बरेली(ब्यूरो)। सुख-संपन्नता और पति की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला सुहागिन महिलाओं का वट सावित्री व्रत 30 मई सोमवार को रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत की पूजा जेष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या में की जाती है और इसी अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाती है। इस बार की अमावस्या सोमवार को होने से विशेष फलदायी होगी। सुहागिन महिलाएं इस दिन सोलह शृंगार कर अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र के लिए वट यानि बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
दो परंपराएं हैं प्रचलित
वट सावित्री व्रत के पालन में दो परम्पराएं (मत ) प्रचलित हैं। स्कन्द और भविष्ययोत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा एवं निर्णयामृतदि के अनुसार ज्येष्ठ अमावस को किया जाता है। दोनों परम्पराओं में यह पूर्व (चतुर्दशी ) विद्दा अमावस या पूर्णिमा के दिन किया जाता है शास्त्र के अनुसार ज्येष्ठ अमावस चतुर्दशी विद्दा ही ग्रहण करने के निर्देश है। चतुर्दशी तिथि का त्रिमुहूर्त-व्यपिनी तथा अमावस का सूर्यास्त से पहले त्रिमुहूर्त व्यापिनी होना आवश्यक है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है कि शास्त्र वचनानुसार वट सावित्री व्रत 29 मई, रविवार को होगी क्योंकि अमावस इस दिन सूर्यास्त से पहले त्रिमुहूर्त व्यापिनी है। परन्तु लोकचार के अनुसार इस व्रत को 30 मई को भी किया जा सकता है। पंचांग के अनुसार 29 मई, रविवार को चतुर्दशी तिथि अपराö 2:56 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या आरम्भ होगी जोकि 30 मई को सायं 5 बजे तक रहेगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या अथवा पूर्णिमा तक करने का विधान है।
वट सावित्री व्रत विधान
यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, इस व्रत को करने का विधान त्रयोदशी से पूर्णिमा अथवा अमावस्या तक है। यह व्रत रखने वाली स्त्रियों का सुहाग अचल रहता है। इस व्रत में प्रात: काल स्नान के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापित करके, दूसरी टोकरी में सत्यवान व सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके वट वृक्ष के नीचे रखकर पूजा करनी चाहिए। इसके बाद बड़ की जड़ में पानी देना चाहिए। जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ ना, गुड़, फूल तथा धूप-दीप से वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींच कर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। भीगे हुए चनों का वायना निकालकर, उस पर रुपये रखकर सास के चरण स्पर्श कर देना चाहिए। वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिंदूर तथा कुमकुम से सुवासिनी स्त्री के पूजन का विधान है। व्रत के बाद फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिए।
वट वृक्ष का महत्व
इस संसार में अनेक प्रकार के वृक्ष हैं, उनमें से बरगद के वृक्ष यानि वट वृक्ष का विशेष महत्व है। वट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो का निवास होता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकूल फलों की प्राप्ति होती है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर दीर्घायु की कामना करती हैं।
सावित्री का महत्व
सावित्री के पति सत्यवान वेद के ज्ञाता थे और अल्पायु भी। नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री घोर तपस्या कर यमराज के द्वार से भी अपने पति को वापस लेकर आ गई। अत: इस दिन यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है।
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