क्रांति शेखर सारंग (बरेली )। जहां एक ओर प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देने में लगे हैं। मुख्यमंत्री से लेकर अन्य मंत्री तक जनता द्वारा ट्विटर पर जनता की शिकायतों को काफी महत्व दे रहे हैं। उनकी शिकायतों पर संज्ञान लेकर तत्काल लोगों को न्याय दिलाया जा रहा है। जिस व्यवस्था से आज जनता काफी खुश औैर संतुष्ट नजर आ रही है, उस सिस्टम को जनपद में हाल ही में आए एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने क्षण भर में धता बताते हुए तुगलकी फरमान जारी कर दिया। ट्विटर पर एक महिला की शिकायत पर उन्होंने रिटवीट किया कि ट्विटर को चलता फिरता कार्यालय न बनाएं।

यह है मामला
असल में रूह्र॥्रहृस्ङ्ख्रक्रह्रह्रक्कत्र२० हैंडल से एसएसपी बरेली के हैंडल पर एक शिकायत की गई थी। उसमें हाफिजगंज थाना क्षेत्र की महिला ने बताया था कि पांच जुलाई को उसका पति मजदूरी करने गया था। उसके पीछे ननदोई ने उसके साथ छेड़छाड़ की। महिला ने विरोध किया तो मारपीट की और जेवर आदि लूटकर भाग गया। महिला ने डीजीपी, यूपी पुलिस और एडीजी को भी टैग करते हुए कार्रवाई की मांग की थी। इस पर एसएसपी ने उसे रीट्वीट करते हुए लिखा : &टविटर को चलता-फिरता कार्यालय न बनाएं। किसी भी कार्य दिवस में थाना, क्षेत्राधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक अथवा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय जाकर प्रार्थना पत्र दें.&य उनके इस तुगलकी फरमान के बाद पोस्ट करने वाले के मन में जो न्याय की आस थी, वह टूट गई और उसने पोस्ट को डिलीट कर दिया।

अब आई ट्रोल होने की बारी
कप्तान के इस तुगलकी फरमान के जारी करते ही ट्विटर पर उन्हें ट्रोल करने वालों का तांता लग गया। आम लोगों ने उन्हें जमकर खरी-खोटी सुनाईं। किसी ने उन्हें कानून का पाठ पढ़ाया तो किसी ने जनसेवक के दायित्व क्या होते हैं, इसका सबक उन्हें अच्छी तरह सिखाया। इस दौरान लोगों ने अपने कमेंट्स में सीएम और डीजीपो को भी टैैग किया है। एक यूजर ने तो अपनी पीड़ा व्यक्त की है कि उसने एक बार ट्विटर पर कंप्लेंट की थी तो पुलिस उन्हें ही उठाकर ले गई थी। उसके बाद उन्होंने लिखना ही छोड़ दिया।


देखें किसने कैसे किया ट्रोल
एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के हैंडल पर कहा गया है कि एसएसपी महोदय शायद आपने सीआरपीसी नहीं पढ़ी। सीआरपीसी में साफ-साफ कहा हैै कि संज्ञेय अपराध होने की सूचना लिखित या मौखिक रूप में हो सकती है। इस तरह का जवाब देना बहुत ही गलत है। आपको तत्काल इस प्रार्थना को अपराध घटित होने की सूचना मानकर कर कार्रवाई करनी चाहिए थी।

ग्रीन प्लैनेट मैगजीन हैंडल से लिखा गया है कि इस तरह टका सा जवाब देना कहां तक जायज है सर। जनसेवक की जनता के प्रति जवाबदेही है, न कि इस प्रकार के अहंकारपूर्ण आदेशों की। आपके थानों पर जैसे तहरीर ली जाती है और जैसे कार्रवाई की जाती है, वह सबको पता है।

सचिन राघव ने प्रधानमंत्री को टैग करते हुए लिखा है कि नरेंद्र मोदी जी के डिजिटल इंडिया सपने को ऐसे ही आग लगाई जा रही है। अधिकारियों के ऑफिस के चक्कर लगाओ, जी हुजूरी करो तब भी एफआईआर होने में एक-दो साल लग जाते हैं। अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह हावी है।

सवर्ण जंक्शन हैंडल से लिखा गया है कि महोदय श्रीमान किसी को शौक नहीं है कि सोशल मीडिया पर सब को दिखाया जाए। जब न्याय नहीं मिलता तब लोग मजबूर हो जाते हैं। इतना ही अच्छे से कार्य होता तो लोग सोशल मीडिया पर मैटर डालते ही नहीं।

वर्मा शेखर ने लिखा है कि ट्विटर् पर आपकी कार्यशैली दर्शाती है कि आपका काम कितना अच्छा है। सोशल मीडिया पर पूरा समाज आपकी नाकामी देखता है। कार्यालय में जाने के बाद शिकायत पत्र किसी कोने में ही पड़ा रहता है।

निखिल लहरी लिखते हैं कि इस मजाक से पहले यह याद कर लीजिए महोदय कि आपने आखिरी बार जनता का चेहरा कब देखा था। सोशल मीडिया पर कम से कम जवाब देना तो जिम्मेदारों की मजबूरी होती है। किसी एसएचओ के पास आम नागरिक बनकर जाकर देखिए। ऐसी-ऐसी गालियां सुनने को मिलेंगी, जो न कभी सुनी हों, न जानी हों।

शिवांश लाइफ ने अपनी पीड़ा जताई है। उन्होंने लिखा है कि इस वजह से मैंने तो लिखना ही बंद कर दिया है। एक बार गलती से शिकायत कर दी तो पुलिस मुझे ही उठा कर ले गई कि तुमने ट्विटर पर शिकायत क्यों की और खा-पीकर केस को वहां पर ही निपटा दिया। अब तो डर लगता है पता नहीं, न जाने कौन सी धारा लगाकर हमें ही अंदर न कर दें। कानून से तीज पाना मुमकिन नहीं है।
----------------------------------------


बोले कप्तान
जनता के लिए आज तमाम ऑप्शन उपलब्ध हैं। तत्काल सहायता के लिए 112 नंबर पर कॉल का ऑप्शन है। ई-आफआईआर करने के लिए यूपी कॉप एप है। आईजीआरएस पोर्टल पर भी कंप्लेंट की जा सकती है। जनरल कंप्लेंट्स के लिए निकटतम थाने, क्षेत्राधिकारी अथवा अपर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आवेदन करें। कहीं पर सुनवाई नहीं होती है तो ट्विटर पर कंप्लेंट करना समझ में आता है पर पहली शिकायत ही इस तरह करना समझ से बाहर है।