- अनपढ़ होने के बावजूद हस्तशिल्पियों को है कई भाषाओं और संस्कृतियों का ज्ञान
- कारोबार करने और भाषाओं की जरुरत को देखते हुए पास रखते हैं स्थानीय कामगार
BAREILLY: हाथों की सृजनात्मकता से माटी को खूबसूरत बनाने की कला, आंखों में कुछ कर गुजरने का सपना, हुनर को बेचने के लिए घाट घाट का पानी पीने का सिलसिलाजी हां हम बात कर रहे हैं हस्तशिल्पियों की। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद विरासत में मिले हुनर से पैतृक वजूद और परिवार को बचाए हुए हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस यानि फिओ की ओर से देश भर के हुनर को एक मंच प्रदान किया गया तो भारत की संपूर्ण कला, संस्कृति और भाषा एक छत के नीचे आ गई। ऐसे में शहर के अर्बन हाट में सजा गांधी शिल्प बेहतरीन सामग्री के कलेक्शन के साथ ही एकता की मिसाल बन रहा है। भाषा और संस्कृति में अनेकता के बावजूद देश के कोने कोने में पहुंचकर क्राफ्ट पर्सन कैसे अपना व्यवसाय करते हैं, आइए हम आपको बताते हैं।
एक से अधिक भाषाओं का है ज्ञान
ज्यादातर क्राफ्टपर्सन ने बताया कि हैंडीक्राफ्ट उनका फैमिली बिजनेस है। ऐसे में माता-पिता समेत परिवार के अन्य सदस्यों से कई भाषाओं का ज्ञान बचपन में ही मिलने लगता है। उत्तर भारत के सभी राज्यों में हिन्दी बोली और समझी जाती है। वहीं, पूर्वी-पश्चिमी और दक्षिण में हिन्दी न के बराबर बोलचाल में है। ऐसे में कई बार स्टॉल लगाने की वजह से धीरे धीरे वहां की भाषाओं का भी ज्ञान हो गया है। ऐसे में ज्यादातर हस्तशिल्पीे चार से अधिक भाषाओं क ो बोल और समझ सकते हैं। वहीं, कुछ ने बताया कि अंग्रेजी सीखने के लिए क्लासेज भी ज्वॉइन की।
खाने का रखते हैं सेपरेट अरेंजमेंट
दक्षिण भारत के राज्यों में सफर करने वाले और दक्षिण भारत से उत्तर की ओर सफर करने वाले हस्तशिल्पी अपने साथ राशन सामग्री लेकर सफर करते हैं। ज्यादातर जगहों पर भाषा का हेर फेर होने से भोजन का नाम न समझ पाना भी एक बड़ी मुसीबत बन जाती है। ज्यादातर हस्तशिल्पी भाषा का ज्ञान न होने पर स्थानीय आदमियों की मदद लेते हैं। ऐसे में कामगारों को साथ रखने से भाषा का हेरफेर, काउंटर पर कस्टमर्स को डील करने और भोजन आदि की समस्याएं भी खत्म हो जाती हैं।
हिन्दी है सबसे हिट
हिन्दी राष्ट्र भाषा होने से देश के ज्यादातर राज्यों में लोग टूटी फूटी हिन्दी बोल अथवा समझ लेते हैं। स्थानीय ग्रामीण लोग राज्य भाषा का ही प्रयोग करते हैं, जबकि लिटरेट पर्सन हिन्दी को बखूबी बोल और समझ भी लेते हैं। उत्तर भारतीयों को अन्य राज्यों में जाने के लिए हिन्दी का ज्ञान और थोड़ी अंग्रेजी बोलने से काम चल जाता है। जबकि दक्षिण भारतीय हस्तशिल्पियों को बकायदा हिन्दी बोलने के लिए क्लास अटेंड करनी मजबूरी हो जाती है। यही वजह है कि दक्षिण भारत के हस्तशिल्पी उत्तर भारत की ओर कम ही रुख करते हैं, जबकि उत्तर भारतीय हर जगह छाए हुए हैं।
फिओ की ओर से मिलती है सुविधा
देश के विभिन्न राज्यों से हस्तशिल्प उद्योग और छोटे कामगारों को प्लेटफार्म देने वाली संस्था फिओ की ओर से भी कामगारों को सहायता दी जाती है। फिओ हस्तशिल्पियों को गैर भाषायी इलाकों में बुलाने के बाद उनकी डिमांड पर दुभाषिया भी अवलेबल कराया जाता है। इसके अलावा उन्हें तत्कालीन त्योहारों समेत खान पान की जानकारी भी विभाग की ओर से दी जाती है। हैंडीक्राफ्ट प्रमोशन ऑफिसर गोपेश मौर्य ने बताया कि भाषा का विभेद होने से बिक्री सही से नहीं हो पाती तो दूसरी ओर त्योहारी सीजन का ज्ञान होना भी इन कामगारों के लिए जरूरी होता है। इसके लिए विभाग की ओर से उनकी डिमांड पर स्थानीय दुभाषिया अवलेबल करा दिया जाता है।
देश के ज्यादातर राज्यों में स्टॉल लगा चुके हैं। अनपढ़ हूं पर देश की सभी भाषाओं की समझ है और पांच भाषाएं बोल लेता हूं।
रामसहाय, टेरिकोटा शॉपओनर, उत्तर प्रदेश
ज्यादातर राज्यों में इंग्लिश लैंग्वेज यूज होने से आसानी होती है। इंग्लिश बोलने और समझने के लिए क्लास अटेंड करनी पड़ी थी।
अपोंग, ड्राई फ्लॉवर्स शॉपओनर, नागालैंड
हस्तशिल्प बिजनेस के जरिए मुझे अन्य राज्यों की भाषा और संस्कृति को जानने का मौका मिला है। इसके लिए फिओ हमें दुभाषिए अवलेबल कराते हैं।
दिनेश कुमार अग्रवाल, एप्लीक वर्क शॉपओनर, उड़ीसा
हाईस्कूल तक पढ़ाई की है। लेकिन बिजनेस की जरुरत को देखते हुए बांग्ला समेत हिन्दी, पंजाबी, तमिल, तेलगू और राजस्थानी भाषा पर अच्छी पकड़ है।
निताई चरण, जूटवर्क शॉपओनर, कोलकाता
बचपन में ही घर से इंग्लिश सीखी। अन्य राज्यों में जाने के बाद स्थानीय वर्कर रख लेते हैं। इससे भाषा और कल्चर की नॉलेज मिल जाती है।
सुमेर सिंह, राजस्थानी फूड कार्नर, राजस्थान