रंगे हाथ दबोचे
लगातार कम हो रहे जंगल से जंगली जानवरों को सबसे ज्यादा प्रॉब्लम हो रही है। लोग अपने स्वार्थ के लिए वाइल्ड लाइफ को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वाइल्ड एनिमल के आवास को तोडऩे के साथ ही कई लोग उन्हें पकड़ कर उनकी तस्करी भी कर रहे हैं। पिछले साल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने ऐसे कई लोगों को रंगे हाथ दबोच लिया।
तस्करी में वृद्धि
बरेली के आसपास जिलों में वाइल्ड एनिमल्स की संख्या अच्छी खासी है। इसमें सबसे ज्यादा पीलीभीत में वाइल्ड एनिमल्स रहते हैं। इसलिए इन क्षेत्रों से जानवरों की तस्करी करना शिकारियों के लिए मुश्किल काम नहीं है।
यही वजह है कि यहां कुछ ज्यादा तस्करों की धड़-पकड़ होती है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की जागरूकता के कारण पिछले साल भी यहां से अच्छी-खासी संख्या में वाइल्ड एनिमल्स को मुक्त कराया गया था। तस्करों को भी रंगे हाथ दबोचा गया था।
Animals भी छुड़ाए
2011 में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की टीम ने बरेली से 442 वाइल्ड एनिमल्स को शिकारियों के चंगुल से मुक्त कराया था। इसमें 220 तोते, 8 तीतर, 5 बिच्छू, 1 उल्लू और 208 कछुओं को छुड़ाया गया था। सबसे बड़ी बात यह कि शिकारियों को रंगे हाथ दबोचा गया था। अगर उन्हें छुड़ाने में कुछ समय और लग जाता तो कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो जाती।
90 हजार रुपए जुर्माना वसूला
इन वाइल्ड एनिमल्स को छुड़ाने के साथ फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने शिकारियों से अच्छा-खासा जुर्माना भी वसूला, जिन्होंने जुर्माना जमा नहीं किए उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। जानकारी के मुताबिक पिछले साल इस तरह के छह केसेज सामने आए। इसमें से तीन से 90 हजार रुपए का जुर्माना वसूला गया और तीन मामले अभी भी कोर्ट में चल रहे हैं।
दवा के नाम पर बिच्छू का प्रयोग
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने जिन लोगों से बिच्छू को आजाद कराया था, वे दवा के बहाने इसकी तस्करी करते थे। वहीं तोते को पिंजरे में बंद कर उसे बेच देते थे। उल्लू को लोग तांत्रिक विद्या में यूज करते थे। जानकारों की मानें तो उल्लू की संख्या हर साल लगातार कम होती जा रही है और बरेली में यह लुप्त होने की कगार पर है।हमने 2011 में कुल 442 वाइल्ड एनिमल्स को आजाद कराया। इसके साथ ही तस्कारों से 90 हजार रुपए की वसूली भी की है.
-धर्म सिंह,
डीएफओ, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट