डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में स्वाइन फ्लू वार्ड की कड़वी हकीकत
एक पेशेंट एडमिट, क्लोराइजेशन, स्टेरलाइजेशन की व्यवस्था नहीं
आइसोलेशन वार्ड नाम तो दिया, लेकिन सुरक्षा मानक पूरे नहीं।
BAREILLY:
एक ओर देश भर में जहां स्वाइन फ्लू की दहशत ने महामारी का शक्ल ले ली है, वहीं बरेली भी इस जानलेवा बीमारी की चपेट में घिरती जा रही है। सैटरडे तक बरेली मंडल से भ्7 सैंपल, स्वाइन फ्लू के लिए जिम्मेदार वायरस की पुष्टि के लिए पीजीआई लखनऊ भेजे जा चुके हैं। शहर के निजी हॉस्पिटल्स में महंगे इलाज और मोटी फीस के बावजूद सस्पेक्टेड मरीज लाइन लगा रहे। लेकिन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में अनुभवी डॉक्टर्स और मुफ्त इलाज व दवा की सुविधा के बावजूद मरीज यहां आने से कतरा रहे। हाल यह है कि डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल का स्वाइन फ्लू वार्ड में सन्नाटा पसरा हुआ है और मरीज यहां इलाज कराने की बजाए निजी हॉस्पिटल में ही जान बचने का भरोसा जता रहे हैं
नाम का आइसोलेशन वार्ड
जनवरी ख्0क्भ् में स्वाइन फ्लू के अलर्ट के साथ ही डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में क्राइसिस वार्ड को स्वाइन फ्लू वार्ड में तब्दील कर दिया गया। क्ख् बेड वाला यह वार्ड ही स्वाइन फ्लू के कंफर्म मरीजों के इलाज के नजरिए से आइसोलेशन वार्ड की तरह माना गया। ऐसा वार्ड जहां एचक्एनक् वायरस से पीडि़त मरीज को पूरी तरह आइसोलेट कर उसे अन्य हेल्दी लोगों से दूर रखा जाए और इलाज किया जाए। लेकिन इस वार्ड को सिर्फ आइसोलेशन वार्ड कहा गया, इसमें मरीज को आइसोलेट किए जाने और आइसोलेशन वार्ड संबंधी सावधानियां लागू न हो सकी।
मानक नहीं तो मरीज भी गायब
आइसोलेशन वार्ड में मरीज के इलाज में जुटे डॉक्टर्स मेडिकल स्टाफ व कर्मचारियों को भी प्रॉपर मास्क, ग्लव्स और एप्रेन पहनकर ही वार्ड में दाखिल होना है। साथ ही हर दिन वार्ड में क्लोरीन के छिड़काव से स्टेरेलाइजेशन की भी व्यवस्था होनी चाहिए। आइसोलेशन वार्ड में बाहरी लोगों के आने जाने पर रोक लगी होनी चाहिए। मरीज के संपर्क में रहने वाले तीमारदारों का भी आइसोलेशन वार्ड से बाहर आने पर स्टेरलाइजेशन होना चाहिए। जिससे कि दूसरों तक वायरस की पहुंच की आशंका खत्म की जा सके। लेकिन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के स्वाइन फ्लू के आइसोलेशन वार्ड में ऐसा कोई भी इंतजाम नहीं।
बिना वेंटीलेटर जान बचाना मुश्किल
स्वाइन फ्लू के मरीज को सबसे पहले आइसोलेशन वार्ड में एडमिट कराना होता है। जिससे कि कोई अन्य इस बीमारी की चपेट में न आ जाएं। लेकिन डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में बनाए गए इस आइसोलेशन वार्ड में न तो गंभीर हालत में आए मरीज को बचाने के लिए वेंटीलेटर की व्यवस्था है और न ही अन्य लाइफ सेविंग इक्विपमेंट्स व मशीन की। ऐसी सिचुएशन में मरीज की हालत बिगड़ने पर उसकी टूटती सांसों को बचाने के बुनियादी इंतजाम ही आइसोलेशन वार्ड में दम तोड़ देते हैं। जो मरीज की जिंदगी बचाने के लिए बनाया गया है।
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स्वाइन फ्लू गाइडलाइंस के तहत कटेगरी सी वाले मरीजों को ही एडमिट किया जाना है। इसलिए ही स्वाइन फ्लू वार्ड खाली है। हॉस्पिटल में बीमारी से बचाव के लिए पूरी व्यवस्था जुटाई गई है। फिर भी मरीज बाहर से इलाज कराएं तो यह उनकी च्वाइस है। - डॉ। डीपी शर्मा, सीएमएस
जिनके पास पैसा ज्यादा है, वह निजी हॉपिटल्स में आराम से इलाज कराने में यकीन रखते हैं। बाकी गरीब व जरूरतमंद मरीज डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में आ रहे और उन्हें इस बीमारी का इलाज भी मिल रहा।
सारे इंतजाम न हो पाने की थोड़े बहुत गुंजाइश तो रहती ही है। - डॉ। विजय यादव, सीएमओ