बरेली (ब्यूरो )। कमजोर परवरिश और पैरेंट कपल के वर्किंग होने को कारण बता रहे हैं सोशियालॉजिस्ट और साइकियाट्रिस्ट

बरेली पुलिस ने इस फाइनेंसियल इयर के नौ महीनो में 152 बाल अपराधियों को बाल सुधार गृह भेजा है। इनमें तमाम ऐसे हैं जिनके खिलाफ मर्डर, रेप और पास्को एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस का कहना है कि पिछले साल की तुलना में बाल अपराध का ग्राफ नीचे आया है। यह उन्हें सुधार के लिए किये जा रहे प्रयासों का नतीजा है। लेकिन, इससे समाज शास्त्री और मनोचिकित्सक सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि यह संख्या भी बड़ी है। निश्चित तौर पर इसमें कुछ ऐसे बच्चे भी होंगे जो पहले नशे में गिरफ्त में आये होंगे और इसके बाद उन्होंने दूसरे अपराध की तरफ कदम बढ़ाया होगा। इस पर घर से ही काम करने की जरूरत है। समाज शास्त्रियों का कहना है कि यह कमजोर पैरेंटिंग का भी नतीजा हो सकता है। इसे भी प्वाइंट आउट किया जाना चाहिए। वैसे पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही है कि इस साल बाल अपराध कम हुआ है।

इंवायरमेंट का इंपैक्ट
समाज शास्त्री का कहना है कि, बच्चों को जिस तरह का वातारण मिलता है, वह उसी के हिसाब से ढल जाते हैं। बच्चों के अपराध के रास्ते पर चलने का एक कारण रेजीडेंसियल एरिया भी है। जहां लो इनकम ग्रुप, नशा करने वाले या अपराधिक नेचर के लोग रहते हैं, वहां रहने वाला बच्चा स्वभाविक रूप से ही अपराध की तरफ अग्रसर होने लगता है। आगे चलकर वह अपराधिक श्रेणी में आ जाता है।

इंटरनेट पर उपलब्ध कंटेंट का भी असर
एक्सपट्र्स बताते हैं कि आज के दौर में इंटरनेट का प्रभाव बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर टीनएज के बच्चों की दमदार उपस्थिति हो रही है। बच्चे अपने सर्किल के साथियों से मिलते हैं कि तो इंटरनेट के कंटेंट और सोशल मीडिया पर शेयर होने वाले डाटा पर ज्यादा बात करते हैं। आनलाइन गेम्स में वलगरिटी ज्यादा होती है। इसके जरिए वह उस कंटेंट भी आसानी से एसेस कर लेते हैं जिसे देखना उम्र के चलते उनके लिए प्रतिबंधित होता है। वल्गर वीडियो बच्चों को अपनी तरफ ज्यादा अट्रैक्ट करती है। उसे देखते हुए खुद को हीरो की तरह प्रजेंट करने की कोशिश करते हैं। इससे उनमें अपराध की दुनिया में कदम रखने की नींव पड़ती है। फ्रेंड सर्किल से सपोर्ट मिल जाने पर वह ऐसे रास्ते पर चल पड़ते हैं जो उन्हें अपनो से दूर करके जेल का रास्ता दिखा देता है। एक्सपट्र्स इसे भी मॉनिटर करने की बात करते हैं।

वेस्टर्न कल्चर का भी प्रभाव
सोशियोलॉजिस्ट का कहना है कि पहले ज्वाइंट फैमिली हुआ करती थी तो बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने वाले लोग होते थे। अब फैमिली न्यूक्लीयर होने लगी है। इससे बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करके गलत सही बताने वाले कम लोग होते हैं। यही वेस्टर्न कल्चर है और इसका इंपैक्ट हमारे बच्चों पर पड़ रहा है। इसकी वजह से ही बच्चे अपराध की तरफ कम उम्र में ही बढऩे लगते हैं। वेस्टर्न कल्चर का ही असर है कि यूथ नशे की तरफ कदम बढ़ाता है। यह जाने बिना कि इससे उसकी बॉडी और फैमिली को क्या नुकसान होने जा रहा है। कई बार नशे की लत पूरी करने के लिए वह छोटी-मोटी चोरियां करते हैं। ऐसे मामलों में कार्रवाई कम होती है तो उनका हौसला बढ़ता है और फिर वे बड़े क्राइम करने से भी नहीं हिचकिचाते। वह अपने पैरेंट्स को भी इग्नोर कर देते हैं।

