ह्रदेश पाण्डेय (बरेली)। रक्षाबंधन के दिन सेंट्रल जेल में बड़ी दूर-दूर से बहनें पहुंचीं। आखों में उम्मीद और हाथों में राखी लिए यह बहनें गर्मी में लाइन में लगी भाई से मिलने का इंतजार कर रही थीं। विडंबना यह है कि महज 10-15 मिनट की इस स्नेहिल मुलाकात के लिए यह बहनें आठ से दस घंटे तक का सफर करके यहां तक पहुंची थीं।

राखी, मिठाई संग पकवान लेकर पहुंचीं बहनें
रक्षाबंधन पर्व पर सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने की तमन्ना रखती हैं। मैं भी सीतापुर से यहां अपने भाई को राखी बांधने आई हूं। भाई के लिए उसकी पसंद के पकवान भी बनाकर लाई हूं।
मोनू, सीतापुर

मुझे तो रक्षाबंधन पर्व का विशेष इंतजार रहता है। इस पर्व पर मैं अपने भाई से मिलने का मौका किसी भी हाल में नहीं छोड़ती हूं। यही वजह है कि मैं लखनऊ से यहां आई हूं। भाई को राखी बांधकर उसका मुंह तो मीठा करूंगी ही, उसे अपने हाथों से बना खाना भी खिलाऊंगी।
रेखा मिश्रा, लखनऊ

भाई कहीं भी हो, कैसा भी हो, रक्षाबंधन पर्व पर बहन उसे याद करती ही है। इस पर्व पर जेल में उमड़ी बहनों की भीड़ से कोई भी यह समझ सकता है। मैं आज भाई को राखी बांधने के लिए शाहजहांपुर से यहां आई हूं। भाई के लिए उसकी पसंद की चीजें भी लेकर आई हूं।
निर्मला कटियार, शाहजहांपुर

रक्षाबंधन पर्व पर बस यही चाहत रहती है कि वह किसी भी तरह अपने भाई के पास पहुंंच जाए। आज भले ही बहुत गर्मी है, यहां आई सभी बहनें भाई से मिलने की खुशी में इस मुसीबत को भी खुशी-खुशी सहन कर रही हैं। इस दिन का यहां भाई को भी बेसब्री से इंतजार रहता है। उसे पता होता है कि बहन आएगी तो उसके लिए क्या-क्या लाएगी।
भारती, मुरादाबाद

इस दिन यहां तक पहुंचने में मुसीबत तो बहुत उठानी पड़ती है, पर दिल में भाई से मिलने की खुशी जो रहती है। भाई को भी यहां इंतजार रहता है कि बहन आएगी तो उसके लिए क्या-क्या लाएगी।
पिंकी, बिजनौर