डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में महज नाम का आइसोलेशन वार्ड, वेंटीलेटर-आईसीयू नहीं

10 फीसदी प्राइवेट हॉपिटल्स को छोड़ किसी में वायरस के इलाज का इंतजाम नहीं

BAREILLY: दिल्ली और लखनऊ के बीच बरेली ने अपनी पहचान मेडिकल हब के तौर पर भले ही बखूबी बनाई हो, लेकिन स्वाइन फ्लू से लड़ने के लिए यहां असरदार इलाज की उम्मीद काफी हद तक बेमानी है। जानलेवा बीमारी स्वाइन फ्लू के बरेली पहुंचने की पुष्टि के बाद लोगों में इसे लेकर डर का माहौल बनने लगा है। लेकिन इसके होने पर ही पहले सफेद झूठ बोलने वाला सेहत महकमा न तो इसके इलाज के लिए पुख्ता तौर पर तैयार है और न ही पब्लिक में इस बीमारी के खिलाफ अवेयरनेस मुहिम में ही जिम्मेदारी निभा पा रही। रही सही कसर मोटी फीस लेकर इलाज करने वाले प्राइवेट हॉस्पिटल्स पूरी कर रहे। शहर के ज्यादातर निजी हॉस्पिटल में सस्पेक्टेड एचक्एनक् के मरीज एडमिट तो हो रहे, लेकिन उनके लिए इलाज के कारगर इंतजाम नहीं हैं।

किस काम का ऐसा आइसोलेशन वार्ड

स्वाइन फ्लू के शहर में दस्तक देने के आई नेक्स्ट के खुलासे से घबराए हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से अभी भी इस बीमारी से बचाव के लिए सुध नहीं ली जा रही। हेल्थ डायरेक्टर लखनऊ की ओर से कड़े निर्देश जारी होने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में स्वाइन फ्लू के खिलाफ इलाज की खानापूर्ति की जा रही। हॉस्पिटल में क्ख् बेड वाला आइसोलेशन वार्ड तो बना दिया गया। लेकिन स्वाइन फ्लू जैसी गंभीर बीमारी के इलाज और दूसरों को इस खतरे से बचाने के लिए आइसोलेशन वार्ड के मानक पूरे ही नहीं।

बिना वेंटीलेटर कैसे बचे जिंदगी

स्वाइन फ्लू के मरीज को सबसे पहले आइसोलेशन वार्ड में एडमिट कराना होता है। जिससे कि कोई अन्य इस बीमारी की चपेट में न आ जाएं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में कहने को तो आइसोलेशन वार्ड बना दिया गया है लेकिन यहां न तो गंभीर हालत में आए मरीज को बचाने के लिए वेंटीलेटर की व्यवस्था है और न ही अन्य लाइफ सेविंग इक्विमेंट्स और मशीन। ऐसी सिचुएशन में मरीज की हालत बिगड़ने पर उसकी टूटती सांसों को बचाने के बुनियादी इंतजाम ही आइसोलेशन वार्ड में दम तोड़ देते हैं।

अवेयरनेस की कमी, कैसे हो देखभाल

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में बने आइसोलेशन वार्ड में एडमिट होने वाले मरीज के इलाज में खास एहतियात बरतने की जरूरत है। मरीज का इलाज करने वाले पैरामेडिकल स्टाफ, कर्मचारी व डॉक्टर्स को ग्लव्स, एप्रेन व मास्क पहनकर ही वार्ड में जाने के निर्देश हैं। वहीं वार्ड को पूरी तरह से कवर किया जाना है जिससे दूसरे वार्डो तक एचक्एनक् वायरस को फैलने से रोका जा सकें। लेकिन हॉस्पिटल के आइसोलेशन वार्ड में कर्मचारी व स्टाफ को सिवाय मास्क के ग्लव्स व एप्रेन की सुविधा नसीब नहीं। ऊपर से वार्ड में एकाएक स्वाइन फ्लू के सस्पेक्टेड मरीज बढ़ने पर उनकी इलाज व देखभाल के लिए पूरा स्टाफ भी नहीं। स्टाफ की कमी झेल रहे हॉस्पिटल में आइसोलेशन वार्ड के लिए ख्ब् घंटे पर्याप्त स्टाफ रखना भी चुनौती बना हुआ है।

