- अनट्रेंड ड्राइवर दौड़ा रहे पुलिस की गाडि़यां
- कुल वाहनों की संख्या के आधे ही हैं ट्रेंड ड्राइवर
- क्रिमिनल्स उठाते हैं इसका फायदा
BAREILLY : पुलिस की सेवा में लगी गाडि़यां भी बदतर स्थिति में पहुंच गई हैं। इतना ही नहीं वाहन चलाने के लिए भी पुलिस के पास ट्रेंड ड्राइवरों की कमी है। शायद यही वजह है कि जब बदमाशों को पीछा कर उसे गिरफ्तार करने की बारी आती है तो पुलिस के पास हाथ मलने के सिवाय कुछ नहीं बचता है। पुलिस के आंकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं।
सिर्फ भ्ब् ट्रेंड ड्राइवर
पुलिस रिकार्ड के अनुसार बरेली डिस्ट्रिक्ट में छोटे-बड़े मिलाकर कुल क्08 वाहन हैं। इसमें हेवी व्हीकल 9, मीडियम व्हीकल क्0 और बाकी जीप हैं। कुछ वाहन का उपयोग पुलिस लाइन में हो रहा है। बाकी गाडि़यां पुलिस कंट्रोल रूम, थानों व अधिकारियों के पास चल रही हैं। वैसे तो वाहन को चलाने के लिए क्ख्-क्ख् घंटे की शिफ्ट के हिसाब से ख्क्म् ड्राइवर होने चाहिए। अगर ख्ब् घंटे के हिसाब से भी देखें तो कम से कम क्08 ड्राइवर तो होने ही चाहिए, लेकिन बरेली में क्08 तो बहुत दूर की बात है यहां तो सिर्फ आधे ही यानी भ्ब् ही ट्रेंड ड्राइवर हैं।
बदमाशों को पीछा करने में पुलिस पस्त
पुलिस के पास ट्रेंड ड्राइवर न होने का फायदा क्रिमिनल्स उठाते हैं। क्योंकि क्रिमिनल ड्राइविंग में काफी एक्स्पर्ट होते हैं और टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर भी गाड़ी सरपट दौड़ा लेते है, लेकिन जब बदमाशों को पीछा कर उसे पकड़ने की बारी आती है तो अक्सर पुलिस फिसिड्डी साबित होती है। क्योंकि उसके पास ट्रेंड ड्राइवर की कमी है। यही नहीं अगर गाड़ी में छोटी-मोटी खराबी आ जाए तो उसे ठीक करने में पुलिस के पसीने छूट जाते हैं। इसके अलावा ट्रेंड ड्राइवर न होने से एक्सीडेंट होने का भी खतरा बना रहता है। क्योंकि बदमाशों का पीछा करने के दौरान गाड़ी तेज चलानी होती है।
सिपाहियों से चलाया जाता है काम
ट्रेंड ड्राइवर ना होने के चलते गाडि़यों को चलाने के लिए सिपाहियों की हेल्प ली जाती है। जिस भी सिपाही को गाड़ी चलानी आती है और उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस है तो उसी से गाड़ी चलवाई जाती है, लेकिन कई बार सिपाही को भी अगर बाहर जाना पड़ जाता है तो गाड़ी खड़ी ही रह जाती है। ऐसे नहीं है कि इसकी शिकायत पुलिस अधिकारियों के पास नहीं पहुंचती हैं, लेकिन इस मसले पर वो भी चुप्पी साध लेते हैं। इसके लिए ड्राइवर न होने का हवाला दिया जाता है। कई बार थानों में भी ड्राइवर न होने पर एसएचओ या किसी और को ही गाड़ी ही चलानी पड़ती है।
सीतापुर में होती है ट्रेनिंग
पुलिस में गाडि़यां चलाने के लिए बाकायदा ड्राइवरों की ट्रेनिंग होती है। जब सिपाही पुलिस में भर्ती हो जाता है तो उनसे ड्राइवर बनने के लिए आवेदन मांगा जाता है। ड्राइविंग करने के इच्छुक सिपाहियों को सीतापुर पुलिस मोटर ट्रेनिंग सेंटर में म् महीने की ट्रेनिंग कराई जाती है। इस दौरान उन्हें ड्राइविंग के साथ-साथ खराब होने पर गाड़ी ठीक करने का गुर भ सिखाया जाता है।
वाहन की देखरेख भी नहीं होती
एक तो वैसे ही ड्राइवरों की कमी के चलते वाहन स्पीड नहीं पकड़ते हैं तो वहीं दूसरी ओर सही देखरेख न होने के चलते गाडि़यां भी जल्द खराब हो जाती हैं। थानों में चलने वाली गाडि़यां भी ज्यादातर बाहर ही खड़ी रहती हैं। पुलिस लाइन में भी गाडि़यां रखने का कोई खास इंतजाम नहीं है। यहां की सभी गैराज पूरी तरह से कंडम हो चुकी हैं। एक टीन में कुछ वीआईपी कारें ही खड़ी की जाती हैं। धूप व बरसात में खड़ी होने के चलते और गाडि़यां जल्दी खराब हो जाती हैं। पुलिस का कहना है कि गैराज बनने का प्रपोजल गया है।