बरेली(ब्यूरो)। ट्रैफिक पुलिस की तरफ से आए दिन ट्रैफिक नियमों को लेकर अभियान चलाए जाते हैं। प्रत्येक माह रोड सेफ्टी वीक चलाया जाता है। शहर में जगह-जगह जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं। इसके बाद भी लोगों में जागरूकता देखने को नहीं मिल रही है। वर्तमान में भी रोड सेफ्टी वीक चलाया जा रहा है। लेकिन, इसका प्रभाव वास्तविकता में कहीं नजर नहीं आया। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने रियलिटी चैक किया तो सारी हकीकत सामने आई। सबसे बड़ी बात यह कि कुछ लोग तो ट्रैफिक नियमों के बारे में जानते भी नहीं हैं। वहीं अगर बात करें जिम्मेदारों की तो वे भी लापरवाह नजर आ रहे हैं। रोड सेफ्टी वीक में किसी चौराहे पर पुलिस मौजूद नहीं मिली तो कहीं पर पुलिसकर्मी मोबाइल में मस्त दिखाई दिए।
दिखावे का सडक़ सुरक्षा सप्ताह
सडक़ सुरक्षा के नाम पर प्रत्येक माह दिखावा ही होता मालूम होता है। हर माह इसके आयोजन्र के बाद भी लोग नियमों को नहीं मानतें। वहीं जिम्मेदारों की लापरवाही तो इतनी बढ़ गई है कि रूल्स तोड़ते लोगों को सामने देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे में हादसे होने से कोई नहीं रोक सकता। यह समस्या सबसे ज्यादा शहर के मेन चौराहों पर देखने को मिलती है, जहां पुलिस भी मूकदर्शक नजर आती है।
इन्हें नहीं पता ट्रैफिक रूल
ट्रैफिक जागरूकता में ज्यादातर लोगों को रुल्स के लिए अवेयर किया जाता है। स्कूलों में सीनियर अधिकारी जाकर स्टूडेंट्स को जागरूक करते हैं। उन्हें ट्रैफिक नियमों के बारे में बताते हैं। इसके बाद भी उनसे पूछने के बाद उन्हें नहीं पता होता कि किस सिंग्नल का साइन कौन सा होता है। जबकि प्रत्येक माह में रोड सेफ्टी वीक चलाया जाता है। साथ ही प्रत्येक वर्ष के अंत में सडक़ सुरक्षा माह भी चलाया जाता है। इसके बाद भी लोगों में जगरूकता की कमी देखने को मिल रही है। जिम्मेदार भी लापरवाह नजर आ रहे हैंङ।
जिम्मेदारों की लापरवाही
पुलिसकर्मियों का चौराहों पर खड़े होकर मोबाइल चलाना तो आम हो गया है। वे मोबाइल में बिजी रहते हैं, सामने से लोग रूल्स ब्रैक करते आसानी से निपकल जाते हैं। इस पर कोई उन्हें टोकने वाला भी नहीं होतौ। उनकी इस हरकत से लोगों के अंदर से ट्रैफिक पुलिस का डर खत्म होने लगा है।
सीन-1
चौकी चौराहा
समय: 2:03
यह शहर के मेन चौराहों में से एक है। यहां पर कंस्टेवल तो मौजूद थे। लेकिन, मोबाइल में मस्त होने की वजह से आने-जाने वालों को नहीं देख पा रहे थे। ग्रीन सिग्नल न होने पर भी लोग मनमानी तरह से आ जा रहे थे। ऐसे में अगर कोई हादसा होता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, इसको लेकर जागरूक नागरिकों में प्रश्न बना रहता है।
सीन-2
गांधी उद्यान
समय : 2: 05
पार्क के सामने चौराहा होने की वजह से यहां पर बहुत ही व्यस्तता रहती है। जाम के हालात भी आए दिन बनते रहते हैंं। ऐसे मेंं चौराहे पर पुलिस का न होना हादसों को दावत देता है। जब जिम्मेदार ही अपनी जिम्मेदारी से भागते नजर आएगें तो आम जनता किस पर भरोसा करेगी।
सीन-3
समय : 4 : 22
सैटेलाइट
यह शहर का बहुत खास चौराहा है। यहां पर बस स्टैंड होने की वजह से अलग-अलग जगह से लोग आते हैं। इसलिए यहां पर जाम की स्थिति बनना कोई बड़ी बात भी नहीं है। यहां पर पुलिस चैक पोस्ट भी बना हुआ है। इसके बाद भी चौराहे पर पुलिस नहीं थी। अंदर कमरे में लोग बैठे हुए थे।
सीन-4
समय : 4:25
ईसाइयों की पुलिया
रोड सेफ्टी वीक में अन्य चौराहों की तरह ईसाइयों की पुलिया के चौराहा पर भी वह ही दृश्य देखने को मिला। यहां से भी पुलिस नदारद नजर आई। इतने बिजी चौराहे पर पुलिस की लापरवाही कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है।
बरेलियंस की बात
चौराहों पर कोशिश करते हैं। कि ट्रैफिक रुल को फॉलो करें। ज्यादातर करते भी हैं। लेकिन कभी ऐसा होता है कि जो नियम नहीं पता होते हैं। उन्हें फॉलो नहीं कर पाते हैं। ऐसे में चलान भी कट जाता है।
सूरज
कुछ ट्रैफिक सिंबल्स के बारे में जानकरी है। बाकी जैसा चौराहों पर संकेत होते हैं, उनके हिसाब से गाड़ी चलाते हैं। चलान भी कट जाता है। इसकी मेन वजह यह ही है कि पूरी जानकारी नहीं है।
मोहित
कई बार ऐसा हुआ है कि रेड लाइट पर स्कूटी निकलने के बाद भी पुलिस का कोई रिएक्शन देखने को नहीं मिला तो यह लगता है कि यह बहुत आसान है.ऐसे में जल्दी होती है तो वेट न करके ऐसे ही निकल जाते हैं।
कल्पना
सडक़ सुरक्षा सप्ताह में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसे प्रत्येक माह में चलाया जाता है ताकि लोग ट्रैफिक नियमों को न तोड़ें, उन्हें हमेशा फॉलो करें। कोई यदि रूल्स तोड़ता है तो उस पर कार्रवाई भी की जाती है।
राममोहन सिंह, एसपी ट्रैफिक