हार्मोनल चेंज भी बनता है कारण
साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि 13 साल की उम्र पूरी करने के बाद बच्चों की बॉडी में हार्मोनल चेंजेज होते हैं। उनका अट्रैक्शन एरिया बदलने लगता है। इसके चलते उन पर गुस्से का प्रभाव हावी होने लगता है। जिद करके अपनी बात मनवा लेना हैबिट बनने लगती है। यहां उन्हें गाइड करने की जरूरत होती है। बातें मानते चले जाना उनके मन में यह भावना भर देता है कि उनका डिसीजन चैलेंज नहीं होगा। ज्यादातर मामलों में यह गलत होता है। इसे पैरेंट्स ही चेक कर सकते हैं। ऐसा न होने पर बाल मन खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाता। इसका नतीजा यह होता है कि वह अपराध के रास्ते पर कदम बढ़ा लेता है। इस चक्कर में कई बार वह अपने कॅरियर को भी दांव पर लगा देता है। सुधार की बातें करने वाले लोग उन्हें दुश्मन नजर आने लगते हैं।


152
बाल अपराधियों को गिरफ्तार किया गया 2021 में अब तक
163
को बाल सुधार गृह में दाखिल कराया गया था 2020 में
212
बाल अपराधी पकड़े गये थे साल 2019 में

तीन कैटेगिरी में रखे जाते हैं बाल अपराधी

हीनियस क्राइम
इसमें वे बाल अपराधी शामिल होते हैं जिनके खिलाफ लगायी गयी धाराओं में सात साल से अधिक सजा का प्रावधान है
सीरियस क्राइम
इस कैटेगिरी में उन्हें रखा जाता है जिनके खिलाफ दर्ज मुकदमों में सात साल से कम सजा का प्रावधान होता है
मिनिमम क्राइम
इस कैटेगिरी में उन्हें रखा जाता है जिन्हें दर्ज मुकदमो में अधिकतम तीन साल तक की सजा हो सकती है


आजकल सोशल मीडिया का एक्सपोजर ज्यादा है। यहां क्राइम से जुड़ी वल्गर पोस्ट मिलने वाले लाइक्स और कमेंट दूसरेच्बच्चों को भी अपराध के रास्ते पर चलने के लिए मोटीवेट करते हैं। पैरेंट्स भी ध्यान नहीं दे पाते किच्बच्चा सोशल मीडिया पर कौन सा कंटेंट देख या पोस्ट कर रहा है। कोरोना काल के बाद लगभग हरच्बच्चे के हाथ में मोबाइल आ गया है। इंटरनेट भी उपलब्ध है। पैरेंट्स ये सुविधा दी है ताकिच्बच्चे की क्लास मिस न हो। दिन पर पैरेंट्सच्बच्चे को वॉच नहीं कर सकते। इससेच्च्च्चे के गलत संगम में पडऩे के चांसेज बढ़ जाते हैं। आप जो डाटा बता रहे हैं कोरोना काल की तीन माह की बंदी के बाद का है तो चौंकाने वाला है.च्बच्चों को गलत रास्ते पर आगे बढऩे से रोकना टीचर, पैरेंट और सोसाइटी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
डॉ। हेमा खन्ना
साइकालॉजिस्ट
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बच्चे अनुवांशिक तौर पर अपराधी प्रवृत्ति के नहीं होते। जो देखते हैं वही सीखते हैं। पहले ज्वाइन फैमिली कांसेप्ट हुआ करता था। तच् बच्चों को बाबा से लेकर नाना और बुआ से लेकर मौसी तक की केयर मिलती थी। अब उनकी दुनियां पैरेंट्स के चेहरे देखने तक सिमटकर रह गयी है। पैरेंट्स खुद अपने लिए स्पेश खोजते हैं। इस स्थिति मेच् बच्चे इग्नोर हो जाते हैं। पैरेंट्स नच् बच्चों को मोबाइल खुद की सुविधा के लिए पकड़ाया था। अब वहां उपलब्ध कंटेंट को देखतच् बच्चा अपराध के रास्ते पर चल पड़ा है तो सिर्फच् बच्चे को तो जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकताच् बच्चा बिगड़ गया है तो सामूहिक प्रयास से उसे सुधारा जाना चाहिए। इसकी पहल बाल सुधार गृह से होती है।
डॉ। उमाचरन गंगवार
समाज शास्त्री

किशोर अवस्था में कदम रखतच् बच्चों की बॉडी में हार्मोनल चेंजेज शुरू हो जाते हैं। इस अवस्था में उन्हें गाइड करने की बेहद जरूरत है। ऐसा न होने पर उन्हें जाच् अच्छा लगेगा, उसी रास्ते पर चल पड़ेंगे। क्राइम मेच् बच्चों की संलिप्तता का यही मुख्य कारण है। एक बाद वे गलत रास्ते पर चल पड़े तो उन्हें इससे रोकने वाला ही गलत नजर आने लगता है। इसच् बच्चों के पैरेंट्स को रीड करना होगा और इस तरह से गाइड और मोटीवेट करना होगा कि वह किसी चीज की जिद न पकड़े। उसे पैरेंट्स की बातों में ही अपनी भलाई नजर आने लगे। ऐसा हो गया ताच् बच्चे को अपना भला बुरा खुद समझ में आने लगेगा और वे रास्ता बदल लेंगे।
खुश अदा
मनोचिकित्सक