बरेली (ब्यूरो)। शनि जयंती पर इस बार सोमवती अमास्या का विशेष संयोग है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को हुआ था। इसी कारण इस दिन शानिदेव का जन्मदिवस भी मनाते हैं। नवग्रहों में शनि ही एक मात्र ऐसे ग्रह हैं, जिनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा की मानें तो शनि अमावस्या के संबंध में यह नियम है कि वर्ष भर में जो अमावस्या केवल शनिवार को होती है, उसे शनि अमावस योग कहते हैं।
पूर्ण होती है मनोकामना
इस वर्ष 30 मई 2020 सोमवार 2021, उदया तिथि अनुसार अमावस्या है। जेष्ठ माह के कृष्णपक्षीय अमावस्या को शानिदेव की जयंती है। इस दिन देव पितृ कार्य अमावस्या भी होने के कारण पितरों को प्रसन्न करने का भी दिन है। इस शनि जयंती के दिन महाकालेश्वर की नगरी में द्वादश लिंगों महाकाल लिंग, जिसे शानिदेव की उच्च राशि तुला का ज्योतिर्लिंग माना जाता है की पूजा-अर्चना से मनोकामनाएं पूर्ण करने का यह विशेष दिन है।
शनि जयंती के दिन क्या करें
इस दिन सायंकाल सूर्यास्त के बाद स्नानादि के बाद हरड़ का तेल शरीर पर लगाएं। पश्चिम दिशा की ओर चौकी रखकर उस पर काला वस्त्र बिछाएं, श्याम रंग के नीले लाजवंती के पुष्प बिछाएं तथा पीपल के पत्ते पर शनि यंत्र स्थापित करें, सरसों के तेल का दीपक, धूप जलाएं। नैवेद्य चढ़ाने के लिए काले उरद का हलवा, काले तिल से बने लड्डू, अक्षत, गंगाजल, बिल्वपत्र, काले रंग के फूल आदि रखें। चौकी के चारों ओर तिल के तेल से भरी कटोरियां रखें। इनमें काले तिल के दाने, एक सिक्का, एक पंच मुखी रूद्राक्ष डालें। शनि के मंत्रों का जाप, साधना आदि करने के उपरांत सात अथवा ग्यारह शनिवार को इन कटोरियों में अपने चेहरे की छाया देखने के बाद शनिदेव के स्मरण के साथ शनि का दान लेने वालों को दें। इस प्रकार पूजा अर्चना करने से दुर्घटना, गंभीर रोग, अकाल मृत्यु, शास्त्राघात से शानिदेव मुक्त रखते हैं।
विशेष बातें :
-शनि जयंती/सोमवती अमावस 30 मई
-इस संवतसर के राजा भी हैं शनिदेव, पूजा-पाठ का मिलेगा विशेष फल
-इस वर्ष सुकर्मा योग में &सोमवती अमावस&य पर स्त्रियां करें पूजा पाठ
-महिलाएं पति की आयु वृद्धि के लिए पीपल वृक्ष के मूल को विष्णु का प्रतीक मानकर उसकी 108 बार परिक्रमा करें
-सुकर्मा योग में सोमवती अमावस्या पर पूजन कर करें पितरों को प्रसन्न, पाएं पति की दीर्घायु
-इस शुभ योग में शनिदोष निवारण के लिए करें पूजा-पाठ, दान-पुण्य
राशि के अनुसार करें पूजा
मेष: काले कपड़े में साबुत काली उड़द, सात लोहे की कीलें, पांच कोयले के टुकड़े रखकर सात गांठें लगाकर अपने सिर से उसार कर किसी डाकोत को दें।
वृष: सरसों के तेल से शनि देव का अभिषेक करके 108 दीपक प्रज्वलित करे।
मिथुन: सात अनाज ज्वार, बाजरा, मूंग, मोट, गेहूं, मसूर और उड़द मिलाकर अपने ऊपर से उसार कर पक्षियों को दें।
कर्क: काले जूते, काले कपड़े व लोहे का बर्तन किसी जरूरतमंद को दान करें। भगवान शिव के मंदिर में 5 बादाम चढ़ाएं।
सिंह: काली गाय की सेवा करें, पूजा करें और उनकी परिक्रमा कर तिल के लड्डू खिलाएं।
कन्या: 11 साबुत नारियल बहते जल में प्रवाहित करके।
तुला: गेहूं के आटे की दो रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरे पर घी लगा दें। घी वाली रोटी पर थोड़ा गुड़ रखकर काली गाय को खिलाएं और दूसरी रोटी दूध में डालकर काले कुत्ते को खिलाएं।
वृश्चिक: कांसे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमे घर के सदस्य मुंह देखकर छाया दान करें
धनु: हनुमानजी को चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर चोला चढ़ाएं।
मकर: सूर्योदय के समय ताबें के लोटे में जल भरकर पीपल के वृक्ष में अर्पित करें।
कुम्भ: कुष्ठ रोगियों को भोजन कराएं व उन्हें चमड़े के जूते चप्पल, कंबल तेल, काला छाता, कपड़े आदि का दान दें।
मीन: हनुमानजी, भैरवजी, शानिदेवजी के दर्शन करें एवं शनि मंदिर में राजा दशरथ द्वारा रचित दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।