बिजली के 'लो वोल्टेज' से स्मॉल स्केल इंडस्ट्री तबाह

- 5 करोड़ रुपए सिर्फ डीजल पर पर मंथ खर्च हो रहे

- 1000 स्मॉल स्केल इंडस्ट्री है बरेली में

BAREILLY: बरेली में अच्छी खासी संख्या में स्मॉल स्केल इंडस्ट्री है, लेकिन बिजली कटौती ने इसके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न कर दिया है। आलम यह है कि कई इंडस्ट्री बंद हो चुकी है और कारीगरों के सामने रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं। होटल, रेस्टोरेंट, टॉफी, नमकीन, जरी और फर्नीचर जैसे उद्योगों से गुलजार होने वाला शहर आज दूसरे शहरों की तरफ मुंह देख रहा है। वहीं कुछ बिजनेसमैन इंडस्ट्री को जीवित रखने के लिए जेनरेटर का सहारा ले रहे हैं। इसके लिए उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक तरफ उन्हें डीजल में पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बिजली बिल भी पे करना पड़ रहा है। इसका सीधा असर प्रोडक्ट और कस्टमर पर पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक बिजली कटौती के कारण उद्योग से जुड़े लोगों को पर मंथ एक-दो लाख नहीं बल्कि करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं।

बरेली में एक हजार उद्योग

सिटी में स्मॉल स्केल इंडस्ट्री की कमी नहीं है। यहां के सैकड़ों परिवार की रोजी-रोटी इससे चलती है। जरी, प्लॉस्टिक, फर्नीचर, गोली, टॉफी, दोना, प्लेट, थाली, नमकीन जैसे करीब क्,000 लघु उद्योग सिटी में है। मैक्सिमम उद्योग बिहारीपुर, वीर सावरकर नगर, कुतुबशाह की इजारत, परसाखेड़ा, श्यामगंज एरिया में है, लेकिन बिजली विभाग की लापरवाही का खामियाजा उद्योग से जुड़े लोगों को भुगतना पड़ रहा है। आलम यह है कि बिजली कटौती के चलते आमदनी की अपेक्षा खर्च कहीं अधिक हो रहा है। उद्योग व्यापार मंडल से जुड़े लोगों ने बताया कि बरेली में लघु उद्योग को सुविधा नहीं मिलने से ये बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं।

करोड़ों रुपए की चपत

बिजली कटौती उद्योग को चौपट कर रहा है। इनसे जड़े लोगों को हर मंथ करोड़ों रुपए की चपत लग रही है। बिजली बिल देने के बाद भी उन्हें जरूरत के मुताबिक बिजली नहीं मिल रही है। बिजली संकट से निबटने के लिए उन्हें जनरेटर इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को दोहरी मार पड़ रही है। सिटी में होटल, रेस्टोरेंट और लघु उद्योग को मिलाकर हर महीने भ् करोड़ से अधिक का नुकसान हो रहा है। होटल्स ओनर की मानें तो बिजली बिल के अलावा उन्हें पर मंथ दो लाख रुपए सिर्फ डीजल पर खर्च करना पड़ रहा है, जबकि दो ढाई लाख रुपए बिजली बिल अलग पे करना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर जरी, प्लॉस्टिक, फर्नीचर, गोली, टॉफी, दोना, प्लेट, थाली, नमकीन जैसे उद्योगों से जुड़े सभी व्यापारियों को मिलाकर परडे क्भ् लाख रुपए का नुकसान हो रहा है।

बाहर से डिमांड हो रही पूरी

बिजली की बार-बार हो रही कटौती का असर उत्पादन पर भी पड़ता है। उत्पादन कम होने से होलसेलर्स को बाहर से सामान मंगवाने पड़ रहे हैं। दोना और थाली के बिजनेस करने वाले होलसेलर राजीव शर्मा ने बताया कि श्यामगंज, बिहारीपुर, रवि टोला, वीर सावरकर नगर सहित सिटी के विभिन्न एरिया में करीब क्भ् होलसेलर हैं, जबकि रिटेलर की संख्या क्00 से भी अधिक है, लेकिन सिटी में डिमांड के अकॉर्डिग दो और थाली का उत्पादन नहीं हो पाता है। लिहाजा हम लोगों को रामपुर और मुरादाबाद से सामाना मंगवाने पड़ रहे हैं। ट्रांसपोर्ट खर्च बढ़ने से सामान के प्राइस पर असर पड़ रहा है।

