेटलेट्स की संख्या 20 हजार से कम हो गई हो। अगर प्लेटलेट्स कम हो लेकिन ब्लीडिंग न हो रही हो तो भी प्लेटलेट्स चढ़ाने से बचना चाहिए। प्लेटलेट्स के साथ भी इंफेक्शन का बॉडी में पहुंचने का खतरा बना रहता है।
परचेजिंग का ब्योरा
वर्ष सोर्स ऑफ फंड मशीनें कॉस्ट
2007-08 12वें वित्त आयोग 4 फॉगिंग मशीने 3,26,250 रुपए
2008-09 अवस्थापना निधि 1 फॉगिंग मशीन 9,66,487 रुपए
2010-11 12 वें वित्त आयोग 1 फॉगिंग मशीन 8,48,685 रुपए
एंटी लार्वा और फॉगिंग मेडिसिन की खरीद का ब्यौरा
2007-08 कीटनाशक दवाएं 30,900 रुपए
मलेरिया 51,600 रुपए
2008-09 कीटनाशक दवाएं 65,000 रुपए
वायलार्वा 1,48,378 रुपए
2009-10 वायलार्वा 39,000 रुपए
2010-11 किंग फाग 1,27,500 रुपए
वायलार्वा 58,6250 रुपए
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के ब्लड बैंक को हमने प्लेटलेट्स का स्टॉक मेंटेन रखने का ऑर्डर दे दिया है। हॉस्पिटल ऐसी सिचुएशन से निपटने के लिए तैयार है।
-डॉ। एके त्यागी, सीएमओ
सिटी में साफ सफाई की व्यवस्था पहले से बेहतर है। एंटी लार्वा अभियान हम जल्द चलाने की तैयारी कर रहे हैं। नगर आयुक्त से डायरेक्शन मिल चुके हैं। सिटी के अलग-अलग हिस्सों में फॉगिंग करवाई जा रही है।
-मातादीन,
नगर स्वास्थ्य अधिकारी
मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। सबसे बुरी कंडीशन तो पुराने शहर में है। गंदगी और ठहरे हुए पानी की रोकथाम नगर निगम नहीं कर पा रहा है।
-प्रभाकर, रेजिडेंट
मलेरिया और वायरस से फैलने वाली बीमारियों से लगभग सभी रेजिडेंट्स परेशान हैं। नगर निगम को सभी एरियाज में फॉगिंग के अरेंजमेंट्स करने चाहिए मगर ऐसा हो नहीं रहा है।
-संतोष, रेजिडेंट
आजमनगर में गंदगी की समस्या ज्यादा है। नालियों में पानी हफ्तों ठहरा रहता है। मच्छर जमकर पैदा होते हैं और रेजिडेंट्स को इंफेक्शन भी ज्यादा यहीं पर हो रहा है।
-रशीद, रेजिडेंट
समय पर फॉगिंग करवाई जाए तो ये सारी समस्याएं ही न हों मगर निगम की तरफ से लंबे समय से कोई पहल की नहीं गई है। गलियों में गंदगी के ढेर साफ करने के लिए कोई नहीं आ रहा है।
-हरीश, रेजिडेंट