- निकोटीन शौक को तब्दील कर देता है नशे में
-एक फूंक में चार हजार विषैले केमिकल्स शरीर में कर जाते हैं प्रवेश
हरवीर सिंह - कैंसर पेशेंट
31 साल के हरवीर सिंह बदायूं के जिनहेरा गांव के रहने वाले हैं। वर्ष 2011 में पिता के न रहने पर हरवीर को तंबाकू और शराब की बुरी लत लग गई। परिवार के मना करने के बावजूद हरवीर बहुत ज्यादा तंबाकू- गुटखा खाने का आदी हो गया। तंबाकू की लत से कामकाज छोड़ दिया और शादी भी नहीं की। दिसंबर 2014 में मुंह में छाले होने पर इलाज कराया पर फायदा नहीं हुआ। मुरादाबाद जाकर जांच कराई तो मुंह का कैंसर डाइग्नोज हुआ। इलाज के लिए एम्स गए तो 6 महीने बाद की तारीख मिली। ऐसे में बरेली आकर इलाज शुरू कराया। मुंह में पट्टी लगने से हरवीर ज्यादा बोल नहीं पाता, लेकिन इशारों से अपनी तंबाकू खाने की गलती का अफसोस जताने की पूरी कोशिश करता है। भाई के इशारों को शब्द देते हुए बहन ने कहा कि हरवीर ने पिछले एक साल से तंबाकू खाना छोड़ दिया है। साथ ही दूसरों को भी तंबाकू न खाने की नसीहत देते हैं। हरवीर को हर पल अपनी गलती महसूस होती है। खैनी तंबाकू का शौक किस तरह उसकी जिंदगी पर भारी पड़ जाएगा, यह दर्द उसकी आंखों से निकलते आंसू खुद बयां कर देते हैं।
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अकील अहमद - कैंसर पेशेंट
35 साल के अकील अहमद मुरादाबाद के गोपीवाला गांव के रहने वाले हैं। पिछले 8-10 साल से लगातार तंबाकू और बीड़ी पीने की आदत थी। रोजी रोटी के लिए सऊदी अरब में नौकरी करने की तैयारी भी पूरी हो गई। 6 महीने पहले मुंह के एक छोटे से छाले ने अकील की जिंदगी में अंधेरा ला दिया। यह छोटा-सा छाला दरअसल जांच में कैंसर निकला। कैंसर के चलते अकील का मुंह बंद होने लगा। न ठीक से बोल पाते हैं और न ही खा-पी सकते हैं। मुश्किल से बताया कि मुंह में आग लगने जैसी दिक्कत भी होती है। जवान बेटे के कैंसर की चपेट में आने से बूढ़े पिता जमीर अहमद भी टूट से गए, लेकिन हिम्मत न हारी और जब दिल्ली जाकर एम्स में इलाज मिलने में देरी हुई, तो बरेली ले आए। कम उम्र में महज कुछ साल की बीड़ी के कश से कैंसर की चपेट में आए अकील अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को फौरन बीड़ी तंबाकू छोड़ने को कहते हैं। पिता जमीर अहमद भी 16 साल की उम्र से बीड़ी पीते हैं। अकील अब पिता को भी हज पर जाने से पहले यह जानलेवा शौक हमेशा के लिए छोड़ देने की जिद कर रहे।