रात में काम बंद

जरी उद्योग पर बिजली कटौती का सबसे अधिक असर देखने को मिल रहा है। वैसे तो जरी के काम के लिए बिजली की कोई जरूरत नहीं होती है, लेकिन जरी का काम बेसिकली रात के टाइम में ज्यादा होता है, जिसके चलते जरी के काम के लिए लाइट बेहद जरूरी हो जाती है। वेलवेट, जरकन, चांदला, मोती व रेशम की कढ़ाई के लिए प्रॉपर रोशनी होनी चाहिए ताकि डिजाइन के अकॉर्डिग कढ़ाई की जा सके। जरी के बिजनेस से जुड़े मोहम्मद तारिक उदास मन से बताते हैं कि रवि टोला में ब्00 लोग जरी उद्योग से जुड़े है। रात में छपाई नहीं दिखने से काम पूरी तरह से बंद रहता है। जनरेटर इस्तेमाल नहीं किया जाता। क्योंकि जितनी की आमदनी नहीं होती है उतना खर्चा पड़ जाता है। चार कलर को एक साइट बोलते हैं। एक साइट का क्भ्0 रुपए मजदूरी होता है। क्भ्0 रुपए में भ्0 रुपए रेशम और कढ़ाई के अन्य सामान पर खर्च हो जाते हैं। ऐसे में जनरेटर चलाकर काम करना संभव नहीं है।

प्रोडक्ट पर महंगाई की मार

कुल मिलाकर इस सबका असर फाइनली कस्टमर्स पर पड़ता है। प्रोडक्ट तैयार करने में हो रहे एक्स्ट्रा खर्च के चलते प्रोडक्ट के प्राइस में बढ़ोतरी हो रही है। उद्योग से जुड़े लोगों ने बताया कि जो सामान कस्टमर को क्भ् हजार रुपए में मिल सकता है। उसी के लिए उन्हें क्7 हजार रुपए देने पड़ रहे हैं। अगर कांटीन्यू बिजली मिलती रहे तो प्रोडक्ट तैयार करने में कम लागत आएगी और लोगों को भी राहत मिलेगी।

हमारा प्रयास है कि शहर को भरपूर बिजली मिले। वैसे गर्मी में थोड़ी प्रॉब्लम बढ़ जाती है। इसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

- मधुकर वर्मा, एसई, बिजली विभाग

बरेली में लघु उद्योग की संख्या बहुत अधिक है। कई उद्योग बंद भी हो चुके हैं। अगर बिजली की व्यवस्था सुचारू रूप से मिलती रहे तो लघु उद्योग की संख्या में और इजाफा होगा। बिजली नहीं आने से परडे क्भ् लाख का नुकसान हो रहा है।

- राजेंद्र गुप्ता, प्रेसीडेंट, यूपी उद्योग व्यापार प्रतिनिध मंडल बरेली

डीजल पर हर महीने ढाई लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं, जबकि बिजली बिल अलग से देने होते हैं। बार-बार बिजली की आंख मिचौनी से कस्टमर्स नाराज होते हैं।

- आशू अरोड़ा, जीएम, होटल

सिटी में उद्योग के अनुसार बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती है। इस वजह से हम लोगों को दूसरे शहरों से मैटेरियल मंगवाना पड़ता है।

निखिल अग्रवाल, होलसेलर

सबसे अधिक हम लोगों का काम प्रभावित होता है। क्योंकि हमारा काम ऐसा है कि कारीगर दिन रात काम में लगे रहते हैं, लेकिन बिजली नहीं आने से सिर्फ दिन में ही काम हो पाता है।

- मुन्ना, जरी कारोबारी

क्8 हजार रुपए पर मंथ डीजल पर खर्च करना पड़ता है, जबकि क्ख् हजार रुपए बिजली बिल अलग से देते हैं। बिजली जाने से काम बार-बार बीच में ही रोकना पड़ता है, जिसके चलते उत्पादन में कमी आई है।

- समद याहिया, ओनर, नमकीन फैक्ट्री

सिटी में करीब ब्0 लोग फर्नीचर के बिजनेस से जुड़े हैं। अगर पूरे दिन में फ्-ब् बार बिजली कटौती होती है तो भ् से म् हजार रुपए एक्स्ट्रा खर्च करने पड़ते हैं। इस खर्चे को निकालने के लिए प्राइस बढ़ाना पड़ता है।

- साक्षी नारायण, फर्नीचर कारोबारी

ये इंडस्ट्री है यहां

होटल, रेस्टोरेंट, जरी, प्लॉस्टिक, फर्नीचर, गोली, टॉफी, दोना, प्लेट, थाली और नमकीन