न अवेयरनेस, न िरस्पांस टीम

डेढ़ महीने पहले दिल्ली में स्वाइन फ्लू का पहला केस मिलने के बाद लखनऊ से भी पूरे सूबे में इसके लिए अलर्ट जारी कर दिए गए थे। बावजूद इसके सीएमओ ऑफिस स्तर से शहर और सीएचसी-पीएचसी में स्वाइन फ्लू के खिलाफ अवेयरनेस की मुहिम ठंडी पड़ी रही। सीएमओ ऑफिस के जिम्मेदारों की ओर से सीएचसी-पीएचसी में अलर्ट के तहत कागजी निर्देश तो भिजवा दिए गए लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों को स्वाइन फ्लू से बचने और इसके इलाज के लिए अवेयर करने के लिए कोई पहल नहीं की गई। न ही स्वाइन फ्लू के खतरे से निपटने के लिए कागजों पर बनाई गई रिस्पांस टीम को गठित कर लोगों के बचाव की तैयारी शुरू की गई।

सिर्फ क्0 फीसदी में कारगर इलाज

मेडिकल हब की शक्ल ले चुके बरेली में करीब ख्00 से ज्यादा प्राइवेट हॉस्पिटल्स व नर्सिग होम्स हैं। बावजूद इसके स्वाइन फ्लू के खिलाफ जंग में शहर के क्0 फीसदी निजी हॉस्पिटल्स को छोड़ दें तो बाकी बेबस और लाचार हैं। मेडिकल पेशे के जानकारों के मुताबिक शहर के बमुश्किल क्8 से ख्0 निजी हॉस्पिटल्स में ही कारगर आईसीयू और लाइफ सेविंग मशीन की व्यवस्था है। जो स्वाइन फ्लू जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए असरदार इलाज मुहैया करा सकें। जबकि बाकी के निजी हॉस्पिटल्स स्वाइन फ्लू से निपटने के लिए इलाज तो दूर आइसोलेशन वार्ड तक बनाने के बुनियादी इंतजाम की कमी से जूझ रहे।

ट्रेंड स्टाफ व अनुभ्ाव की कमी

एचक्एनक् के खिलाफ बरेली में जंग इस लिहाज से भी कमजोर पड़ रही कि स्वाइन फ्लू की पहचान समय पर न हो पाना सबसे बड़ी चुनौती बनी है। यूं तो स्वाइन फ्लू के वायरस की पहचान और मरीज की जांच लखनऊ पीजीआई में ही हो सकती है। लेकिन एचक्एनक् के सस्पेक्टेड मरीज को लक्षण देखते ही समय रहते न पहचाने जाने से उसके संपर्क में आने वाले अन्य लोगों की जान भी खतरे में पड़ रही। मेडिकल एक्सपर्ट के मुताबिक एचक्एनक् वायरस से पीडि़त मरीज के शुरुआती लक्षण निमोनिया या कॉमन कोल्ड से मिलने के चलते कई बार डॉक्टर्स इसका इलाज आम बीमारी के तौर पर ही करते हैं। वहीं ज्यादातर प्राइवेट हॉस्पिटल में इस बीमारी के खतरनाक रिजल्ट से अंजान ट्रेंड स्टाफ की कमी भी स्वाइन फ्लू को पैर जमाने का मौका दे रही।

फॉलो नहीं हो रहे अहम निर्देश

सीएमओ की ओर से सीएचसी व पीएचसी के साथ ही शहर के निजी हॉस्पिटल्स में भी स्वाइन फ्लू के लिए अलर्ट जारी कराया गया है। लेकिन शहर में इस बीमारी से एक मरीज की मौत हो जाने के बावजूद ज्यादातर निजी हॉस्पिटल्स में अलर्ट के निर्देश फॉलो नहीं किए जा रहे। स्वाइन फ्लू के सस्पेक्टेड मरीज एडमिट करने वाले हर हॉस्पिटल में आइसोलेशन वार्ड जरूरी है जहां की हवा बाहर न जा सकें। वहीं हर स्टाफ व कर्मचारी को एप्रेन, मास्क व ग्लव्ज पहनने के बाद ही मरीज के संपर्क में आना चाहिए। साथ ही हर घंटे में आइसोलेशन वार्ड में क्लोरीन का छिड़काव कर स्टेरलाइज करना चाहिए। लेकिन छोटे हॉस्पिटल्स तो दूर शहर के नामी गिरामी हॉस्पिटल में भी इन जरूरी सावधानियों को फॉलो नही किया जा रहा।

