-मेरी जिम्मेदारी नगर निगम पर है, उसके उद्यान विभाग को सिटी में मेरी मौजूदगी तक की खबर नहीं
-मुझे संवारने के लिए 54 माली का पद, उसमें में हैं सिर्फ 48, काम पर बस 25
BAREILLY: वीरान, उजाड़, बर्बाद, अब तो इन्हीं शब्दों में मेरे मायने सिमट कर रह गए हैं। मेरी जिंदादिली तो बहुत साल पहले ही दम तोड़ गई थी। पर अब धीरे-धीरे मुझमें जिंदगी के निशां भी मिटने लगे। मेरे आंगन में अब बच्चों का हुड़दंग नहीं होता। न ही बुजुर्गो को वो पुरसुकुन मिलता है जिसकी तलाश में उनके कदम कभी मेरी ओर खिंचे चले आते थे। अब वह महक भी मेरे दामन से नहीं गुजरती जो सेहत के दीवानों की सुबह खुशनुमा करती थी। मैं तो बस एक बदनुमा तस्वीर की शक्ल भर रह गया हूं। जिसे उसके अपनों ने ही उजाड़ने में कोई कोर कसर न रखी। मेरी देखभाल की जिम्मेदारी जिन कंधों पर थी उन्हीं ने मुझे मेरे आखिरी सफर के मुहाने पर ला खड़ा कर दिया। चलिए, अपना हाल और बयां करने से पहले मैं आपसे अपना परिचय करा देता हूं। मैं बरेली शहर का वह पार्क हूं, जिसका ख्याल रखने की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। वैसे तो अब मैं सिर्फ नाम का ही पार्क हूं, मेरी असली पहचान तो अब मेरे आंगन में फैली गंदगी से है। आज मैं अपनों की चोट खाकर वेंटीलेंटर पर पड़ा हूं, आखिरी सांसें गिनते हुए। इस डर में कि कहीं लोग यह भी न भूला दें कि मैं कभी पार्क था।
न रहम न बजट का मरहम
वह दौर शायद कुछ और ही था जब हरे भरे पार्क किसी शहर की हरियाली का मानक थे। शहर की तस्वीर खूबसूरत बनाने और संवारने में हमारी अहमियत थी। कभी हमें भी बड़े नाजों से संवारा जाता था। लेकिन फिर जैसे किस्मत का रंग और मेरे अपनों की नीयत स्याह हो गई। योजनाओं को कागजों में बनाने से अमली जामा पहनाने तक लाखों करोड़ों का घोटाला करने वाले नगर निगम के लिए मेरे लिए कोई बजट की व्यवस्था नहीं रही। मुझे मेरी बदहाली से निजात दिलाने को कोई योजना नहीं। अवस्थापना निधि से कभी-कभार कुछ बजट मेरे घावों पर दवा छिड़कने के लिए जारी कर अपना फर्ज पूरा कर लिया जाता है। लेकिन न तो मुझे रहम मिली न ही मेरे जख्मों पर मरहम।
पार्क नहीं ऑफिस में माली
निगम के धूल फांकते दस्तावेजों में मेरी संख्या 97 है। मेरी इतनी तादाद होने के बावजूद मेरी देखभाल के लिए निगम के पास सिर्फ 54 माली ही रहे। वह भी सिर्फ कागजों में। निगम के पास 3 हेड माली के पद हैं जिनमें से दो कई साल से खाली हैं। हालांकि 51 मालियों के पद हैं लेकिन इसमें भी सिर्फ 47 पर ही नियुक्तियां है। इतने से भी मेरी देखभाल और मुझे सींचने की कोशिश होती तो मेरी जिंदगी चल रही होती। लेकिन अफसरान को यह रास नहीं आया। मेरे मालियों को मुझसे दूर कर शहर के कमिश्नर, डीएम, नगर आयुक्त, अपर नगर आयुक्त और उपनगर आयुक्त के विभाग या घर के काम में जुटा दिया गया। 22 माली मेरी देखभाल केबजाए अफसरान के हुक्म बजाने में लगा दिए। जो रह गए उन्हें मेरी देखभाल के साथ ही साफ-सफाई और चौकीदारी की भी मजबूरी उठानी पड़ रही।
उद्यान विभाग को नहीं परवाह
मेरी निगहबानी और देखभाल के लिए निगम में एक उद्यान विभाग भी बनाया गया है। मेरी हालत जितना ही इस विभाग का होना भी जैसे निगम के लिए मजबूरी है। एक छोटे से टीनशेड में मेरे नाम से बनाया गया यह विभाग किसी मजाक से कम नहीं। यहां का बाबू नहीं जानता शहर में मेरी कितनी संख्या है। यहां बैठने वाले लोगों को मेरी देखभाल से कोई सरोकार नहीं। उनके जिम्मे बस मालियों की हर महीने सैलरी बनाना ही है। मेरे हालत सुधारने के लिए जो इंचार्ज बनाए गए वह एक टैक्स सुपरिटेंडेंट हैं जिन पर टैक्स वसूली के साथ ही शहर का अतिक्रमण हटाने का भी भार है। उन्हें बमुश्किल मेरे लिए समय मिलता है। जिस पर चीफ इंचार्ज की जिम्मेदारी है वह अपर नगर आयुक्त है। बातों से वह मेरे लिए फिक्रमंद दिखते हैं लेकिन निगम के कामकाज से उन्हें मेरी हालत सुधारने की फुर्सत नहीं।
ब्यूटिफिकेशन एक भ्ाद्दा मजाक
निगम के जिम्मेदारों ने यह एक ऐसा मजाक भद्दा मजाक मेरे साथ किया जो मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। 6 महीने पहले एक टेलीकॉम कंपनी से मिलकर शहर में मेरे कुछ पार्क को सुंदर बनाने और उनकी देखभाल किए जाने का मसौदा हुआ। मुझे भी उम्मीद जगी कि शायद अब मेरे बदहाली के दिन दूर होंगे। मुझे न सिर्फ खूबसूरत बनाने की योजना बनी बल्कि एक मिसाल के तौर पर मेरे बाकी के पार्क को दुरुस्त करने का सपना दिखाया गया। लेकिन यह दावे कागजों में ही रहे, न ऐसी कोई कवायद शुरू हुई और न ही मुझे नया जीवनदान मिला। मैं आज भी ऐसे ही पड़ा हूं। मेरे अपनों से ही उपेक्षित और अपमानित।
मेरा दर्द आप भी बांटिए
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