ट्यूजडे को इज्जतनगर डिवीजन के कासगंज-हाथरस के बीच सुबह 7:19 बजे बड़ा एक्सीडेंट हो गया। एक टाटा मैजिक गाड़ी मानवरहित क्रॉसिंग पर 51976 मथुरा-कासगंज पैसेंजर ट्रेन से टकरा गई। मैजिक में सवार 15 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 2 लोग सीरियसली इंजर्ड हो गए। बस गनीमत रही कि ट्रेन पटरी से नहीं उतरी। ट्रेन के पैसेंजर सुरक्षित रहे।

स्टाफ की भारी कमी

संरक्षा कर्मचारियों की कमी और संसाधनों का अभाव पैसेंजर्स के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। पूर्वोत्तर रेलवे में 400 से ज्यादा मानवरहित क्रॉसिंग हैं। इन क्रॉसिंग को सिक्योर करने के लिए रेलवे को 2,500 अतिरिक्त रेलवे कर्मचारियों की रिक्वायरमेंट है लेकिन इस दिशा में कोई काम होता नजर नहीं आ रहा है। काफी दिनों से भर्ती नहीं हुई है। हालिया रेल बजट में मानवरहित क्रॉसिंग पर होने वाली दुर्घटनाओं को ध्यान में रखते हुए संरक्षा कर्मचारियों की संख्या में इजाफा करने का प्रावधान किया था।

पैसा लेकर भी सिक्योरिटी नहीं

यह हाल तब है, जब पैसेंजर्स से किराए के साथ सुरक्षा के पैसे भी वसूले जाते हैं। इंडियन रेलवे पैसेंजर्स से सुरक्षा का शुल्क लेता है। 500 किमी तक की जर्नी के टिकट पर स्लीपर क्लास में 10 रुपए, एसी फस्र्ट क्लास में 50 रुपए, एसी सेकेंड क्लास में 40 रुपए, एसी थर्ड क्लास में 30 रुपए और एसी चेयरकार व फस्र्ट क्लास में 20 रुपए सुरक्षा के होते हैं। वहीं जर्नी का डिस्टेंस 500 किमी से ऊपर होते ही जस्ट डबल हो जाता है। अब सवाल यह उठता है कि अगर पैसेंजर्स सुरक्षा के लिए पे करते हैं तो फिर इसके इंतजाम क्यों नहीं किए जाते।

सिक्योरिटी चार्ज

क्लास              500 किमी तक    500 किमी से ज्यादा

स्लीपर क्लास       10 रुपए          20 रुपए

एसी फस्र्ट क्लास    50 रुपए         100 रुपए

एसी सेकेंड क्लास    40 रुपए           80 रुपए

एसी थर्ड क्लास      30 रुपए           60 रुपए

एसी चेयरकार व     

फस्र्ट क्लास           20 रुपए         40 रुपए

बोगियां भी कम हैं

संरक्षा कर्मचारियों की कमी के साथ ट्रेनों में डिब्बों की कमी भी बड़ी प्रॉब्लम है। इसकी वजह से भी पैसेंजर्स की जान पर खतरा बना रहता है। लखनऊ-बरेली-दिल्ली रूट पर चलने वाली ट्रेनों में जनरल बोगियों की संख्या बहुत कम है। मजबूरन पैसेंजर्स को गेट पर लटककर जर्नी करनी पड़ती है। यहां तक कि लॉन्ग जर्नी में भी यही हाल देखने को मिलता है। इसकी बानगी फरवरी में ही देखने को मिली थी। तब फरीदपुर के पास कुछ युवक टे्रन से गिरकर घायल हो गए थे।

मतलब ये कि घटना का ठीकरा टाटा मैजिक गाड़ी वाले पर थोप दिया। सिक्योरिटी की मद में वसूल होने वाले पैसे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। हां, खुद को यह कहकर कि उन्होंने सुरक्षा इंतजामों की बाबत एसएमएस और गांव में डुग-डुगी पिटवाकर लोगों को अवेयर किया है, अपनी पीठ ठोक ली और सेफ करने की कोशिश की।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ

-फरवरी 2011 में हुए आईटीबीपी कांड को अभी लोग भुला नहीं सके हैं। भर्ती प्रक्रिया के बाद कैंडिडेट्स घर लौट रहे थे। 19 कैंडिडेट्स की ओवरब्रिज से टकराकर मौत हो गई थी। वहीं तमाम घायल हो गए थे। इसके बाद शहर में बड़ा बवाल हो गया था। इसका असर आस-पास के शहरों में भी देखने को मिला था।

-2009 में बरेली के पास ट्रेन की छत से मीटरगेज गिर गया था। इससे चार युवकों की दर्दनाक मौत हो गई थी। इस मामले में रेलवे सिक्योरिटी सिस्टम पर सवालिया निशान लगा था।

कृपया डीआरएम साहब के कहे पर भी ध्यान दें

टाटा में सवार लोगों को पहले उतरकर दाएं और बाएं देखना चाहिए था। इसके बाद क्रॉसिंग पार करना चाहिए था।

-उमेश सिंह, डीआरएम, इज्जतनगर डिवीजन

Report by: Abhishek Mishra