-महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध पर पुलिस को सेंसटाइज करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम

-चार घंटे की ट्रेनिंग के दौरान उंघते रहे अधिकांश पुलिस वाले

BAREILLY: ट्यूजडे को सिटी का आईएमए हॉल अधिकारियों और पुलिसकर्मियों से खचाखच भरा था। मौका था जोन लेवल के ट्रेनिंग प्रोग्राम का। इसका मकसद तो पुलिसकर्मियों को महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध के प्रति सेंसेटाइज करना था, लेकिन प्रोग्राम जितने सीरियस ईश्यू पर था, पुलिसकर्मियों ने उतने ही नॉन सीरियस ढंग से ट्रीट किया। ज्यादातर पुलिसकर्मी सिर्फ खानापूर्ति करते दिखे। एक तरफ ट्रेनर फैक्ट्स बताकर उन्हें क्राइम अगेंस्ट वीमेन के प्रति जगाने की कोशिश कर रहे थे, दूसरी तरफ अधिकांश नींद के मजे ले रहे थे। सवाल यह कि जब अपने अफसरों की बात पुलिसवाले गंभीरता ने नहीं सुनते तो महिलाओं के प्रति सेंसटाइज कैसे होंगे। माफ कीजिएगा, आईजी साहब लेकिन ऐसी किताबी और उंघने वाली ट्रेनिंग से महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर लगाम नहीं कसी जा सकेगी। वैसे तो आप भी इन हकीकतों से वाकिफ हीं होंगे लेकिन चलिए हम भी फिर आईना दिखाते हैं।

पॉर्नोग्राफी से बढ़ता है क्राइम

चार घंटे की ट्रेनिंग के दौरान एसपी पीलीभीत सोनिया सिंह ने साइबर क्राइम स्पेशली वीमेन एंड चाइल्ड एब्यूज के बारे में बताया। उन्होंने बताया किस तरह से महिलाएं इंटरनेट के जरिए स्टॉकिंग व ब्लैकमेलिंग की शिकार हो रही हैं। वहीं बच्चे भी पोर्नोग्राफी के जाल में फंस कर बर्बाद हो रहे हैं। जिन पुलिसकर्मियों को लगा कि ये उनके मतलब की बात है उन्होंने इसे अपनी डायरी में नोट डॉउन कर लिया, लेकिन अधिकांश जैसे प्रवचन सुनने की मुद्रा में थे।

क्राइम की एबीसीडी भी नहीं पता!

सोनिया सिंह प्रोजेक्टर के जरिए फैक्ट्स समझा रहीं थी तब हॉल में बैठे आधे से ज्यादा लोगों की नजर की पहुंच से दूर था। महिलाओं व बच्चों के लिए बने कानून में संशोधन के बारे मे पूछा तो किसी का भी हाथ नहीं उठा। साफ था कि पुलिसकर्मी क्राइम अगेंस्ट वीमेन एंड चाइल्ड के लिए कितने सीरियस हैं।

सुर्कुलर में दावा, हकीकत से दूर

एसपी क्राइम ने महिलाओं और जुड़े अपराधों को लेकर गवर्नमेंट का सर्कुलर पढ़ा। सर्कुलर में दावे तो बहुत थे लेकिन जमीनी हकीकत इससे इतर है.आलम यह कि बरेली ज्यादातर थाना में महिला पुलिस अधिकारी ही नहीं हैं। थानों को महिला थाना पर ही निर्भर रहना होता है। महिला जब भी शिकायत लेकर पहुंचती है तो पुलिस उसे टरकाने में लग जाती है। क्म्क् के बयानों की रिकॉर्डिग ही नहीं की जाती है। ना तो किसी एक्सपर्ट और ना ही कोई एडवोकेट थाना में बुलाया जाता है। मेडिकल कराने में तो कई दिन बीत जाते हैं। बच्चों के मामले में पुलिसकर्मी वर्दी में ही पूछताछ करते हैं।

लेकिन पैरवी हो भी तो कैसे

ट्रेनिंग में महिलाओं के केसेस को कैसे हैंडिल किया जाए इस पर भी चर्चा हुई। एसपीओ ने बताया कि किसी भी विक्टिम महिला को तभी न्याय मिल सकता है जब उसके केस को अच्छे से कोर्ट में प्रेजेंट किया जा सके। लेकिन सच्चाई चौंकाने वाली है। डिस्ट्रिक्ट में म्0 परसेंट अभियोजन अधिकारियों की कमी है। एक कोर्ट के लिए एक अभियोजन अधिकारी होना चाहिए, लेकिन बरेली में एक अभियोजन अधिकारी पांच-पांच कोर्ट को देखता है। इससे साफ है कि सिटी में मि1हलाओं के केसेस की पैरवी कैसे होती है।

और अपनों की सुस्ती से डीआईजी रहे परेशान

ट्रेनिंग प्रोग्राम में चीफ गेस्ट आईजी जकी अहमद, डीआईजी आरकेएस राठौर, एसएसपी बरेली जे रविंद्र गौड के साथ डिस्ट्रिक्ट व जोन के कई पुलिस अधिकारी मौजूद रहे। आईजी ने बताया कि महिलाओं के प्रति कैसे क्राइम ग्राफ बढ़ रहा है। वहीं उन्होंने रेंज में क्म् फर्जी केस की बात भी बताई। इसके अलावा डीआईजी ने पुलिसकर्मियों को सभी महिलाओं को अपनी बहू-बेटी की तरह समझकर उनकी हेल्प करने के लिए कहा। हालांकि इस दौरान हॉल में मौजूद पुलिस वाले उंघते रहे, डीआईजी ने खुद कहा कि मैंने देखा ट्रेनिंग के दौरान कइर् लोग सो रहे थे।

पर ऐसे बन सकती है बात

-पुलिस को सेंसटाइज करने के लिए ट्रेनिंग हो, लेकिन ये ट्रेनिंग बड़ी वारदात के बाद सिर्फ औपचारिकता के लिए ना किए जाएं।

-समय-समय पर डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ सर्किल व थाना लेवल पर ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाएं, जिससे सभी पुलिसकर्मी सेंसटाइज हो सकें

-ट्रेनिंग प्रोग्राम महज एक लेक्चर ना रहे, बल्कि पुलिसकर्मियों को ऐसे केसेस की बारीकियों को बताना चाहिए

-थाना में आने वाली किसी भी महिला की तुरंत सुनवाई हो और एफआईआर लिखी जाए

-महिलाओं के लिए थानों में अलग से हेल्प डेस्क हो, जिसमें महिला अधिकारी हर समय मौजूद रहे,

-ग‌र्ल्स व महिलाओं के साथ उनका बिहेवियर अच्छा होना चाहिए और समझें कि जिस महिला के साथ घटना हुई है वो उनकी बहू-बेटी के साथ भी हो सकती है

-महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर लापरवाही पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए

-महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या बढ़ायी जाए

-छोटे से छोटे केस को भी गंभीरता से लेना चाहिए

-क्म्क् व क्म्ब् के बयान और मेडिकल के लिए सिंगल विंडो सिस्टम होना चाहिए