सीबीगंज में अब जुकाम भी डरा रहा

स्वाइन फ्लू के चलते सीबीगंज निवासी अनीता उपाध्याय की मौत के बाद पूरे इलाके में दहशत का माहौल है। सीबीगंज एरिया में लोकल डॉक्टर से नॉर्मल जुकाम और खांसी का इलाज करा रहे पेशेंट्स भी स्वाइन फ्लू के डर से अपने परिजनों के साथ शहर की ओर आने लगे हैं। वहीं लोकल डॉक्टर्स भी ऐसे किसी केस को देखते ही मरीजों को तुरंत बड़े हॉस्पिटल जाने की सलाह दे रहे हैं। सीबीगंज में लोगों को मामूली सर्दी जुकाम में भी स्वाइन फ्लू का डर सताने लगा है। डॉक्टर्स भी इसे डर के चलते ही सही स्वाइन फ्लू के लिए अवेयर होने पर खुशी जता रहे।

दवा बांटने की निभाई अौपचारिकता

स्वाइन फ्लू से हुई मौत के बाद भी स्वास्थ्य महकमा मामले को गंभीर नजर नहीं आ रहा। सीबीगंज में स्वाइन फ्लू की दस्तक के बावजूद सेहत महकमे की ओर से मामले को छिपाने की वजह से परिजनों को कोई सुविधा मुहैया नहीं हो सकी। दूसरी ओर मामले पर सीएमओ की हामी के बाद भी केवल दवा बांटने की औपचारिकता निभा दी गई। जबकि नियमानुसार, स्वाइन फ्लू से जान गंवाने वाली अनीता के परिजनों समेत पड़ोसियों की भी स्वाइन फ्लू की जांच होनी चाहिए थी। साथ ही पूरे इलाके में सर्दी, खांसी व जुकाम के मरीजों की बुनियादी स्तर पर स्वाइन फ्लू की जांच करानी जरूरी है। जो अब तक नहीं की गई।

कोट

एलर्ट जारी कर दिया गया है। जिला चिकित्सालय में आइसोलेशन वॉर्ड, हेल्पलाइन नंबर समेत रैपिड रिस्पांस टीम बनाई है, जो सस्पेक्टेड केस को ट्रेस करेगी। सीबीगंज के पेशेंट के परिजनों और पास पड़ोस के लोगों को टैमी फ्लू कैप्सूल दिया गया है।

डॉ। विजय यादव, सीएमओ

शहर के सभी प्राइवेट हास्पिटल्स को मामले की गंभीरता को देखते हुए एलर्ट जारी कर दिया गया है। जिन हास्पिटल्स में आइसोलेशन वॉर्ड नहीं है वह स्वाइन फ्लू के सस्पेक्टेड केस को अन्य हास्पिटल में रेफर करने के निर्देश हैं।

डॉ। रवि खन्ना, आईएमए प्रेसीडेंट

हास्पिटल में पूरी अहतियात रखी जा रही है। मानकों को ध्यान में रखते हुए आइसोलेशन वॉर्ड बनाया गया है। सभी स्टाफ और अन्य पेशेंट समेत परिजनों को भी मास्क पहनने और साफ सफाई बनाए रखने की अपील की जा रही है।

डॉ। सोमेश मल्होत्रा, फिजिशियन

शहर के ज्यादातर हास्पिटल्स में स्वाइन फ्लू से निपटने के लिए व्यापक इंतजाम नहीं हैं। इसकी जांच केवल गवर्नमेंट बॉडी ही कर सकती है। जांच में लेटलतीफी होने से प्राथमिक उपचार भी मुमकिन नहीं हो पाता है।

डॉ। सुदीप सरन, फिजिशियन

स्वाइन फ्लू शहर में आ गया है। इसे देखते हुए टैमी फ्लू को ओपन मार्केट में भी सेल करने की इजाजत होनी चाहिए। जिला चिकित्सालय की ओर से सभी को उपलब्ध हो, इसके लिए विज्ञापन प्रकाशित करे।

दुर्गेश खटनानी, प्रेसीडेंट, बरेली महानगर केमिस्ट एसोसिएशन